भारत में अंधविश्वास और वैज्ञानिक चेतना (Scientific Temper in India): आगामी 25 वर्षों को भारत अपने आज़ादी का अमृतकाल के रूप में मना रहा है। एक ख़्वाब, जिसे हर भारतीय ने अपनी आँखों मे सजा रखा है कि जब भारत अपने आज़ादी का सौवाँ (100th) वर्षगाँठ मना रहा होगा, तब दुनिया के पटल पर “विश्वगुरु” के रूप में खुद को स्थापित कर रहा होगा।
निःसंदेह भारत ने तमाम पहलुओं पर काफी सराहनीय प्रदर्शन किया है। आर्थिक, राजनीतिक, खेल-प्रतिस्पर्धा, विज्ञान आदि क्षेत्रों में खूब तरक्की की है। आज भारत की पहचान दर्शन-शास्त्र, अध्यात्म, योगा और आयुर्वेद जैसी पुराने ज्ञान और पारंपारिक विधाओं की वजह से भी विश्व-पटल पर गौरवान्वित है।
इन्हीं पुरानी परंपराओं के बीच कुछ ऐसी भी चीजें हैं जो भारत की एक दूसरी ही तस्वीर खिंचती हैं। भारत आज भी धर्म के आड में चल रहे सांप्रदायिकता, अंधविश्वास और तंत्र-मंत्र के जाल में वैसे ही जकड़ा है, जैसे वर्षों पहले था।
जब भारत की आज़ादी के बाद अपने संविधान निर्माण की बात आयी तो हमारे पूर्वजों ने अंधविश्वास और तंत्र-मंत्र आदि का भी संज्ञान लिया। फिर, इसके लिए संविधान में बाकायदे अनुच्छेद 51A (Article 51 A of Indian Constitution) की व्यवस्था की गई जिसमें यह कहा गया है कि प्रत्येक नागरिक का यह मौलिक कर्तव्य है कि वह विज्ञान और वैज्ञानिक चेतना (Scientific Temper) को आम जनमानस के बीच स्थापित करने का प्रयत्न करेगी।
परंतु आज संविधान के लागू होने के 74 साल बाद भी भारतीय गणतंत्र में जादू-टोना, तंत्र-विद्या, चमत्कार आदि का व्यवसाय लोगों के बीच उसी तरह फैला हुआ है जैसे आज से सौ साल पहले था। सूचना-तंत्र (Information Technology) के इस दौर में “बाबाओं” और तांत्रिकों को अपने व्यापार का प्रचार करने और अपना दायरा बढ़ाने को एक नया हथियार मिल गया है।
पिछले कुछ दिनों से भारतीय TV चैनलों ने एक बाबा (तथाकथित धर्मगुरु Dhirendra Shastri Aka Bageshwar Dham Sarkar)) को स्क्रीन पर ऐसी जगह दी है मानो वह “नए भारत” का सबसे बड़ा ब्रांड-एंबेसडर है।
मध्य-प्रदेश के छतरपुर जिले में गड़हा नामक एक गाँव में मरघट नामक पहाड़ी पर भूत-प्रेत से निजात दिलाने का व्यवसाय वर्षों पुराना है। इसी मरघट पहाड़ी पर एक शिव-मंदिर के बगल में पुजारी द्वारा हनुमान-मंदिर की स्थापना की जाती है जिसे आज “बागेश्वर धाम (Bageshwar Dham)” के नाम से जाना जाता है।
क्षेत्रीय लोगों के हवाले से तमाम मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो वहाँ “बाबा” का दरबार लगता है और लोगों की तमाम समस्याओं का निदान किया जाता है। इसी बागेश्वर धाम से निकला एक कथावाचक आज TV मीडिया पर चीख-चीख कर खुद को हनुमान जी का भक्त बताते हुए बागेश्वर धाम मंदिर पर होने वाले दरबार मे सबको आमंत्रित कर रहा है।
कुछ दिन पहले इस कथावाचक बाबा का छत्तीसगढ़ के रायपुर में दरबार लगा था। जिसमे अपने चमत्कार को साबित करने के क्रम में राष्ट्रीय TV चैनल के पत्रकार को उसके परिवार के लोगों के नाम बताकर लोगों को यह विश्वास दिलाता है कि वह लोगों के मन को पढ़ लेने का दावा करता है। फिर पढ़ा-
लिखा यह पत्रकार भी वहाँ मौजूद लोगों को विश्वास दिलाता है कि बाबा ने उस से बिना पूछे सारी जानकारी दी है।
ये तो हुई एक “बाबा” की कहानी; यह एक बानगी मात्र है, पर यह लिस्ट बहुत लंबी है। बहुत समय नहीं बीता होगा जब एक ‘निर्मल बाबा’ नाम के तथाकथित धर्मगुरु लोगों को यह बता रहा था कि उस पर भगवान की कृपा कहाँ रुकी हुई है और उसे क्या करना होगा।
बाबा राम रहीम, आशाराम बापू, स्वामी ओम, नारायण साईं, संत रामपाल, ओम नमः शिवाय बाबा, स्वामी असीमानंद, इच्छाधारी भीमानंद….. और ऐसे अनेकों नाम है जो बाबा बनकर किसी की हत्या, किसी के शारीरिक शोषण और बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों में संलिप्त होने के कारण जेलों में बंद है।
ये उन बाबाओं के नाम हैं जिनका आरोप सिद्ध हुआ है या जिनका नाम मीडिया में छाया रहा। इसके इतर, पूरे भारत मे अंधविश्वास और डर का व्यवसाय इस कदर फैला है कि देश के वैज्ञानिक चेतना (Scientific Temper) पर बीस नहीं बल्कि इक्कीस बाईस… सब पड़ रहे हैं।
अभी बीते साल अक्टूबर के महीने में देश के सबसे शिक्षित राज्य केरल से एक ऐसी ख़बर आई जिसे सुनकर रूह कांप उठे। अंग्रेजी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, यहाँ एक तांत्रिक के चक्कर मे पड़कर मनचाहा समृध्दि की लालच में एक दंपत्ति ने क्रूरता की सारी हदों को पार कर के दो महिलाओं को बलि दे दी।
Two women in Kerala were allegedly abducted, beheaded and buried as part of a “witchcraft ritual”. Here is a look at the existing laws on witchcraft in India. https://t.co/QsmJHi7gFW
— The Indian Express (@IndianExpress) October 13, 2022
उस से थोड़े दिन पहले देश की राजधानी दिल्ली में इसी तरह की घटना सामने आई जब मात्र छः साल के एक मासूम की बलि दे दी गयी। उस से कुछ महीने पहले बिहार में एक बूढ़ी महिला को ग्रामीणों ने डायन होने का आरोप लगाकर पीट पीट कर मार डाला।
कई बार तो इन सब प्रपंचों के चक्कर मे महिलाओं का शारीरिक शोषण भी होता है। किसी तांत्रिक, ओझा या बाबा के बहकावे में आकर किसी महिला को डायन या काला जादू करने वाली बताकर उसे मैला पिलाने, निर्वस्त्र करके घुमाने और हत्या कर देने की खबरें अक्सर आते रहती है।
हिंदी दैनिक प्रभात ख़बर में पिछले साल 8 सितंबर को छपी एक ख़बर के मुताबिक अकेले झारखंड राज्य में डायन-बिसाही (Witch-Craft) के आरोप में पिछले 2 साल में कुल 38 महिलाओ की हत्या कर दी गई है।
NCRB के आंकड़ों के अनुसार बीते एक साल में कुल 68 हत्याएं बस डायन, जादू टोना आदि जैसे आरोपों के कारण हुए है। राज्यवार सबसे ज्यादा हत्याओं के मामले में छत्तीसगढ़ में 20, मध्यप्रदेश में 18 व झारखंड में 17 हत्याओं के साथ टॉप 3 राज्य है।
यह तमाम आँकड़ें और ऐसी घटनाएं यह बताने के लिये काफ़ी हैं कि विकास के बड़े-बड़े दावों के बीच हमारे समाज मे बहुत सारे लोग वैज्ञानिक-चेतना के अभाव में किस कदर इन तंत्र-जाल और बाबाओं के डर और अंधविश्वास के व्यवसाय में फंस जाते हैं।
विडंबना यह है कि ऐसे अंधविश्वास में पड़े लोगों को यह अहसास तक नहीं होता कि वे धार्मिक पक्ष और मान्यताओं का हवाला देकर वैज्ञानिक सोच और चेतना को दरकिनार कर तमाम ऐसे जुर्म करते हैं जो विकास की नई गाथा लिखने की चाह रखने वाले देश की एक ऐसी काली तस्वीर पेश करती है जो भारत में सामाजिक विकास की तमाम पहलुओं की अनदेखी का चित्रण है।
अब सबसे बड़ा सवाल उठता है कि लोग जाते ही क्यों है इन तांत्रिकों और “बाबाओं” के शरण मे? 21वीं सदी का भारत जो विश्वगुरु बनने का सपना संजोय बैठा है, आखिर इतनी आसानी से अंधविश्वास में कैसे यक़ीन कर लेता है?
असल मे हम सब अपनी जिंदगी में कुछ ऐसे परिस्थितियों से गुजरते हैं जिसे हम समझ नहीं पाते और हमारे तार्किकता की सीमा समाप्त हो जाती है। ऐसे मसलों को समझने के लिए दो रास्ते हैं- एक विज्ञान का और एक धर्म का।
विज्ञान और धर्म में एक बड़ा अंतर है कि विज्ञान उन्हीं चीजों को मानता है जिसे प्रमाणित किया जा सकता है और साथ ही यह अपनी गलतियों को मानने और सुधारने को हमेशा तैयार रहता है। लेकिन धर्म के मामले ऐसी गुंजाइश कम मिलती है। यहाँ सभी विचार विश्वास करने के इर्द-गिर्द ही घूमते हैं।
कभी कभार लोग जब इन दोनों रास्तों से मायूस हो जाते हैं तो एक तीसरा रास्ता चुन लेते हैं- जादू-टोना, तंत्र-मंत्र, झाड़-फूँक आदि जैसे अंधविश्वास की तरफ।
यह खासकर उन परिस्थितियों में ज्यादा प्रयोग होता है जब कोई व्यक्ति किसी मानसिक समस्या से पीड़ित हो जाता है। हालांकि सच्चाई तो यही है कि अंधविश्वास का सहारा सिर्फ मानसिक विकारों से ग्रसित लोग ही नहीं लेते बल्कि हर समस्या का निदान तलाशने की कोशिश की जाती है।
डॉक्टरी चिकित्सा किसी भी बीमारी को ठीक करने में वक़्त लेता है। जहाँ चिकित्सकों से विश्वास उठने लगता है तो लोग अंधविश्वास की शरण मे जाते हैं। यह वह कमजोर कड़ी है जिसका फायदा बाबा, ओझा, तांत्रिक आदि उठाते हैं। तांत्रिक और ओझा आदि लोगों को विश्वास दिलाने में कामयाब हो जाते हैं कि उनकी सिद्धि और मंत्र-तंत्र से सभी समस्याओं का निवारण कम समय और कम पैसे में संभव है।
अब फिर से लौटते हैं भारतीय संविधान की धारा 51 A (Article 51 A of Indian Constitution) की ओर जो हमें यह याद दिलाता है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास और जरूरत नागरिकों का बुनियादी कर्तव्य है। लेकिन संविधान के लागू होने के आज 74 साल बाद भी हालत नही बदले तो क्यों?
असल मे इस देश की सरकारों ने कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया। शायद ही कभी कोई ठोस कदम इस दिशा में उठाये गए हों जिस से अंधविश्वास की इस दुनिया को फैलने से रोका जाए और नागरिकों में वैज्ञानिक चेतना का विकास हो। अव्वल तो यह कि संवैधानिक पदों पर बैठे तमाम मंत्री, राज्यपाल आदि जैसे नेतागण इन बाबाओं और धूर्त तांत्रिकों की चरणवंदना करते रहते हैं।
असल मे यह सब अंधविश्वास का कारोबार धर्म की आड़ में किया जाता है; और ‘धर्म’ आज-कल राजनीति में कितना संवेदनशील मुद्दा है, यह किसी से छुपा हुआ नहीं है। इन बाबाओं का अपने क्षेत्र-विशेष में वोटरों पर अच्छी खासी पकड़ होती है और उसके कारण ही तमाम बड़े नेता गण इनके दरबार मे चमत्कार के साक्षी बन रहे होते हैं जो न सिर्फ विज्ञान के सिद्धांतों पर, बल्कि संविधान की कसौटियों पर भी नाजायज़ है।
जरूरत है कि अंधविश्वास का खुलकर विरोध हो तथा व्यापक तौर पर जागरूकता अभियान चलाए जाए। यह न सिर्फ सरकार की, बल्कि देश के एक एक नागरिक की जिम्मेदारी भी है और संवैधानिक कर्तव्य भी।
एक बाबा का मीडिया में खुलेआम चमत्कार करना, उसके दरबार मे एक राज्य के गृहमंत्री और किसी राज्य के राज्यपाल का हाज़िरी लगाना या देश के किसी कोने में किसी महिला को डायन होने के आरोप में प्रताड़ित होना हमारे सपनो के 5 ट्रिलियन वाली अर्थव्यवस्था के तमाम विकास दावों को खोखली साबित करती रहेंगी।
आज 21वीं सदी में भारत चाहता तो “विश्वगुरु” बनना है लेकिन धर्म के नाम पर अंधविश्वास जैसे तंत्र-मंत्र, जादू-टोना, डायन-बिसाही, या फिर बाबाओं के चमत्कार में जकड़ा हुआ है। मौजूदा वक़्त में हिंदी जगत के प्रसिद्द व्यंग्यकार श्री सम्पत सरल जी की एक पंक्ति 21वीं सदी के इस भारत के लिए माकूल बैठती है कि हम चढ़ना हिमालय पर चाहते हैं, लेकिन हमारी निगाहें हिन्द महासागर की तरफ हैं।
अगर भारत को आने वाले भविष्य में दुनिया का नेतृत्व करना है हमें विज्ञान की कसौटियों पर खुद को परखने के आवश्यकता है। संविधान के अनुछेद 51A का बोध देश के हर नागरिक में जगाना होगा और उनमें वैज्ञानिक चेतना विकसित करनी होगी।