मुंबई हमलों के मास्टरमाइंड व जमात-उद-दावा प्रमुख हाफिज सईद ने आखिरकार लाहौर में मिल्ली मुस्लिम लीग (एमएमएल) का पहला राजनीतिक कार्यालय खोल दिया है। पाकिस्तान सरकार के भारी विरोध व चेतावनियों के बावजूद चुनावी गतिविधियों के लिए हाफिज सईद ने अपना पहला कदम बढ़ा लिया है।
अब पाकिस्तान के अगले साल 2018 में होने वाले आम चुनावों में हाफिज सईद की पार्टी चुनावी रंगत में दिखने की तैयारी कर चुकी है। बस हाफिज सईद को राजनीतिक दल के रूप में अपनी पार्टी को पंजीकृत किए जाने की दूरी है। इसके लिए हाईकोर्ट में याचिका भी दायर कर रखी है।
आतंकी हाफिज सईद ने जमात-उद-दावा के सहायक संगठन मिल्ली मुस्लिम लीग के कार्यालय का उद्घाटन किया है। हाफिज सईद ने कुछ दिनों पहले ही पाकिस्तान के अगले साल होने वाले चुनावों में शामिल होने की बात कही थी। इसे लेकर वो काफी सक्रिय नजर आ रहा है।
राजनीतिक कार्यालय का उद्घाटन करने के बाद हाफिज सईद ने उस क्षेत्र के नागरिकों की समस्याओं को भी सुना। पाकिस्तान का आंतरिक मंत्रालय व सरकार हाफिज सईद की पार्टी मिल्ली मुस्लिम लीग को राजनीतिक दल के रूप में पंजीकृत करने का विरोध कर रहा है।
गौरतलब है कि सितंबर में हुए एक जगह पर स्थानीय चुनाव में मिल्ली मुस्लिम लीग ने 6000 वोट को हासिल करके चौथे स्थान पर रही थी।
पाकिस्तान चुनाव आयोग को पाक सरकार ने कहा है कि वो हाफिज सईद के दल को राजनीतिक पार्टी के रूप मे पंजीकृत न करे। पाकिस्तान के गृह मंत्रालय ने इस्लामाबाद हाईकोर्ट को भी कहा है कि वो मिल्ली मुस्लिम लीग की राजनीतिक दल में मान्यता देने वाली याचिका पर विचार न करे।
चुनावी गतिविधियों के लिए सक्रिय दिख रहा हाफिज सईद
पाक सरकार ने कहा कि अगर सईद की मिल्ली मुस्लिम लीग का पंजीकरण राजनीतिक दल के रूप में हो गया तो इससे राजनीति में हिंसा और उग्रवाद पैदा होगा।
हालांकि अभी तक ये मामला कोर्ट में चल रहा है। मिल्ली मुस्लिम लीग को अभी तक राजनीतिक दल के रूप में पंजीकृत नहीं किया गया है। लेकिन हाफिज सईद ने पाक चुनावों में अपनी धाक जमाने के लिए कार्यालय का उद्घाटन तक कर लिया है।
अमेरिका व भारत के विरोध के बावजूद भी हाफिज सईद सक्रिय होकर पाक आम चुनावों की तैयारियों में जुट गया है। दिलचस्प बात यह है कि एमएमएल कार्यालय का उद्घाटन नेशनल असेंबली निर्वाचन क्षेत्र एनए -120 लाहौर जिले से हुआ है।
इस क्षेत्र से नवाज शरीफ परंपरागत रूप से चुनाव लड़ते हिए नजर आए है। साल 1985 में यहां से राजनीति शुरू करने वाले शरीफ को कभी हार का सामना नहीं करना पड़ा है।