तालिबान ने रविवार को अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिको पर हमले जो बरक़रार रखने का संकल्प लिया है खासकर जब तक शान्ति समझौता मुकम्मल नहीं हो जाता है। चरमपंथी समूह के प्रवक्ता जुबिल्हुल्लाह मुजाहिद ने कहा कि “जब तक अमेरिका के साथ कोई समझौता नहीं हो जाता है तब तक हम अमेरिका के सैनिको पर हमलो को जारी रखेंगे।”
अमेरिकी सैनिको पर हमला
उन्होंने कहा कि “सरकार के टाइटल के तहत हम काबुल के प्रशासन से वार्ता नहीं करेंगे और हमले पहले भी इस तरीके की वार्ता को ख़ारिज किया है।” बीते महीने काबुल में एक कार में आतंकवादी हमला किया गया था जिसमे एक अमेरिकी सैनिक सहित 12 लोगो की मौत हो गयी थी।
इस हमले के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने तालिबान के साथ वार्ता को रद्द कर दिया था और शान्ति समझौते को ख़ारिज कर दिया था। अफगानी शान्ति के बाबत पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच वार्ता का सिलसिला जारी है हालाँकि अफगानी सरकार इसके समर्थन में नहीं है।
तालिबान ने अफगानिस्तान के प्रशासन को अमेरिका के हाथो की कठपुतली करार दिया है और उन पर विश्वास करने से इनकार किया है। अफगान राष्ट्रपति के पूर्व सलाहकार दाउद सुल्तानजोय ने कहा कि “शान्ति वार्ता में शामिल देशो को अन्य भागीदारो के विशवास को बढाने के जरुरत है और युद्धग्रस्त देश में स्थिरता लाने के लिए समानांतर प्रयासों की आलोचना करनी चाहिए।”
राष्ट्रपति अशरफ गनी के प्रवक्ता सैदिक सिद्दीकी ने पाकिस्तान की निंदा की और कहा कि “हमें नहीं पता कि क्यों तालिबान-पाकिस्तान की वार्ता हो रही है।” तालिबान का अफगानिस्तान पर नियंत्रण साल 1990 के दशक के अंत में था तब भारत के संबंध चरमपंथी समूह के साथ नहीं थे। पाकिस्तान उन चुनिंदा देशो में शामिल है जिसके तालिबान के नियंत्रण वाले अफगानिस्तान के साथ संबंध थे।
भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा कि “वैध चयनित सरकार सहित अफगान सरकार के सभी विभाग शान्ति प्रक्रिया का हिस्सा होने चाहिए। सभी प्रक्रियाओं को संवैधानिक विरासत और राजनीतिक जनमत का सम्मान करना होगा।”