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    Congress:

    यह सच है कि आज़ाद भारत का इतिहास जब भी लिखा जाएगा, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) के बिना यह अधूरा होगा। लेकिन पिछले एक दशक में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) का हालिया चुनावों में जो प्रदर्शन रहा है, वह निश्चित ही कांग्रेस (INC) के लिए ना सिर्फ राजनीतिक जमीन खो जाने का संकेत है बल्कि कांग्रेस के वजूद पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं।

    हालिया विधानसभा चुनावों में कांग्रेस (INC) के प्रदर्शन के बाद उठने लगे हैं सवाल

    हाल में हुए 5 राज्यों उत्तर प्रदेश, गोवा, मणिपुर, पंजाब और उत्तराखंड में हुए विधानसभा चुनावों के परिणाम आते ही कांग्रेस के भविष्य और भारतीय राजनीति में उसकी प्रासंगिकता पर चारो तरफ से सवाल उठने लगे हैं।

    कांग्रेस (INC) ने पंजाब में सत्ता गंवा दी है।  उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में उसे करारी हार का सामना करना पड़ा है। वहीं उत्तर प्रदेश में पार्टी ने 399 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे जिसमें 387 की जमानत जब्त हो गई।

    कांग्रेस अब खुद के बदौलत सिर्फ 2 राज्य छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सत्ता में है। वहीं महाराष्ट्र, झारखंड और तमिलनाडु में सत्ता में साझेदार की भूमिका में है।

    पिछला एक दशक: कांग्रेस (INC) के लिए संकट

    कांग्रेस के पतन की कहानी मानो फिल्मी लगती है कि महज़ 10 साल पहले देश की नंबर1 पार्टी जो केंद्र में सत्ता चला रही थी …. कई राज्यों में खुद के दम पर सत्ता में थी …. आज लोकसभा में मुख्य विपक्ष का दर्जा भी हासिल करने लायक नहीं रह गई है।

    पिछले दशक की शुरुआत में कांग्रेस केंद्र में सत्ता चला रही थी। 2004-2009 की UPA-I की सरकार के काम काज के बदौलत 2009 के आम चुनावों में कांग्रेस और भी दमखम से सत्ता में दुबारे काबिज़ हुई और तब निःसंदेह कांग्रेस देश की नंबर1 पार्टी थी।

    2010 के आगमन से ही मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए-II (UPA II) सरकार पर लगातार घोटालों के आरोप लगने शुरू हुए। फिर बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और मुद्रास्फीति जैसे मुद्दों को लेकर विपक्ष (BJP+) हमलावर होने लगा। लोकपाल के मुद्दे को लेकर अन्ना आंदोलन ने सरकार की चूलें हिलाकर रख दी।

    कांग्रेस नेतृत्व अपने संगठनात्मक और वैचारिक दोनों तरीक़े से कमजोर पड़ने लगी और इन सब से निपटने में नाकामयाब रही।

    फिर आया मोदी फैक्टर…

    लगातार घोटालों, सड़कों पर आंदोलन और महंगाई- बेरोजगारी जैसे मुद्दे से त्रस्त देश की जनता को नरेंद्र मोदी नाम का एक बड़ा नेता मिल गया जो गुजरात की राजनीति से निकलकर देश के राजनीतिक पटल पर 2014 के आम चुनावों में प्रधानमंत्री पद की दावेदारी कर रह था।

    2014 का आम चुनाव हुए और नतीजे का अंदाज़ा लगभग सभी राजनीतिक पंडितों को चुनाव के पहले ही मालूम था। कांग्रेस की करारी हार होती है और दक्षिण पंथी विचारधारा वाली बीजेपी के नेतृत्व में NDA की सरकार बनती है। इन चुनावों में मोदी लहर ऐसी चली कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) ना सिर्फ सत्ता से बेदखल हुई बल्कि महज़ 44 सांसद ही कांग्रेस के टिकट पर चुनकर लोकसभा पहुँच पाए।

    इसके बाद कांग्रेस (INC) का असली पतन शुरू हुआ और एक के बाद उसके हाँथ से कई राज्य भी निकलते चले गए। बता दें, PM मोदी के सत्ता में आने के पहले 13 ऐसे राज्य थे जिसमें या तो कांग्रेस की खुद की सरकार थी या कांग्रेस सरकार में भागीदार थी; जबकि बीजेपी महज 7 राज्यों में सत्ता में शामिल थी।

    आज पंजाब में सत्ता गंवाने के बाद कांग्रेस महज 2 राज्य में खुद के दम पर सरकार में है वहीं 3 अन्य राज्यों में सहयोगी पार्टी के तौर पर सत्ता में शामिल है। वहीं भारतीय जनता पार्टी कुल 20 ऐसे राज्य/केंद्र शाषित प्रदेशों की सरकार में शामिल है।

    ऐसे में अभी ताज़ी हार के बाद कांग्रेस से कोई और सवाल कुछ पुछे, कांग्रेस को खुद से सवाल पूछना चाहिए गलती कहाँ हुई?इसे लेकर कांग्रेस कार्यकारिणी (CWC) की बैठक भी हुई पर कुछ ठोस निकलकर सामने नहीं आया।

    कांग्रेस के पतन की वजह और समाधान

    कांग्रेस के फिल्मी तरीक़े से सिकुड़ने के पीछे कई वजहें हैं। जैसे कुशल नेतृत्व की कमी, पार्टी के भीतर वैचारिक अंतर्विरोध, संगठनात्मक ऊर्जावान कैडर की जमीन पर कमी, जनता के बीच अस्वीकार्यता, बीजेपी (और RSS) के अलावे अन्य क्षेत्रीय दलों की राजनीति आदि कई कारण हैं जिसके कारण कांग्रेस आज इस हालात पर है।

    पार्टी का आलाकमान उन नेताओं से घिरा हुआ है जिनमें से अधिकतम के पास अपना कोई राजनीतिक जमीन नहीं है। वो या तो “इंदिरा-राजीव” दौर के कांग्रेस-लहर से निकले नेता हैं या राज्यसभा में जाने वाले बड़े वकील आदि।

    चूँकि इन नेताओं का जनता से सीधा कोई संवाद नहीं है, इसलिए पार्टी के पास जमीनी कार्यकर्ता भी नहीं है। ऐसे में बीजेपी + आरएसएस से जमीन पर मुक़ाबला करना लगभग असंभव सा है। पार्टी नेतृत्व को सबसे पहले इस ओर ध्यान देना चाहिए।

    प्रियंका गांधी ने अभी उत्तर प्रदेश चुनावो में इस पर बहुत काम किया है। पार्टी को बेशक निराशाजनक परिणाम यहाँ मिले हैं लेकिन प्रियंका ने जमीन पर काम किया है, इस से इनकार नहीं किया जा सकता। यह बस एक नेता द्वारा या एक राज्य में करने से पार्टी का काम नहीं चलेगा।

    दूसरा कांग्रेस पार्टी को अपने भीतर के वैचारिक अंतर्विरोधों से निकलना पड़ेगा। साल भर पहले मध्यप्रदेश की सत्ता गवाने के बाद अभी पंजाब की सत्ता भी कांग्रेस के हाँथ से इसी वजह से निकल गई। पार्टी के भीतर G23 जैसे आंतरिक गुट भी है जो चुनाव में गायब रहते हैं और हर की समीक्षा करने में सबसे आगे। आलाकमान को ये बात कैसे नहीं समझ आती, ये ताज्जुब की बात है।

    हर हार के बाद पार्टी उसकी समीक्षा करती है और फिर बात वहीं की वहीं रह जाती है। सबसे पहले कांग्रेस को यह स्वीकार करना होगा कि जनता के बीच उनकी स्वीकार्यता ना सिर्फ गिरी है, बल्कि पाताल में जा रही है। 2019 आम चुनावों में राहुल गांधी का अमेठी से हार जाना इस बात का गवाह है।

    जब तक इन बातों को कांग्रेस दुरुस्त नहीं करेगी, उसे हर चुनाव में ऐसे ही परिणाम मिलेंगे। अब तो सिर्फ BJP नहीं, अन्य क्षेत्रीय पार्टियां भी कांग्रेस को अपना ग्रास बना रही है। दिल्ली के बाद पंजाब के चुनाव में आम आदमी पार्टी (AAP) ने कांग्रेस की ही सीटें अपने खाते में डाली।

    समाधान है वैचारिक (Ideological) और संगठनात्मक (Organizational) सुधार

    इन सब समस्याओं का समाधान है वैचारिक और संगठनात्मक सुधार… कांग्रेस को नए चेहरों को मौका देना होगा। कन्हैया कुमार, सचिन पायलट, हार्दिक पटेल, आदि कई आई युवा चेहरे पार्टी के पास हैं जो अच्छे वक्ता भी हैं, जनता से संवाद करना भी जानते हैं और एक अच्छा इमेज भी है।

    दूसरी बात जो सबसे अहम है कि गांधी-फैमिली ही पूरे कांग्रेस को एकजुट रख सकती है वरना कई महत्वाकांक्षी नेता पूरे कांग्रेस में भीतर ही भीतर बिखराव पैदा कर सकते हैं (जैसे अभी सिद्धू बनाम कैप्टन विवाद पंजाब में सामने आया) ।

    सोनिया गांधी जो अभी तक कांग्रेस के अंतरिम अध्यक्ष भी हैं,अब स्वास्थ्य और निजी कारणों से चुनावों में प्रचार प्रसार से दूर ही रहती हैं।  ऐसे में राहुल और प्रियंका को फुल टाइम नेता बनना होगा, पार्ट-टाइम नेतागिरी कम-से-कम-कम मोदी-शाह के आगे हमेशा नाकामयाब रहेगी।

    मुद्दे तो हैं; विपक्ष (INC) को पकड़ने आना चाहिए…

    कांग्रेस को फिर से अपना खोया जनाधार पाना या मज़बूत करना है तो ये वक़्त सबसे महत्वपूर्ण हैं। इस समय हर व्व मुद्दा सामने है जो एक विपक्ष को चाहिए होता है सरकार को कटघरे में रखने के लिए। महँगाई, बेरोजगारी आज भी वैसे ही है जब कांग्रेस सत्ता में और बीजेपी विपक्ष में।

    2014 में तब की विपक्ष बीजेपी ने इन्हीं मुद्दों पर कांग्रेस की अगुवाई वाली मनमोहन सरकार को घेर लिया था। तब सोशल मिडिया इतना प्रभावी नहीं था और विपक्ष सड़कों पर था।

    आज विपक्ष सोशल मीडिया पर तो अपना संघर्ष दिखाता है लेकिन सड़कों पर आने से कतराता है। कोविड अव्यवस्था, किसान आंदोलन, CAA प्रोटेस्ट, बेरोजगारी, महंगाई, मुद्रास्फीति, और भी ढेरो  मुद्दे तो बहुत हैं घेरने के लिए, पर उसके लिए मजबूत, संघर्षवादी, कद्दावर एकजूट विपक्ष होना चाहिए। कांग्रेस पार्टी यहीं पर कमजोर मालूम पड़ती है।

    By Saurav Sangam

    | For me, Writing is a Passion more than the Profession! | | Crazy Traveler; It Gives me a chance to interact New People, New Ideas, New Culture, New Experience and New Memories! ||सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ; | ||ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ !||

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