Mon. Nov 18th, 2024
    डॉ. आंबेडकर

    देश भर में 14 अप्रैल के दिन स्वतंत्र भारत के सबसे बड़े दूरद्रष्टा, भारतीय संविधान के वास्तुकार बाबा साहेब श्री भीमराव आंबेडकर का जन्म-दिन बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है। बाबा साहेब ने जाति-मुक्त भारत का सपना देखा था जिसमें लोकतांत्रिक मूल्यों का सही अर्थों में समावेश हो। उन्होंने संविधान-निर्माण में हर वो कोशिश की जिस से देश कब सभी नागरिकों को बराबरी का अधिकार मिले।

    जाति-व्यवस्था खिलाफ थे बाबा साहेब आंबेडकर

    बाबा साहेब ने जिंदगी भर जाति-व्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी और इसका खुलकर विरोध किया। उन्होंने संविधान में भी जाति-व्यवस्था के कारण जिंदगी भर की टीस को शामिल किया ताकि स्वतंत्र भारत मे आगे किसी “भीमराव” को किसी ऊँची जाति द्वारा सामाजिक शोषण का शिकार ना होना पड़े।

    निःसंदेह आज़ाद भारत ने पिछले 75 सालों में जातियों के बीच की कुछ दीवारें तोड़ी हैं पर आज भी “जाति है कि जाती नहीं” भारतीय समाज की कड़वी हकीकत है। इस देश की राजनीति आज भी जाति पर आधारित है। समाज के कुछ प्रमुख व्यवस्थाओं पर किसी एक जाति-विशेष का कब्जा है। मसलन मंदिरों और पूजा पाठ को ही ले लीजिए… अपवादों को छोड़ दें तो ब्राह्मणों का वर्चस्व आज भी इस पर कायम है।

    आये दिन यह ख़बर आती है कि गाँव मे दलित दूल्हे की बारात निकालने नहीं दिया गया। आज भी देश मे एक आईपीएस (IPS) दलित लड़के की शादी में गांव में अपनी बारात निकालने कब लिए भारी पुलिस बल की जरूरत पड़ती है। जब एक IPS अधिकारी के साथ ये हाल है, तो आम दलित नागरिकों के साथ क्या हालात होंगे।

    हिंदी भाषी क्षेत्र में हम सब गर्व से अपनी गाड़ियों के पीछे जाट, राजपूत, ब्राह्मण, गुर्जर, क्षत्रिय आदि लिखवाते हैं। अब गौर से सोचिए कि इसका क्या मतलब है…

    बाबा साहेब ने आर्थिक और लोकतांत्रिक दृष्टि से समृद्ध और सुदृढ एक ऐसे भारत का सपना देखा था जो जाति-व्यवस्था से मुक्त हो। परंतु देश की राजनीति ने बाबा साहेब को भी  “दलित नेता” का तमगा देकर एक सीमित जातिगत दायरा में बांध दिया और साथ ही वोट बैंक वाली राजनीति ने देश को जाति मुक्त बनाने के बजाए छोटी-छोटी जातियों में बांटने का ही काम किया।

    ऐसे में फूल माला अर्पित करने, सोशल मीडिया पर स्टेटस लगाने से आगे बढ़कर इस देश के नागरिक होने के नाते एक सवाल हम सबको खुद से पूछना चाहिए कि क्या हम बाबा साहेब के सपनों के भारत को सही दिशा और दशा दे पा रहे हैं?

    डॉ आंबेडकर: “बराबरी के अधिकार” के सबसे बड़े योद्धा

    बाबा साहेब उस दौर में “बराबरी का अधिकार” की लड़ाई लड़ रहे तब जब देश और समाज जाति, धर्म, वर्ग, और लिंग के आधार पर कई सतहों में विभक्त था। उनका बचपन जाति-जनित कुंठा और अवहेलना से भरा रहा था और वह जिंदगी भर इसके ख़िलाफ़ लड़ते रहे।

    आज समाज के नीची समझी जाने वाली जातियों के अधिकार दिलाने की बात हो या महिलाओं के अधिकारों को सवैधानिक सुरक्षा कवच दिलाने की बात हो, बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर का योगदान अद्वितीय है। बाबा साहेब संभवतः पहले वो व्यक्ति थे जिन्होंने जातीय संरचना के दायरे में महिलाओं की स्थिति को समझने की कोशिश की।

    कानून मंत्री के तौर पर हिन्दू कोड बिल लाने की संकल्पना उनके इसी सोच की उपज थी पर अफसोस यह बिल संसद में पास नहीं हो सका और इसी वजह से कानून मंत्री के पद से उन्होंने इस्तीफा दे दिया। अगर यह बिल पास हो जाता तो यकीन जानिए, समाज मे महिलाओं के संदर्भ में व्याप्त हर बाधा का इलाज इस बिल में था।

    यह एक कड़वी सच्चाई है कि हमें एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अभी अपने समाज मे पूर्ण रूप से “बराबरी के अधिकार” को सही संदर्भ में स्थापित करने के लिए काफी लंबी दूरी तय करनी होगी।

    समाजिक विषमता के खिलाफ थे बाबा साहेब

    डॉ आंबेडकर का मानना था कि समाज के पिछड़ेपन के लिए जिम्मेदार है शिक्षा का अधिकार का सीमित होना। वे सभी धर्मों और वर्गों के महिलाओं के शिक्षा के प्रवक्ता रहे। उनका मानना था कि समाज मे पुरुषों से ज्यादा महत्वपूर्ण महिलाओं की शिक्षा है क्योंकि वे परिवार और समाज की धुरी होती हैं और इसके लिए उन्होंने संविधान में कई कानूनी-व्यवस्था भी की।

    डॉ आंबेडकर: संक्षिप्त जीवन-परिचय

    वर्तमान मध्य प्रदेश के मऊ (Mho) में 14 अप्रैल 1891 को बाबा साहेब आम्बेडकर   का जन्म एक ग़रीब दलित परिवार में हुआ। उनका बचपन जातीय भेदभाव का शिकार रहा और यही वो वजह बनी जो “रामजी सकपाल” (डॉ आंबेडकर का बचपन का नाम) को आगे चलकर आजाद भारत के संविधान निर्माता “बाबासाहेब डॉ भीमराव आंबेडकर” बना गया।

    बाबा साहेब की विद्वता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके पास 64 विषयों में मास्टर्स की उपाधि थी। बाबा साहेब हिंदी, पाली, संस्कृत, अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, मराठी, पर्सियन और गुजराती सहित 9 भाषाओं के जानकार थे। इसके अलावा उन्होंने विश्व भर के कई धर्मो की 21 साल तक तुलनात्मक अध्ययन किया।

    संविधान निर्माण करने वाली कमिटी के अध्यक्ष और आज़ाद भारत के पहले क़ानून मंत्री डॉ आंबेडकर ने अपने जीवन के आखिरी दिनों में लाखों समर्थकों कब साथ बौद्ध धर्म को अपना लिया था। 6 दिसंबर 1956 की रात को भारत माता का एक सच्चा सपूत ऐसा सोया कि फिर कभी नहीं उठ सका और उनकी मृत्यु नींद में भी हो गई।

    डॉ आंबेडकर अकेले ऐसे भारतीय जिनकी प्रतिमा लंदन संग्रहालय में कार्ल मार्क्स के साथ लगाई गई है। राजनीतिक नफा-नुकसान के कारण उन्हें भारत रत्न देने मव काफ़ी देर हुई और 1990 में उन्हें भारत रत्न दिया गया जिसका वे सबसे पहले हकदार थे।

    संविधान निर्माण के बाद क्या कहा था डॉ. आंबेडकर ने?

    डॉ. आंबेडकर को “संविधान निर्माता” “आधुनिक मनु” सहित कई उपाधियां दी गयी है। आज़ाद भारत को एक ऐसे संविधान की जरूरत थी जो जाति, धर्म और भाषा सहित कई आयामों पर बंटे हुए भारतवर्ष जैसे देश को जोड़कर रख सके।

    संविधान निर्माण की जिम्मेदारी को पूरा करने के बाद डॉ आंबेडकर ने कहा था- ” मैं महसूस करता हूँ कि भारत का संविधान साध्य है, लचीला है पर साथ ही यह इतना मजबूत है कि देश को शांति और युद्ध दोनों समय मे जोड़ कर रखने में सक्षम होगा। मैं कह सकता हूँ कि अगर कुछ गलत हुआ तो इसका कारण यह नहीं होगा कि हमारा संविधान खराब था बल्कि इसका उपयोग करने वाला मनुष्य ही गलत था।”

    निःसंदेह आज़दी के बाद से आज तक जब जब देश के हालात सोचनीय हुए, भारत का संविधान ही हर तिलिस्म की चाभी साबित हुआ है। यह शाश्वत सत्य है कि आज 75 साल बाद भी उनके बनाये संविधान ने देश को जोड़कर रखा है और हर नागरिक को उसके अधिकार दिलाने में भूमिका निभाता रहा है।

    राष्ट्रपति कोविंद, पीएम मोदी, राहुल गाँधी सहित देश ने दी श्रद्धांजलि

    राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद , प्रधानमंत्री मोदी, कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए नमन किया। देश भर में बाबा साहेब को नमन किया गया और उनके दिखाए रास्तों पर चलने की प्रतिज्ञा ली गई।

     

    डॉ. आंबेडकर को यह होगी सच्ची श्रद्धांजलि

    आज देश मे आये दिन हिन्दू मुस्लिम दंगे अखबारों की सुर्खियाँ बन रही हैं। जाति-गत राजनीति का बोलबाला है। महिलाएं आज भी अपने अधिकारों के लिए और सम्मान के लिए लड़ रही हैं। जाति धर्म और लिंग के आधार पर विभेद आज भी कहीं थोड़ा तो कहीं ज़्यादा विद्यमान है। कानून को आये दिन तोड़ा भी जाता है और उसे अपने हाँथो में लेने की कोशिश भी की जाती है।

    ऐसे कई समस्याएं हैं जिसे लेकर एक नागरिक के रूप में हमें अपनी गलतियां स्वीकार करनी पड़ेगी। क्या हमने बाबा साहेबआंबेडकर के सपनों का यही भारत बनाना था??

    बाबा साहेब ताउम्र ऊँच-नीच, जाति-धर्म, और लिंग के आधार पर समाज मे व्याप्त भेदभाव के ख़िलाफ़ लड़ते रहे। इसलिए हम इस देश के सभी नागरिक उनके बताए कानून के रास्तों पर चलें और एक दूसरे का सम्मान करते हुए सामाजिक सद्भाव को बरकरार रखें, देश की तरफ़ से बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी।

    By Saurav Sangam

    | For me, Writing is a Passion more than the Profession! | | Crazy Traveler; It Gives me a chance to interact New People, New Ideas, New Culture, New Experience and New Memories! ||सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ; | ||ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ !||

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *