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    अमित शाह और अहमद पटेल

    कल हुए गुजरात राज्यसभा चुनावों के परिणाम आने के बाद से इस बात की चर्चा होनी शुरू हो गई थी कि क्या अमित शाह का दांव कमजोर पड़ गया है। वैसे अगर प्रत्यक्ष तौर पर देखें तो यह अमित शाह और भाजपा की हार नहीं कही जा सकती। पर परोक्ष रूप से यह कांग्रेस की शाह एंड कंपनी पर मनोवैज्ञानिक जीत है। अहमद पटेल ने जिस वक़्त राज्यसभा में दावेदारी पेश की थी उस वक़्त उन्हें 65 विधायकों का समर्थन हासिल था। इसमें कांग्रेस पार्टी के 57 विधायक थे और शेष विधायक एनसीपी, जेडीयू और निर्दलीय थे। उस परिदृश्य में राज्यसभा पहुँचने के लिए 46 विधायकों का साथ जरुरी था। ऐसे में कांग्रेस पार्टी का दलबल अकेले ही अहमद पटेल को राज्यसभा भेजने के लिए काफी था। ऐसे वक़्त में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने अहमद पटेल की उम्मीदवारी के खिलाफ अपनी चालें चलनी शुरू की और एक के बाद एक कर के कांग्रेस को मात देते गए।

    उनकी इस बाज़ी में पहली चाल बनी राष्ट्रपति चुनावों में गुजरात कांग्रेस के 7 विधायकों द्वारा एनडीए उम्मीदवार रामनाथ कोविंद के पक्ष में की गई क्रॉस वोटिंग। इस घटना ने गुजरात कांग्रेस की जड़ें हिला दी थी। पार्टी में अंतर्कलह की बातें पहले से सुनने में आ रही थी जो अब सतह तक आ चुकी थी। राष्ट्रपति चुनाव से ठीक पहले अमित शाह गुजरात गए थे और उनके दौरे को इसकी मुख्य वजह बताया गया। अगली चाल कांग्रेस ने चली थी जो उसको खुद पर भारी पड़ गई। कांग्रेस ने गुजरात में पार्टी के वरिष्ठ नेता और विधानसभा में नेता विपक्ष शंकर सिंह वाघेला को इस क्रॉस वोटिंग के लिए जिम्मेदार ठहराया जिससे क्षुब्ध होकर शंकर सिंह वाघेला ने अपने जन्मदिन पर ही बगावत कर दी। कांग्रेस के कई विधायक उनके साथ आ गए और गुजरात में कांग्रेस विधायकों के इस्तीफों का दौर शुरू हो गया। एक के बाद एक हो रहे इन इस्तीफों ने गुजरात कांग्रेस को डांवाडोल कर दिया और पार्टी को अहमद पटेल की दावेदारी खतरे में नजर आने लगी। एक के बाद एक कांग्रेस के 6 विधायक इस्तीफ़ा दे चुके थे और 7 अन्य विधायक बगावत को तैयार थे। ऐसे में कांग्रेस ने अपने भरोसेमंद 44 विधायकों को बेंगलुरु के ईगलटन रेसॉर्ट में 8 दिनों तक ठहराया। यह रेसॉर्ट कर्नाटक के एक कांग्रेसी नेता डीके शिवकुमार का है। डीके शिवकुमार राज्य के ऊर्जा मंत्री भी हैं। भारी मात्रा में नकदी होने की आशंका पर आयकर विभाग ने रेसॉर्ट समेत उनके ३५ ठिकानों पर छापा मारा था। इस छापेमारी को भी गुजरात राज्यसभा चुनावों से जोड़कर देखा गया और कांग्रेस ने आरोप लगाया कि अर्धसैनिक बलों ने उसके विधायकों को डराने-धमकाने की कोशिशें की।

    तत्पश्चात इन विधायकों को आणंद के एक रेसॉर्ट में ठहराया गया और चुनाव के दिन इन्हें बस से लेकर खुद अहमद पटेल विधानसभा पहुँचे। चुनाव के एक दिन पहले ही कांग्रेस की सहयोगी एनसीपी ने भाजपा उम्मीदवार बलवंत सिंह राजपूत को समर्थन देने की घोषणा की। हालांकि पार्टी के एक विधायक ने अहमद पटेल को ही वोट दिया। बिहार में भाजपा के समर्थन से सरकार बनाने के बाद जेडीयू ने गुजरात में अपने इकलौते विधायक को बलवंत सिंह राजपूत के समर्थन में वोटिंग करने को कहा। लेकिन यह विधायक भी नीतीश कुमार जैसा ही निकला और पार्टी फैसले के खिलाफ जाकर अहमद पटेल के पक्ष में मतदान किया। कांग्रेस के 44 विश्वासपात्र विधायकों में से दो विधायक ऐन वक़्त पर देगा दे गए और उन्होंने बलवंत सिंह राजपूत के पक्ष में क्रॉस वोटिंग कर दी। हालांकि कांग्रेस ने इसके खिलाफ चुनाव आयोग में शिकायत की और उनके वोटों को रद्द करने की मांग की। कांग्रेस की इस मांग के खिलाफ भाजपा नेता भी चुनाव आयोग पहुँच गए और गुजरात में हो रहे इन चुनावों की गर्मी दिल्ली तक पहुँच गई। चुनाव आयोग ने कई घण्टों की बहस और हरियाणा राज्यसभा चुनावों को आधार बनाकर इन दोनों विधायकों के मतों को ख़ारिज कर दिया। इस हिसाब से जीत के लिए जरुरी आंकड़ा 43.51 पर पहुँच गया था और अहमद पटेल ने 44 वोट प्राप्त कर आधे मतों से जीत हासिल कर ली।

    भले ही देखने में यह जीत छोटी प्रतीत हो पर मोदी लहर, भाजपा के गढ़ और शाह के घर में कांग्रेस के ‘चाणक्य’ अहमद पटेल की इस जीत ने साबित कर दिया है कि देश अभी ‘कांग्रेस मुक्त’ होने नहीं जा रहा है। यह जीत गुजरात में हाशिए पर आ चुकी कांग्रेस पार्टी के लिए आगामी विधानसभा चुनावों में भी संजीवनी का काम करेगी। हर मुमकिन प्रयत्न के बाद भी अमित शाह कांग्रेस के ‘चाणक्य’ को राज्यसभा जाने से नहीं रोक सके हैं और अब मुमकिन है कि यह ‘चाणक्य’ ही भाजपा के इस ‘अभेद्द्य दुर्ग’ में सेंध लगाकर गुजरात में कांग्रेस की ‘विजय पताका’ फहराए।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।