पाकिस्तान मुस्लिम लीग के नेता और सांसद परवेज़ राशिद ने कहा कि साल 1999 में भारत और पाकिस्तान कश्मीर का हल निकालने के लिए रज़ामंद थे। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और नवाज़ शरीफ के मध्य कश्मीर पर शांयु वार्ता जारी थी। लेकिन तत्कालीन सेनाध्यक्ष परवेज़ मुशर्रफ ने इसे विफल करने के लिए कारगिल युद्ध छेड़ दिया था। इसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ की भी मंज़ूरी नही ली थी।
सांसद राशिद ने कहा कि नवाज़ सरकार को सत्ता से हटाकर परवेज़ मुशर्रफ ने एक गंभीर अपराध किया था। लेकिन नवाज शरीफ और अटल बिहारी वाजपेयी की वार्ता को विफल कर उन्होंने अक्षम्य अपराध किया था। उन्होंने कहा कि कारगिल युद्ध छिड़ते ही दोनों देशों को सरकारों ने वार्ता को रोक दिया। उन्होंने कहा कि यदि कारगिल युद्ध ने होता तो कश्मीर मसले का समाधान उसी दौरान हो गया होता।
75 वर्षीय परवेज़ मुशर्रफ फिलहाल दुबई में रहते हैं और उन पर कई मामले अदालत में चल रहे हैं। साल 2007 में मुशर्रफ ने संविधान भी बर्खास्त किया था, यह मामला अदालत में जारी है। साल 2016 में परवेज़ मुशर्रफ इलाज के बहाने दुबई गए थे और उसके बाद वतन वापस नहीं लौटे थे।
सांसद राशिद ने कहा कि कारगिल युद्ध से पूर्व भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने मीनार ए पाकिस्तान की यात्रा की थी। उनकी इस यात्रा का मकसद पाकिस्तान के गठन को अपनी रज़ामंदी देना था। इसके बाद दोनों देशों के मध्य बातचीत का माहौल तैयार हो गया था।
सांसद ने जोर देकर कहा कि परवेज़ मुशर्रफ को पाकिस्तान लाकर उसके गुनाहों को सज़ा दी जानी चाहिए। उनके हाथ हज़ारों कश्मीरियों के रक्त से सने हुए हैं। वह कारगिल युद्ध को शुरुआत नही करते तो आज कश्मीर मसले का समाधान हो गया होता।
कारगिल युद्ध के बाबत पाक सरकार ने शुरुआत में कहा था कि चरमपंथियों ने कारगिल की चोटी पर कब्जा किया था। अलबत्ता उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘इन द लाइन ऑफ फायर ‘ में कबूल किया कि इस युद्ध पाकिस्तान फौजी भी शामिल थे।
राष्ट्रपति बनने के बाद साल 2001 में परवेज़ मुशर्रफ आगरा शिखर वार्ता में शरीक हुए थे, हालांकि बातचीत से कोई परिणाम नही निकले। परवेज ने अपनी आत्मकथा में स्वीकार किया है कि इस सम्मेलन में उनको और वाजपेयी को किसी बड़े ओहदे के व्यक्ति के कारण अपमान का घूंट पीना पड़ा था।
मुशर्रफ के दावे पर अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि आगरा शिखर सम्मेलन की विफलता का जिम्मेदार मुशर्रफ ही था। अगर वह भारत के रुख को समझ पाते तो यह सम्मेलन सफल होता।