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    गुजरात विधानसभा चुनाव

    गुजरात विधानसभा चुनाव पूरे देश में चर्चा का विषय बने हुए हैं। पूरे देश के सियासी पण्डितों की निगाह गुजरात के बनते-बिगड़ते सियासी समीकरणों पर लगी हुई है। गुजरात की सियासत में होने वाला कोई आमूल-चूक बदलाव भी लगातार सुर्खियां बटोर रहा है। दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का गृह राज्य होने की वजह से गुजरात विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई बन चुका है।

    भाजपा गुजरात में बड़ी जीत दर्ज कर कांग्रेस का मनोबल तोड़ना चाहती है। हालाँकि एक-एक कर सारे सियासी समीकरण भाजपा के खिलाफ होते जा रहे हैं। गुजरात का जातीय आन्दोलन भाजपा के गले की फांस बन चुका है और कांग्रेस इसका पूरा फायदा उठाने की फिराक में है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी पूरी ताकत से गुजरात में चुनाव प्रचार में जुटे हैं और कांग्रेस के सियासी वनवास को खत्म करने की राह तलाश रहे हैं।

    कांग्रेस गुजरात विधानसभा चुनाव को 2019 लोकसभा चुनावों के आगाज के तौर पर देख रही है जो काफी हद तक सही भी है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल अगले महीने कांग्रेस की कमान सँभालने वाले हैं। यह सब ऐसे समय में हो रहा है जब देश के सियासी पटल पर कांग्रेस का सूर्य ढलता नजर आ रहा है। राहुल गाँधी गुजरात में राजनीतिक रूप से काफी सक्रिय रहे हैं और उनके धुआँधार चुनाव प्रचार अभियानों की वजह से भाजपा गुजरात में बैकफुट पर आ चुकी है।

    राहुल गाँधी ने गुजरात में भाजपा के खिलाफ आन्दोलनरत जातियों को साधकर जातीय समीकरण साधने की भी कोशिश की है। गुजरात विधानसभा चुनावों के परिणाम कांग्रेस और राहुल गाँधी के राजनीतिक भविष्य के लिहाज से काफी अहम हैं। आज कांग्रेस पार्टी के सामने यही यक्ष प्रश्न खड़ा है कि क्या राहुल गाँधी का नेतृत्व और गुजरात विधानसभा चुनाव के परिणाम कांग्रेस के लिए नए युग की शुरुआत करेंगे?

    कांग्रेस के साथ आए हार्दिक पटेल

    गुजरात में पिछले 27 महीनों से जारी पाटीदार आरक्षण आन्दोलन के अगुआ और भाजपा के लिए सिरदर्द बने हार्दिक पटेल अब खुलकर कांग्रेस के साथ आ गए हैं। हार्दिक पटेल ने पाटीदार आरक्षण के मुद्दे पर कांग्रेस का फार्मूला मंजूर कर लिया है और कांग्रेस को समर्थन देने की बात कही है। गुजरात की सियासत में पाटीदारों का प्रभुत्व देखते हुए कांग्रेस ने पाटीदार आन्दोलन के अगुआ हार्दिक पटेल की शर्तों को मानते हुए 8-11 सीटों पर उनकी पसंद के उम्मीदवारों को टिकट देने का फैसला किया था।

    गुजरात विधानसभा चुनाव
    कांग्रेस के साथ आए हार्दिक पटेल

    हार्दिक पटेल ने कहा है कि वह भाजपा की गलत नीतियों और अड़ियल रुख के खिलाफ कांग्रेस का समर्थन कर रहे हैं। गुजरात विधानसभा की कुल 182 सीटों में से 70 सीटों पर पाटीदार समाज का प्रभुत्व है। गुजरात में कुल मतदाताओं की संख्या का पाँचवा हिस्सा पाटीदार समाज के वोटरों का है। पाटीदार समाज की नाराजगी का असर वर्ष 2015 में सौराष्ट्र में हुए जिला पंचायत चुनावों में भी देखने को मिला था जब भाजपा क्षेत्र की 11 में से 8 सीटों पर हार गई थी।

    कांग्रेस के स्टार प्रचारक बने अल्पेश

    ओबीसी आन्दोलन के नेतृत्वकर्ता अल्पेश ठाकोर कांग्रेस के स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल हो चुके हैं।
    गुजरात कांग्रेस प्रभारी अशोक गहलोत, कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी से कई मुलाकातों के बाद अल्पेश ठाकोर कांग्रेस में शामिल हुए थे। ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर ने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से अपने वफादारों के लिए 12-15 सीटें मांगी है। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा है कि अल्पेश ठाकुर के वफादारों को टिकट दिया जाएगा बशर्ते उनमें चुनाव जीतने का माद्दा हो। अल्पेश ठाकोर को संगठन में काम करने का लम्बा अनुभव है और उनकी सियासी सूझबूझ शक योग्य नहीं है। गुजरात विधानसभा की 182 में से 70 सीटों पर ओबीसी वर्ग का स्पष्ट प्रभाव है।

    गुजरात विधानसभा चुनाव
    कांग्रेस के स्टार प्रचारक बने अल्पेश

    कभी शराबबंदी के लिए ‘जनता रेड’ डालने वाले अल्पेश ठाकोर आज सियासत के दांव-पेंच खेल रहे हैं। गुजरात के मतदाता वर्ग का 54 फीसदी हिस्सा ओबीसी वर्ग से आता है। अल्पेश ठाकोर गुजरात क्षत्रिय-ठाकोर सेना के अध्यक्ष हैं और ओबीसी एकता मंच के संयोजक की भूमिका में भी हैं। ओबीसी वर्ग में अल्पेश ठाकोर की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने राज्य में ओबीसी वर्ग की 146 जातियों को एकजुट किया है और उनका समर्थन हासिल किया है। चुनावों से पूर्व कांग्रेस में शामिल होकर अल्पेश ठाकोर ने भाजपा को करारा झटका दिया है और पाटीदारों के कटने से बैकफुट पर चल रही भाजपा की सियासी राह और मुश्किल कर दी है।

    पिछले दरवाजे से कांग्रेस को जिग्नेश का समर्थन

    गुजरात में पाटीदार और ओबीसी नेताओं के छिटकने के बाद भाजपा दलित आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे जिग्नेश मेवानी की ओर आशा भरी देख रही थी। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी से मुलाकात के बाद जिग्नेश मेवानी ने कांग्रेस में शामिल होने से इंकार कर दिया था। हालाँकि जिग्नेश ने कहा था कि वह सत्ताधारी भाजपा सरकार की नीतियों के खिलाफ हैं और लोगों से भाजपा को वोट ना देने की अपील करेंगे। जिग्नेश मेवानी ने कहा है कि वह कांग्रेस का समर्थन करेंगे। उम्मीदवारों के चयन पर जिग्नेश ने कहा कि कांग्रेस को ऐसे उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारने चाहिए जिन्हें लेकर पाटीदार, ओबीसी और दलित समाज में सहमति हो। ऊना में हुए दलित आन्दोलन के बाद से गुजरात में जिग्नेश मेवानी की पहचान बनी है और दलित समाज उन्हें अपना नेता मान चुका है।

    गुजरात विधानसभा चुनाव
    पिछले दरवाजे से कांग्रेस को जिग्नेश का समर्थन

    गुजरात में लगातार हो रही हिंसक घटनाओं के कारण गुजरात का दलित समुदाय भाजपा से रुष्ट है। बीते दिनों सौराष्ट्र के ऊना में कथित गौरक्षकों ने दलितों की पिटाई कर दी थी। इस मामले ने आग में घी का काम किया और गुजरात का दलित समाज भाजपा के खिलाफ हो गया। ऊना में गौरक्षा के नाम पर हुई दलितों की पिटाई के खिलाफ जिग्नेश मेवानी ने आन्दोलन छेड़ा था। ‘आजादी कूच आन्दोलन’ के माध्यम से जिग्नेश मेवानी ने एक साथ 20,000 दलितों को मरे जानवर ना उठाने और मैला ना ढ़ोने की शपथ दिलाई। इस दलित आन्दोलन ने बहुत ही शांतिपूर्ण ढंग से गुजरात की भाजपा सरकार को करारा झटका दिया था। राज्य के 6 फीसदी मतदाता दलित हैं और 13 सीटों पर प्रभाव रखते हैं। इनकी नाराजगी भाजपा को भारी पड़ सकती है।

    जमीनी मुद्दों की सियासत कर रहे राहुल

    कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी 2019 लोकसभा चुनावों में नरेन्द्र मोदी के खिलाफ दावेदारी ठोंकने की तैयारी में है। कांग्रेस पार्टी भी पार्टी लगातार उनकी छवि चमकाने पर काम कर रही है। हालिया विदेश दौरों से लौटने के बाद राहुल गाँधी लगातार जमीनी मुद्दों को आधार बनाकर भाजपा के खिलाफ सियासी जमीन तलाशने में जुटे हुए हैं। राहुल गाँधी लगातार किसानों की दुर्दशा, बेरोजगारी और आर्थिक मोर्चे पर सरकार की विफलता जैसे मुद्दों को आधार बना रहे हैं और गुजरात से लेकर महाराष्ट्र तक में इसके खिलाफ रैलियां कर चुके हैं। अपनी गुजरात यात्रा के दौरान राहुल गाँधी ने नर्मदा विस्थापितों, आदिवासियों और बाढ़ प्रभावित किसानों से भी मुलाकात की थी और उन्हें हरसंभव मदद देने का वायदा किया था।

    राहुल गाँधी ने अपने रवैये से स्पष्ट संकेत दे दिया है कि वातानुकूलित कमरों में बैठकर राजनीति करने वाले नेताओं के दिन अब लद चुके हैं। राहुल गाँधी के साथ-साथ कई राज्यों के कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष जमीनी मुद्दों पर आधारित राजनीति कर रहे हैं। बीते दिनों उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राज बब्बर किसानों की बदहाली के मुद्दे पर प्रदेश की सत्ताधारी योगी सरकार के खिलाफ खुद धरने पर बैठे नजर आए थे। राजस्थान कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट राजस्थान में किसान यात्रा निकाल रहे हैं और आगामी वर्ष प्रस्तावित विधानसभा चुनावों के लिए पृष्ठभूमि तैयार करने में जुटे हैं। वहीं हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष दीपेंद्र सिंह हुड्डा यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर गाँवों में किसान पंचायत लगा रहे हैं और प्रदेश की सत्ताधारी भाजपा सरकार के विरुद्ध माहौल बनाने की कोशिशों में जुटे हैं।

    सियासत में बढ़ रहा है राहुल का कद

    कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी केंद्र की सत्ताधारी मोदी सरकार को घेरने के लिए ताजातरीन मुद्दों की सूची बना चुके हैं। उनके द्वारा चिन्हित प्रमुख मुद्दों में बेरोजगारी, किसानों की बदहाली, छोटे और मँझोले उद्योगों की सुस्त पड़ती रफ्तार और कश्मीर में बेकाबू होते हालात हैं। अपने अमेरिका दौरे के दौरान कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी ने इन सभी मुद्दों का जिक्र किया था। अपने हालिया अमेठी और गुजरात दौरों पर भी उन्होंने सत्ताधारी भाजपा सरकार को इन्ही मुद्दों के आधार पर घेरा था। राहुल गाँधी और कांग्रेस वह मुद्दे पहचान चुके हैं जो उनको सत्ता तक पहुँचा सकते है और इसी वजह से वह लगातार मोदी सरकार को घेरने में सफल रहे हैं।

    अगर मोदी सरकार के पिछले 3 वर्षों के कार्यकाल पर नजर डालें तो यह स्पष्ट दिखता है कि देश के युवा लगातार बेरोजगार होते जा रहे हैं। पूंजीपतियों का विकास हुआ है और अमीर-गरीब के बीच की खाई बढ़ती जा रही है। मोदी सरकार द्वारा लागू की गई जीएसटी से छोटे व्यवसायियों और व्यापारियों की कमर टूट गई है। इससे पूर्व हुई नोटबंदी की वजह से व्यापारी वर्ग के साथ-साथ आम जनता को भी काफी परेशानियां उठानी पड़ी थी। भाजपा के कई नेताओं ने आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार की विफलता को लेकर बयान दिए थे। भाजपा की संगठन इकाई आरएसएस से जुड़े कई संगठन भी मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों से खुश नहीं है। ऐसे में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी इस मौके को भुनाने में लगे हैं और लगातार इन मुद्दों को आधार बना लगातार मोदी सरकार पर हमलावर रहे हैं।

    क्या कांग्रेस को नया रंग दे पाएंगे?

    कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता पार्टी प्रतिनिधित्व में बदलाव की मांग कर चुके थे। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी भी राहुल गाँधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की इच्छा जाहिर कर चुकी थी। राहुल गाँधी अगर नेहरू-गाँधी परिवार से नहीं आते तो शायद भारतीय राजनीति में पहचान बना पाना उनके लिए असंभव था। राहुल गाँधी भी इस बात को भली-भाँति जानते हैं और इसी वजह से अपनी राजनीतिक स्वीकार्यता के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। राहुल गाँधी को इसका एहसास है कि अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस में उनके कद और भूमिका की तुलना सोनिया गाँधी, राजीव गाँधी, इंदिरा गाँधी सरीखे दिग्गजों से की जाएगी। वीरभद्र सिंह, मणिशंकर अय्यर, जयराम रमेश सरीखे कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता आज भी राहुल गाँधी की सियासी समझ को खास तवज्जो नहीं देते हैं। बतौर कांग्रेस अध्यक्ष सबको साथ लेकर चलना राहुल गाँधी के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी।

    कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी के अध्यक्ष बनने के बाद एक बात तो तय है कि वह सियासत के पुराने दिग्गजों की जगह नए मोहरों संग आगे की बाजी खेलेंगे। उन्होंने 2014 लोकसभा चुनावों के पहले सचिन पायलट को अशोक गहलोत पर तरजीह देकर राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष बनाकर इसके संकेत दे दिए थे। आगामी वर्ष मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है। राहुल गाँधी अभी से पार्टी को नया रंग देने में जुटे हैं और कांग्रेस की कमान सँभालने के बाद वह इसमें और तेजी लाएंगे। कांग्रेस के वरिष्ठ सियासी दिग्गज एक पुराने वृक्ष की तरह हैं जिनके कटने का असर आस-पास के छोटे पेड़-पौधों पर भी होगा। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि राहुल गाँधी इन पुराने दिग्गजों के साए से निकलकर किस तरह कांग्रेस को नया रंग दे पाते हैं।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।