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    बाइट stuffing क्या है? byte stuffing in hindi, computer network

    विषय-सूचि

    स्टफिंग की जरूरत (need of stuffing in computer network in hindi)

    फ्रामिंग कि प्रक्रिया के लिए डाटा लिंक लेयर जिम्मेदार होता है। फ्रामिंग का अर्थ हुआ नेटवर्क लेयर में बिट्स के स्ट्रीम को manageable यूनिट्स यानी कि फ्रेम्स में विभाजित कर देना।

    प्रत्येक फ्रेम में सेंडर और डेस्टिनेशन- दोनों का ही का एड्रेस होता है। डेस्टिनेशन एड्रेस का अर्थ हुआ उस जगह का एड्रेस जहां पर ये पैकेट कहाँ पर जाने वाला है और सेंडर का एड्रेस recipient को रिसिप्ट एकनॉलेज करने में मदद करता है।

    फ्रेम्स निश्चित आकार के भी हो सकते हैं या फिर वो वेरिएबल आकार के भी हो सकते हैं। फ्रेम्स कि बाउंड्री को भी परिभाषित करने कि जरूरत नहीं होती क्योंकि साइज़ का प्रयोग कर के ही ये पता चल जाता है कि फ्रेम कहाँ पर ख़त्म हो रहा है और अगला फ्रेम कहाँ से शुरू हो रहा है।

    लेकिन वेरिएबल आकार वाले फ्रामिंग में हमे फ्रेम का अंत और अगले फ्रेम के शुरुआत को परिभाषित करने कि जरूरत पड़ती है।

    एक फ्रेम को उसके अगले फ्रेम से अलग करने के लिए एक 8 बिट (या 1 बाइट) के फ्लैग को हर फ्रेम के शुरू और अंत में जोड़ दिया जाता है।

    लेकिन इसके साथ एक समस्या भी है और वो ये कि फ्लैग में प्रयोग किया गया कोई पैटर्न सूचना का भी एक एंग हो सकता है। इसी समस्या के समाधान के लिए दो रास्ते निकाले गये हैं। वो हैं:

    1. बाइट stuffing या करैक्टर stuffing
    2. बिट stuffing

    अब आगे हम बाइट stuffing के बारे में जानेंगे और इसकी प्रक्रिया समझेंगे।

    बाइट स्टफिंग क्या है? (what is byte stuffing in hindi)

    एक बाइट ()सामान्यतः एस्केप करैक्टर, ESC) जिसके पास एक पहले से परिभाषित पैटर्न होता है, उसे फ्रेम के डाटा सेक्शन में तब जोड़ दिया जाता है जब किसी डाटा के अंदर करैक्टर के रूप में वो समान पैटर्न हो जो कि फ्लैग में है।

    जब भी रिसीवर ESC करैक्टर को देखता है, वो इसे डाटा सेक्शन में से हटा देता है और अगले करैक्टर को डाटा कि तरह ट्रीट करता है (फ्लैग कि तरह नही)।
    लेकिन समस्या तब आती है जब कोई टेक्स्ट एक या उस से ज्यादा एस्केप करैक्टर समाहित किये हुए हो और उसके बाद एक फ्लैग आ जाए। इस समस्या को हल करने के लिए जो एस्केप करैक्टर टेक्स्ट का पार्ट है उसे किसी और एस्केप करैक्टर द्वारा मार्क कर दिया जाता है।

    कहने का मतलब ये हुआ कि अगर ESCAPE करैक्टर टेक्स्ट का पार्ट है तो एक अतिरिक्त 1 को जोड़ दिया जाता है ताकि ये दिखे कि दूसरा वाला 1 टेक्स्ट का ही पार्ट है।

    नोट– पॉइंट तो पॉइंट प्रोटोकॉल (PPP) एक बाइट ओरिएंटेड प्रोटोकॉल है।

    इस लेख से सम्बंधित यदि आपका कोई भी सवाल या सुझाव है, तो आप उसे नीचे कमेंट में लिख सकते हैं।

    By अनुपम कुमार सिंह

    बीआईटी मेसरा, रांची से कंप्यूटर साइंस और टेक्लॉनजी में स्नातक। गाँधी कि कर्मभूमि चम्पारण से हूँ। समसामयिकी पर कड़ी नजर और इतिहास से ख़ास लगाव। भारत के राजनितिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक इतिहास में दिलचस्पी ।

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