जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने संविधान के अनुच्छेद 35 ए में बदलाव को लेकर चल रही ख़बरों के बीच सरकार को चेताते हुए कहा है कि अगर जम्मू-कश्मीर के लोगों को मिल रहे विशेषाधिकारों में कोई भी कमी आयी तो राज्य में तिरंगा थामने वाला कोई नहीं मिलेगा। उन्होंने कहा कि देश के लोग एक तरफ संवैधानिक तरीकों से संविधान में रहकर जम्मू-कश्मीर मुद्दे का समाधान करने की बात करते है वहीं दूसरी ओर इसी संविधान में वर्णित अधिकारों का हनन करने को कहते हैं। अनुच्छेद 35 ए को चुनौती देने के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि जाने कौन ऐसा कर रहा है और क्यों कर रहा है। उन्होंने कहा कि मेरी पार्टी और कश्मीर कि अन्य सभी पार्टियां तमाम जोखिमों के बावजूद भी देश का राष्ट्रध्वज थाम कर रखते हैं। ऐसे हालातों में अगर वहाँ के लोगों को मिलने वाले विशेषाधिकारों में कोई भी कमी होती है फिर निसंदेह रूप से कश्मीर में तिरंगे को थामने वाला कोई नहीं मिलेगा।
बता दें कि साल 2014 में एक एनजीओ ने रिट याचिका दाखिल कर जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 35 ए को निरस्त करने की मांग की थी। यह मामला अभी उच्चतम न्यायलय में चल रहा है। महबूबा मुफ़्ती ने स्पष्ट किया कि आप इस अनुच्छेद को निरस्त कराकर अलगाववादियों को निशाना नहीं बना रहे हो। अलगाववादियों का एजेंडा इससे बिलकुल अलग है। उन्होंने कहा कि ऐसा करने से जम्मू-कश्मीर में भारत पर विश्वास करने वाली और चुनावों में हिस्सा लेने वाली शक्तियां कमजोर होंगी जो राज्य में सम्मान के साथ जीने के लिए लड़ते हैं।
क्या है अनुच्छेद 35 ए
14 मई, 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने एक आदेश पारित किया था। इस आदेश के जरिये भारत के संविधान में एक नया अनुच्छेद 35 ए जोड़ा गया था जो आज जम्मू-कश्मीर राज्य के लाखों लोगों के लिए अभिशाप बन चुका है। जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र इस अनुच्छेद को राज्य के लोगों के साथ किया गया एक ‘संवैधानिक धोखा’ मानता है। अनुच्छेद 35 ए के अनुसार, जम्मू-कश्मीर की विधानसभा को यह अधिकार है कि वह राज्य के ‘स्थायी नागरिक’ की परिभाषा को तय कर सके और उन्हें संज्ञान में रखकर राज्य द्वारा निर्धारित विशेषाधिकार दे सके।
एक तरफ यह अनुच्छेद अलगाववादियों पर केंद्र का नियंत्रण कमजोर करता है वहीं दूसरी तरफ बतौर शरणार्थी राज्य में आकर बसे लाखों लोगों को हाशिये पर जीवन गुजारने के लिए मजबूर करता है। इन लोगों में 1947 के बाद पकिस्तान से आये हिन्दू परिवार, 1957 में पंजाब से आये वाल्मीकि समुदाय के लोग और गोरखा समुदाय प्रमुख हैं। इनमें सबसे बदतर स्थिति वाल्मीकि समुदाय के लोगों की है जो आज भी इस राज्य में केवल सफाई कर्मचारी के तौर पर कार्य कर सकते हैं। इन लोगों के बच्चों को आज भी राज्य के राजकीय संस्थानों में दाखिला नहीं मिलता है और पिछले 60 सालों से ये यहां सफाई करने का ही काम कर रहे हैं । ये वर्षों से जम्मू-कश्मीर में रह रहे हैं लेकिन आज भी इन्हें कश्मीर की नागरिकता नहीं मिल सकी है। ये देश के प्रधानमंत्री तो बन सकते हैं पर कश्मीर में होने वाले चुनावों में मतदान नहीं कर सकते हैं। देश की सर्वोच्च न्यायलय को निश्चित रूप से इस अनुच्छेद पर कोई निर्णय लेने से पहले इस पहलू पर गौर करना चाहिए।