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    डोनाल्ड ट्रम्प और किम जोंग उन

    वियतनाम में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन के मध्य वार्ता के असफलता के बाद स्थितियां खराब हो रही है। इस वार्ता के बाद पहली बार अमेरिका ने उत्तर कोरिया पर प्रतिबंध लगाए थे। अमेरिका ने उत्तर कोरिया के साथ ही चीन की दो कंपनियों पर भी प्रतिबंध लगाए हैं। इन प्रतिबंधों के बावजूद चीनी कंपनियों ने उत्तर कोरिया को मदद पंहुचाई थी।

    रायटर्स के मुताबिक प्रतिबंधों के बाबत ट्रम्प प्रशासन ने कहा कि “इसके जरिये वह उत्तर कोरिया को आर्थिक नुकसान नहीं पंहुचना चाहते हैं। वह इस बात को सुनिश्चित करना चाहता है कि उत्तर कोरिया परमाणु कार्यक्रमो को बढ़ा न सके। इसके अलावा वह प्रतिबंधों का पूर्ण रूप से पालन करें, यह सभी देशों पर एक तरह से लागू होता है। हालांकि इन प्रतिबंधों के बावजूद कोरियाई प्रायद्वीप में तनाव बढ़ सकता है।

    प्रतिबंधों के साथ ही अमेरिका ने स्पष्ट कर दिया है कि वह उत्तर कोरिया की मांग को पूरा नही करेगा और इससे न सिर्फ पियोंगयांग बल्कि बीजिंग भी खतरे में हैं। उत्तर कोरिया की मदद करने वाली चीन की सभी कंपनियों पर अमेरिका के प्रतिबंधों का खतरा मंडरा रहा है।

    चीन नें किया पलटवार

    चीन नें अमेरिका द्वारा चीनी कंपनियों पर लगाये गए प्रतिबन्ध का कड़ा जवाब दिया है।

    चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग नें मीडिया से बातचीत के दौरान कहा,

    चीन संयुक्त राष्ट्र द्वारा उत्तर कोरिया पर लगाये जा रहे प्रतिबन्ध का पालन कर रहा है, लेकिन यदि कोई देश अपने नियमों के अनुसार यदि कोई प्रतिबन्ध लगाता है, तो चीन उसका विरोध करेगा।

    जाहिर है गेंग शुआंग का निशाना अमेरिका की ओर था।

    राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन ने फॉक्स न्यूज़ से कहा कि “हर किसी को सुनिश्चित करना चाहिए कि वह उत्तर कोरिया की किसी भी तरीके से मदद नही करेगा।”

    अमेरिका और उत्तर कोरिया की असफल बैठक

    अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन ने रविवार को उत्तर कोरिया पर निशाना साधते हुए कहा कि “अफसोसजनक, वह अमेरिका के साथ परमाणु निरस्त्रीकरण समझौते को नहीं करना चाहते हैं। उत्तर कोरिया इसे करने के इच्छुक नहीं है जो उसे करना चाहिए। बीती रात उन्होंने गैर जरुरी बयान जारी किया कि वह परमाणु और बैलिस्टिक मिसाइल का परिक्षण करेंगे। जो उनकी बेहतरी के लिए अच्छा विचार नहीं है।”

    दा हिल के मुताबिक उन्होंने कहा कि “राष्ट्रपति इस खतरे को बातचीत के जरिये सुलझाना चाहते हैं। वह उत्तर कोरिया को परमाणु हथियारों से मुक्त देखता चाहते हैं।” उन्होंने उत्तर कोरिया के साथ वार्ता के आयोजन में चीन की भूमिका की बात कही थी। उत्तर कोरिया के प्रमुख साझेदार चीन भी परमाणु मुक्त कोरियाई प्रायद्वीप की इच्छा रखता है।

    उन्होंने कहा कि “चीन अपनी परमाणु क्षमता में विस्तार कर रहा है। इसलिए हम अमेरिका में नेशनल मिसाइल डिफेन्स सिस्टम को मज़बूत करना चाहते हैं। यही कारण है कि क्यों हम हथियार नियंत्रण पर वार्ता करना चाहते हैं। मसलन रूसियों के साथ चीन को चर्चा में शामिल करना बेहतर रहेगा।”

    उत्तर कोरिया की वरिष्ठ राजनयिक ने कहा कि “अमेरिका के साथ बातचीत को रद्द करने पर विचार कर रहा है और वांशिगटन द्वारा रियायत ने देने पर मिसाइल व परमाणु परिक्षण पर प्रतिबन्ध के बाबत दोबारा सोच सकते हैं।”

    तास न्यूज़ के मुताबिक उप विदेश मंत्री ने पत्रकारों से कहा कि “हनोई सम्मेलन में अमेरिकी मांगों को पूरा करने का हमारा कोई इरादा नहीं है और न ही हम इस तरह की बातचीत में शरीक होने के इच्छुक है। अमेरिकी राज्य सचिव माइक पोम्पिओ और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन ने माहौल को शत्रुतापूर्ण और अविश्वासी बना दिया था। इसलिए उत्तर कोरिया के नेता और अमेरिका के बीच बातचीत करने का रचनात्मक प्रयास बाधित हो गया था।”

    By कविता

    कविता ने राजनीति विज्ञान में स्नातक और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है। वर्तमान में कविता द इंडियन वायर के लिए विदेशी मुद्दों से सम्बंधित लेख लिखती हैं।

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