Sat. Apr 27th, 2024
    शिवसेना

    वो कहते है ना, “हमें तो अपनों ने लुटा गैरों में कहां दम था, हमारी तो चुनावी कश्ती भी वहा डूबी जहां सियासत का पानी कम था“। कुछ ऐसा ही हाल है इस समय भाजपा का। एक बहुत ही मशहूर मुहावरा है कि “गंजे के सर पर ओले पड़ गए” आईए समझते है कैसे, एक तो गुजरात विधानसभा चुनाव, साथ ही उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव, ऊपर से भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं द्वारा विरोधी सुर निकालना और हद्द तो अब हो गई है, जनाब जब भाजपा के सबसे बड़े सहयोगी दल शिवसेना उनके विरोध में उतर आई है। वो कहते है ना, बाहर के लोगों से तो हर कोई सतर्क रहता है लेकिन जब अपने घर वाले ही विभीषण बन जाए तो क्या हो, क्यूंकि अपने घर की बगावत से तो बलवान, ज्ञानवान और विद्वान् रावण भी अपनी लंका नहीं बचा पाया था।

    लड़ाई का सामान्य सा नियम है कि “अगर लड़ाई जितनी हो तो दुशमन में से किसी एक को अपना मित्र बना लो”। एक बहुत ही मशहूर कहावत है कि “बर्बादें गुलिस्तां करने को एक ही उल्लू काफी है, यहां तो हर ड़ाल पे उल्लू बैठा है अब अंजामे गुलिस्तां क्या होगा”।

    दरअसल, पार्टी के मुखपत्र सामना में लिखे लेख में शिवसेना ने योगी सरकार पर आरोप लगाया है कि निकाय चुनाव में जीत के लिए यूपी में भाजपा सरकार राजनीतिक चाल चलेगी, सिर्फ इतना ही नहीं भाजपा पर ईवीएम से छेड़छाड़ का भी आरोप लगाया है। शिवसेना ने भाजपा सरकार पर आरोप लगाया है कि जहां इवीएम से छेड़छाड़ नहीं होती वहां भाजपा, कांग्रेस से हार जाती है, चित्रकूट, मुरैना और सबलगढ़ इस बात को दर्शाता है, अब शायद यही डर योगी सरकार को सता रहा है, भाजपा का यूपी निकाय चुनाव जीतना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इसका असर गुजरात में होने जा रहे विधानसभा चुनाव पर भी पड़ेगा।