उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर सरगर्मियां तेज हो गई हैं। कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए ने महात्मा गाँधी के पोते गोपालकृष्ण गाँधी को अपना उम्मीदवार बनाया है वहीं भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए ने पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ राज्यसभा सांसद वेंकैया नायडू को अपना उम्मीदवार बनाया है। नायडू लम्बे वक़्त से राज्यसभा में है और विपक्षी सांसदों से भी उनके अच्छे सम्बन्ध है। वहीं गोपालकृष्ण गाँधी केंद्र सरकार में कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं और पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल रह चुके हैं। उनके भी एनडीए के कई सांसदों से अच्छे सम्बन्ध हैं। ऐसे में सांसदों के लिए यह तय करना मुश्किल हो गया है कि वो किसके साथ जायें और किसकी उम्मीदवारी का समर्थन करें।
आंकड़ों से कमजोर है गोपालकृष्ण गाँधी की दावेदारी
अगर आंकड़ों की बात करें तो वेंकैया नायडू का पलड़ा स्पष्ट रूप से भारी दिखाई देता है। उपराष्ट्रपति पद के चुनाव में वर्तमान में कुल 785 वोट हैं। दोनों सदनों की दो-दो सीटें अभी खाली पड़ी हैं। भाजपा और उसके समर्थक दलों से बनी एनडीए के पास 425 सांसद हैं। ओडिशा की बीजेडी, तेलंगाना की टीआरएस और वायएसआर कांग्रेस, पॉण्डिचेरी की एआईएनआर कांग्रेस, तमिलनाडु की एआईएडीएमके और पीएमके के सांसदों की कुल संख्या 101 है। इन सहयोगी दलों को मिलाकर वेंकैया नायडू के पक्ष में 526 सांसद होते है। इन आंकड़ों में वृद्धि के आसार हैं क्यूँकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद फ़ोन करके नीतीश कुमार की जेडीयू और शरद पवार की एनसीपी से समर्थन माँगा है। कांग्रेस और साथी दलों वाली यूपीए के पास कुल 230 सांसद है। जेडीयू, जेडीएस और एनसीपी के साथ आने की सूरत में यह संख्या बढ़कर 261 तक पहुंचेगी। ऐसे में गोपालकृष्ण गाँधी से जीत की उम्मीद करना बेमानी होगी।
बता दें कि उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव 5 अगस्त को होंगे और चुनाव परिणाम उसी दिन शाम को घोषित होंगे। आंकड़ों के हिसाब से वेंकैया नायडू का उपराष्ट्रपति बनना तय है और ऐसे में चुनाव की महज़ एक औपचारिकता रह गई है।