Taliban Bans Women’s Education in Afghanistan: अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान सरकार ने अफगान महिलाओं के लिए यूनिवर्सिटी शिक्षा पर अनिश्चितकालीन प्रतिबंध लगा दिया है।
तालिबान द्वारा नियंत्रित सरकार के कैबिनेट की मीटिंग में लिए गए फैसले के अनुसार उच्च शिक्षा मंत्रालय की तरफ़ से जारी एक पत्र में सभी सरकारी और निजी उच्च शिक्षा संस्थानों को उच्च शिक्षा हेतू महिलाओं के प्रवेश पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबन्ध लगाने का आदेश दिया गया है।
इस प्रतिबंध के पीछे की वजह को रेखांकित करते हुए तालिबान सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री मोहम्मद नदीम ने कहा है कि महिला छात्रों ने इस्लामिक निर्देशों की अनदेखी की थी। वे ऐसे कपड़े पहन रहीं थीं, जैसे किसी शादी में जा रही हों। वे हिज़ाब के निर्देशों को सही तरीके से अनुपालन नहीं कर रही थीं।
अफ़ग़ानिस्तान की महिलाओं के लिए 1990s Returns
1990s के शुरुआती दिनों में अफ़ग़ानिस्तान की महिलाएं दुनिया के मुक़ाबले कहीं आगे थीं। वहाँ 40% डॉक्टर्स महिलाएं थीं। स्कूलों में तो 70% शिक्षक महिलाएं ही थीं, वहीं विश्विद्यालयों में लगभग 60% प्रोफेसर महिलाएं थीं।
पर फिर वक़्त ने ऐसी करवट ली कि तालिबान शासन के पहले दौर 1996-2001 और वर्तमान में जारी दूसरे दौर में अफ़ग़ानिस्तान की महिलाओं पर लगाये गए एक के बाद एक प्रतिबंधों के कारण आज वहाँ महिलाओं के बीच साक्षरता महज 14% रह गयी है।
तालिबान द्वारा अफगानी महिलाओं के उच्च शिक्षा पर लगाये गए हालिया प्रतिबंध ने अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं के लिए 1990 के उस दौर की वापसी करवा दी है जब तालिबान के पहले शासनकाल के दौरान महिलाओं की शिक्षा-दीक्षा पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था। अफ़ग़ानिस्तान ऐसा करने वाला पहला मुल्क बना था।
यही नहीं, तालिबान के पहले शासनकाल में इस्लाम के नाम पर कई अन्य तरह के प्रतिबंध महिलाओं पर लगाये गए थे जो गैर-इस्लामिक ही नहीं, बल्कि अमानवीय थे। जैसे:- महिलाएं पुरुष को साथ लिए बिना घर से बाहर नहीं निकल सकती थीं; या सार्वजनिक स्थानों पर आँख के अलावे त्वचा का कोई हिस्सा ना दिखे। उन्हें राजनीति में हिस्सा लेने या सार्वजनिक स्थानों पर भाषण देने आदि का अधिकार नहीं था।
यही नहीं, महिलाओं को किसी चिकित्सा जाँच या सहायता के लिए भी किसी पुरुष चिकित्सक से संपर्क करने पर मनाही थी। साथ ही, महिलाओं को घर से बाहर किसी तरह की नौकरी या काम करने का भी कोई अधिकार नहीं था। इन दोनों प्रतिबंधों के कारण अफ़ग़ानिस्तान की औरतों को मेडिकल अधिकार से करीब-करीब पूरी तरह वंचित रखा गया था।
इनके अलावे कई सारे अन्य अधिकारों से भी वंचित रखा गया था और इसके उल्लंघन करने पर उन्हें कठोर सजा दी जाती थी। कई बार किसी महिला का बुरके से बाहर त्वचा का इंच या दो इंच भी दिख जाये तो उसे कोड़े (Flog) या चाबुक से पीटा जाता था। वयस्क महिलाओं का पर-पुरुष से सबंध (Adultery) की सज़ा पत्थर से पीट पीट कर मार दिया जाना था।
वर्तमान में भी हालात धीरे धीरे लगातार उसी राह पर है जहाँ अफ़ग़ानिस्तान की औरतों को इस्लाम के नाम पर जबरदस्ती कई तरह के अमानवीय प्रतिबंधों से दो-चार होना पड़ रहा है।
The Taliban are reportedly shooting and beating male students who walked out of their exams in Afghanistan today in protest against the ban on women going to university.
This is truly barbaric and horrifying. The world must watch, listen and act now.
pic.twitter.com/iaP3dwutVE— Shabnam Nasimi (@NasimiShabnam) December 24, 2022
तालिबान ने यह साबित किया है कि अमेरिका से किये गए दोहा समझौते को नहीं मानता जिसमें उसने दुनिया भर से यह वादा किया था कि अफ़ग़ानिस्तान में मानवीय अधिकारों का हनन नहीं होगा। लेकिन बावजूद इसके, तालिबान से महिलाओं के लगातार छीने जा रहे अधिकारों को लेकर सवाल करने वाला कोई नहीं है।
इस्लाम के नाम पर गैर-इस्लामिक और अमानवीय फैसला
अफ़ग़ानिस्तान की महिलाओं को शिक्षा के अधिकार तथा कई अन्य अधिकारों से वंचित रखने को लेकर तालिबान के नुमाइंदे लगातार इसे इस्लाम की दुहाई देकर न्यायोचित साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन आज के आधुनिक दौर में तालिबान द्वारा ऐसी रूढ़िवादिता को जो मानव अधिकारों का हनन करता हो, उसे इस्लाम के नाम पर न्यायोचित साबित करने की कोशिश निहायत की मूर्खता है।
अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं को इस्लाम के नाम पर जिन शिक्षा के अधिकारों से वंचित किया जा रहा है; उसी इस्लाम मे शिक्षा को एक तरह से मूल अधिकार माना है।
अरबी में शिक्षा या ज्ञान के लिए “इल्म” शब्द का प्रयोग होता है। यह इल्म शब्द पूरे पवित्र क़ुरान में 854 बार प्रयोग में हुआ है- 397 बार संज्ञा (Noun) के तौर पर, 425 बार क्रिया (Verb) के तौर पर और बाकी विशेषण (Adjective) व क्रिया-विशेषण कर तौर पर।
अतीत में इस्लाम ने सच्ची शिक्षा या ज्ञान की एक क्रांति (True Knowledge Revolution) के तौर पर समाज मे स्थान बनाया था। पैगम्बर ने स्वयं यह कहा है कि “इल्म को हासिल करना हर मुस्लिम मर्द और औरतों का फ़र्ज़ है।” (संदर्भ: Al- Tirmidhi)
क़ुरान यह भी कहता है कि “अल्लाह उन लोगों को बढ़ावा देगा जो इल्म में यकीन रखता है और जिसे इल्म दिया जाता है। वह पूरी तरह से जानता है कि तुम क्या करते हो..” ( संदर्भ: पवित्र क़ुरान 58:11).
पवित्र क़ुरान हमें अल्लाह से कुछ मांगने को कहता है तो यही कि, ” … और कहो, मेरे मालिक ! मेरे ज्ञान या इल्म को बढ़ाओ” ( संदर्भ: पवित्र क़ुरान 45:13).
अव्वल तो यह कि ऐसा कर के तालिबान के लोग मुस्लिम सभ्यता के इतिहास को भी मुँह चिढ़ाने का काम कर रहे हैं। पैगंबर साहेब की पत्नि आएशा स्वयं ही एक महान विदुषी थीं जिनसे समय समय पर लोग धर्म-शास्त्र के विषयों (Theological Subjects) पर सलाह मांगते थे।
यही नहीं, इस्लाम के विकास गाथा में नफ़ीसा (अली के नज़दीकी रिश्तेदार), शाहदा (Shahda), हुजैमा (Hujaimah), आसमा (Asma), मसूदा (Masuda) आदि अनेकों महिला-विदुषियों का योगदान रहा है।
कुल मिलाकर जहाँ तक मेरे संक्षिप्त ज्ञान के स्तर पर पवित्र क़ुरान या हदीथ (Hadith) के एक भी पंक्ति में कहीं भी महिलाओं को शिक्षा के अधिकार से वंचित किया गया हो। यह महज़ एक गलत व्याख्या या फिर सत्ता की धौंस ही है कि इन तालिबान के लोगों को किस इस्लाम का इल्म हासिल है जो वे इस्लाम के नाम पर अफ़ग़ानिस्तान की महिलाओं से उच्च शिक्षा के अधिकारों को छीन रहे हैं।