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    लालकृष्ण आडवाणी

    बाबरी विध्वंस को आज पुरे 25 साल हो गए है। इस मामले कि सुनवाई कोर्ट कर रही है लेकिन भारत के इतिहास में बाबरी की घटना अपने आप में अहम है। बाबरी पर लोगों की अलग अलग राय है। कुछ लोग इस ढांचे को मस्जिद बताते है, कुछ लोग इसे राम भूमि बताते है। समाज का एक वर्ग ऐसा भी है जो इस ढांचे को सिर्फ विवादित ढांचा मानता है।

    बाबरी का ढांचा पौराणिक होते हुए भी नवीन है। भारतीय राजनीती में तो इसका गजब का योगदान है। चुनाव आते ही यह मामला सभी राजनेताओं के जुबान पर आ जाता है तथा चुनाव के खत्म होते ही यह मामला भी ख़त्म हो जाता है। राजनेताओं के लिए बाबरी की घटना ऐसी घटना है जो हमेशा लाभप्रत है, इस मामले को जब भी किसी राजनीतिक पार्टी ने चुनावी हथियार बनाया है पूरा विपक्ष ढेर हो गया है।

    बाबरी विध्वंस के बाद से भारत की पूरी राजनीति इस मुद्दे के इर्द गिर्द घूम रही है। हमेशा कुछ नया ढूंढ़ने की चाह रखने वाली मीडिया भी इस पुराने मुद्दे में रूचि रखती है। इस मुद्दे पर रह रहकर कोई ना कोई तथ्य बयान या विचार सामने आ ही जाते है जो लोगों को हैरत में डाल देते है।

    बाबरी विध्वंस विवाद से लालकृष्ण आडवाणी का पुराना नाता रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने भी लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती सहित आठ लोगों को इस मामले में संदिग्ध मानते हुए इनके खिलाफ आपराधिक केस चलाने का आदेश दिए है। लालकृष्ण आडवाणी की नजर से अगर इस पुरे घटनाकर्म को देखा जाए तो उनका दावा है कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया है।

    आडवाणी ने अपनी आत्मकथा ‘माय कंट्री माय लाइफ’ में इस बात को लिखा है कि “उनकी रथ यात्रा को भारत से भारी समर्थन प्राप्त था और लोग भारी सुरक्षा के बावजूद खुश थे तथा जश्न मना रहे थे”, अपनी पुस्तक में आडवाणी एक जगह यह भी कहते है कि इस विध्वंस के बाद लोगों में ख़ुशी थी, यहां तक कि सरकारी कर्मचारी और अधिकारी भी इस विध्वंस पर प्रसन्न थे। पुलिस को भी कोई आपत्ति नहीं थी। किताब में उन्होंने कहा है कि राम रथ यात्रा को भारत से जैसा समर्थन मिला उसकी उम्मीद नहीं थी।