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    कंप्यूटर नेटवर्क में बिट stuffing

    विषय-सूचि

    बिट स्टफिंग क्या है? (what is bit stuffing in hindi)

    बिट स्टफिंग (bit stuffing) डाटा के अंदर नॉन-इनफार्मेशन इन्सर्ट करने कि एक प्रक्रिया है जिसके कारण बिट पैटर्न्स टूटते हैं और सूचनाओं के सिंक्रोनस ट्रांसमिशन पर असर पड़ता है।

    इसका सबसे ज्यादा उपयोग नेटवर्क और संचार के प्रोटोकॉल्स में किया जाता है जिसमे बिट stuffing ट्रांसमिशन की प्रक्रिया का एक जरूरी हिस्सा है।

    इसका उपयोग सामान्यतः बिट स्ट्रीम को कॉमन ट्रांसमिशन रेट पर लाने के लिए किया जाता है जिस से कि फ्रेम्स को भरा जा सके। इसका औप्योग रन-length लिमिटेड कोडिंग के लिए भी किया जाता है।

    बिट स्टफिंग के कार्य (function of bit stuffing in hindi)

    बिट फ्रेम्स को भरने के लिए डाटा लिंक के रिसीविंग end को उस पोजीशन के बारे में बताया जाता है जहां नये बिट स्टफ किये गये हैं।

    अब रिसीवर अतिरिक्त बिट को हटा देगा है ताकि वो ओरिजिनल रेट से बिट सतरं पर वापस पहुँच सके। ऐसा तब किया जाता है जब कोई कम्युनिकेशन प्रोटोकॉल को एक निश्चित फ्रेम का आकार चाहिए हो। बिट्स को डाल कर जरूरी साइज़ को पूरा कर दिया जाता है।

    बिट stuffing समान वैल्यू के लगातार आने वाले बिट्स कि संख्या कम करने का भी कार्य करता है जो कि ट्रांसमिट किये गये डाटा में रन-length लिमिटेड कोडिंग के लिए डाले जाते हैं। इस प्रक्रिया में अधिकतम अनुमति प्रदान किये गये लगातार आने वाले समान मान के बिट्स के बाद अपोजिट वैल्यू का बिट डाल दिया जाता है।
    उदाहरण के तौर पर मान लीजिये कि अगर लगातार संख्या 0 ही ट्रांसमिट हो रहा है तो रिसीवर सिंक्रोनाइजेशन खो देता है क्योंकि बिना वोल्टेज सेन्सिंग के ही बहुत सारा समय निकल जाता है। बिट stuffing का प्रयोग कर के बिट के वो सेट जो संख्या 1 से शुरू हो रहे हैं उन्हें एक निश्चित अंतराल पर 0 वाले स्ट्रीम में स्टफ कर दिया जाता है।

    सबसे ख़ास बात तो ये कि रिसीवर को बिट लोकेशन कि जानकारी भी देना जरूरी नही होता जब अतिरिक्त बिट को हटाया जाता है। बिट stuffing को reliable डाटा ट्रांसमिशन के लिए किया जाता है। ये यह भी सुनिश्चित करता है कि ट्रांसमिशन सही जगह से शुरू और ख़त्म हो।

    बिट स्टफिंग की प्रक्रिया (process of bit stuffing in hindi)

    अधिकतर बार फ्लैग के लिए एक 8 बिट का स्पेशल पैटर्न 011111110 का प्रयोग किया जाता है जो ये परिभाषित करता है कि फ्रेम कहाँ से शुरू हो रहा है और कहाँ पर ख़तम।

    इसमें फ्लैग के साथ वहीं समान समस्या है जो बाइट stuffing में होती है। अब इस प्रोटोकॉल में हम क्या करते हैं कि जब भी 0 और 5 लगातार 1 बिट आता है तो इसके बाद एक अतिरिक्त 0 को जोड़ देते हैं। इस अतिरिक्त बिट को बाद में रिसीवर हटा देता है।

    एक्स्ट्रा बिट को उन किसी एक 0 के बाद डाला जाता है जिसके पहले एक साथ पांच 1 आते हैं। इसमें ये नही देखा जाता कि अगले बिट का मान क्या है क्योंकि सेंडर को ये हमेशा पता होता है कि डाटा का सीक्वेंस या क्रम क्या है। ये डाटा सीक्वेंस में ही अतिरिक्त बिट जोड़ता है न कि फ्लैग सीक्वेंस में।

    इस लेख से सम्बंधित यदि आपका कोई भी सवाल या सुझाव है, तो आप उसे नीचे कमेंट में लिख सकते हैं।

    By अनुपम कुमार सिंह

    बीआईटी मेसरा, रांची से कंप्यूटर साइंस और टेक्लॉनजी में स्नातक। गाँधी कि कर्मभूमि चम्पारण से हूँ। समसामयिकी पर कड़ी नजर और इतिहास से ख़ास लगाव। भारत के राजनितिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक इतिहास में दिलचस्पी ।

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