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    आशका गोराडिया: सोशल मीडिया पर युवाओं की निष्क्रिय आक्रामकता खत्म होनी चाहिए

    कुसुम फेम आशका गोराडिया हाल ही में पेशेवर प्रतिबद्धता के कारण लखनऊ गयी थी। लगभग एक दशक के बाद, आशका इस शहर में गयी थी और वहा जाने के बाद उन्होंने देखा कि शहर तो पूरी तरह से बदल गया है।

    टाइम्स को इंडिया को उन्होंने बताया-“पिछली बार मैं थोड़े समय के लिए यहां आई थी और इस बार भी मैं थोड़े समय के लिए यहां हूँ, लेकिन शहर अच्छा है, लोग गर्म हैं और यह शानदार है।”

    अभिनेत्री ने बताया कि उन्हें वहां का खाना और वहा की मशहूर चिकनकरी कपड़े भी बहुत पसंद आये। उन्होंने वहा कबाब का आनंद लिया और बहुत सारी शौपिंग भी की।

    aashka

    आशका ने कहा कि वह जल्द मुंबई में मतदान करेंगी। वह आम चुनाव के लिए उत्साहित हैं और उनका कहना है कि अब वक़्त आ गया है जब युवाओं को देश का कार्यभार ले लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि बिना ज्ञान के ऑनलाइन लड़ने और बहस करने की वजाय, उन्हें बाहर जाकर मतदान करना चाहिए।

    उनके मुताबिक, “हम राजनीति के बारे में चर्चा करते हैं, लेकिन सिर्फ यह दिखाने के लिए है कि हम बौद्धिक हैं। वास्तव में हमारे पास इसमें शून्य अनुभव है, शून्य ज्ञान है। मेरा मतलब है कि युवा अपने घर के मासिक वित्त को मुश्किल से बजट कर सकते हैं और उनके पास वित्त मंत्री के लिए प्रश्न हैं। मेरी चिंता यह है कि सोशल मीडिया पर युवाओं की निष्क्रिय आक्रामकता खत्म होनी चाहिए।”

    aashka-goradiya

    आशका टीवी इंडस्ट्री में 17 सालों से हैं और उनका कहना है कि उन्होंने आज तक जो कुछ भी हासिल किया है, उससे वह खुश हैं। उन्होंने कहा-“लगभग हर शो, हर नेटवर्क का हिस्सा होना, मैंने लगभग हर निर्माता के साथ काम किया हुआ है और उन्हें मैं मेरे लिए इतने सारे खूबसूरत किरदार लिखने के लिए पर्याप्त धन्यवाद नहीं दे सकती।”

    फिर उन्होंने डेली सोप की स्थिति के बारे में भी बात की और बताया कि क्या कंटेंट प्रतिगामी हो गया है। उनके मुताबिक, “एक पेशेवर अभिनेता को पता है कि टेलीकास्ट के आगे कुछ नहीं है और ये ही एक अभिनेता या निर्माता या किसी के भी लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज़ है। लेकिन हालात अब बेहतर हो गए हैं, पहले हमारे पास कोई शिफ्ट नहीं थी, अब है। और चीज़ें बेहतर हो जाएंगी।”

    ashka

    “अब कंटेंट की बात करें तो, पहले केवल दूरदर्शन था और फिर ज्यादा नेटवर्क आ गए। एक नेटवर्क से सौ नेटवर्क हो गए और साथ ही डिजिटल स्पेस भी, ये केवल मनोरंजन है। हम मनोरंजक कंटेंट को प्रगतिशील और प्रतिगामी की तरह नहीं देख सकते क्योंकि कहानीकार एक कहानी बताने की कोशिश कर रहे हैं और जब एक कहानीकार एक कहानी कहता है, उस कहानी का प्रभाव उनके दिमाग में तुम्हारे दिमाग से अलग होता है क्योंकि ये तुम्हारी कहानी नहीं है। और अगर उनकी कहानी देश भर में काम कर रही है तो मतलब कहानीकार ने अपना काम कर दिया।”

     

    By साक्षी बंसल

    पत्रकारिता की छात्रा जिसे ख़बरों की दुनिया में रूचि है।

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