Fri. Oct 4th, 2024
    Heat Wave in India

    गर्मी का प्रकोप: बिलासपुर, छत्तीसगढ़ में रहकर मजदूरी करने वाले राजेश साहू लगभग 47 डिग्री के तापमान और शरीर को चीरकर भेद देने वाली तीखी धूप मे भी एक निर्माणाधीन इमारत की छत पर काम करने को मजबूर हैं।

    ठंडा पानी मुहैया कराने के बाद इस भीषण गर्मी में भी काम करने की वजह पूछने पर उनका उत्तर चौंकाने वाला था। आम तौर पर लोग पेट की मजबूरी में काम करते हैं लेकिन राजेश ने बताया कि, उन्हें छुट्टी नहीं दी जा रही है बावजूद इसके कि गर्मी के कारण 2 दिन पहले ही उनकी तबियत बिगड़ गयी थी। वजह कि उस बिल्डिंग में खुलने वाले कार्यालयों की बुकिंग पहले ही हो चुके हैं और बिल्डिंग के निर्माणकर्ताओं का दवाब में इन मजदूरों को भीषण गर्मी में भी काम करना है।

    ऐसे ही कमलेश्वर नेताम भीषण धूप में नगरनिगम द्वारा गिराए गए इमारतों के मलबे को बटोरने का काम कर रहे हैं। जिस गमछी के सहारे चलचिलाती धूप का वह सामना कर रहे हैं, उसे उतारकर बार-बार पसीना पोछने और उसे वापस माथे पर रखने के क्रम के बीच टोककर थोड़ा आराम करने और पानी पिने की सलाह पर कहते वह कहते हैं- “अरे साहेब बैठे हैं, नाराज़ होते हैं।”  इशारों इशारों में बताने पर जब ‘साहेब’ पर नजर पड़ी जो दूर एक पेड़ के छाँव में एक छोटी दुकान- जिसमें चाय और अवैध LPG गैस सिलिंडर मिलती है; साहेब वहीं बैठ के मोबाइल फोन पर व्यस्त दिखे।

    यह किस्सा जरूर महज़ दो मज़दूरों के जीवन के 1 दिन की कहानी हो सकती है जो अलग अलग कामों में लगे हैं लेकिन दोनों में एक बात समान है, वह भीषण गर्मी में काम करने की मजबूरी। साथ ही सच यह भी है कि यह कहानी महज़ एक शहर के 2 मज़दूरों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि देश के अलग अलग हिस्सों में पड़ रहे भीषण गर्मी के बीच असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की लगभग ऐसी ही समस्या है।

    हरियाणा, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, बिहार, उड़ीसा आदि राज्य के इलाकों ईंट के भट्ठों, निर्माणाधीन साइट, फैक्टरियों में, ऑटो रिक्शा चालक, गिग वर्कर आदि छोटे स्तर की इकाइयों मे काम करने वाले हजारों मजदूरों के लिए भीषण गर्मी इस कदर चुनौतीपूर्ण हो चुकी है मानो यह उनकी सहनशक्ति का इम्तेहान ले रही हो।

    भारत मे काम करने वाले कुल कार्यबल का लगभग 82% हिस्सा असंगठित क्षेत्रों में काम कर रहा है और इसके करीब 90% लोगों के पास अनौपचारिक रोजगार है। ऐसे में अगर वे गर्मी से बीमार पड़कर भी अगर आराम या छुट्टी लेते हैं तो परिणामस्वरूप उनकी मजदूरी भी जाती है और फिर भीषण गर्मी में काम की तलाश की भागदौड़ उनके जीवन और कष्टकारक हो जाता है।

    आर्द्र परिस्थितियों में, शरीर से बहुत कम लाभ के साथ पसीना निकलता रहता है। इससे न केवल निर्जलीकरण और नमक असंतुलन होता है, बल्कि रक्त प्रवाह कम होने के कारण अंगों पर भी असर पड़ता है। और निश्चित रूप से, इससे शरीर अधिक गर्म हो जाता है क्योंकि इसका तापमान-नियमन तंत्र काम नहीं करता है।

    भीषण गर्मी और लू के चपेट में भारत

    मौसम विभाग ने दी भीषण गर्मी और लू की चेतावनी
    मौसम विभाग ने दी भीषण गर्मी और लू की चेतावनी

    देश के उत्तरी, उत्तर पश्चिमी, और मध्य भाग में इन दिनों भीषण लू का प्रकोप देखने को मिल रहा है। राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली के कुछ हिस्सों में तो तापमान 50 डिग्री सेल्सियस से भी ऊपर पहुँच गया है जबकि कई अन्य राज्यों में भी 46 डिग्री से. के आस पास जा पहुंचा है।

    अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स को खंगालने पर यह सामने आता है कि देश भर में भीषण गर्मी के कारण अब तक लगभग 100 से भी अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। उत्तर प्रदेश के जौनपुर में चुनावी ड्यूटी पर कार्यरत कर्मचारियों की मृत्यु भी लू के कारण हुई है।देश में लगातार ३ महीने तक चले चुनावी सरगर्मी के बीच यह बात कहीं दब सी गयी कि बीते दिनों देश के अलग-अलग हिस्सों में भीषण गर्मी के कारण 60-80 लोगो की मौत हो गयी है।

    देश के बड़े हिस्से में भीषण गर्मी पड़ रही है और दिन का तापमान सामान्य से अधिक समय तक रिकॉर्ड तोड़ रहा है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली ने इन दिनों पारा के उस स्तर को छुआ जो एक वक़्त तो आजतक का सर्वाधिक तापमान बना लेकिन बाद में मौसम विभाग ने इसमें तकनीकी खामियां बताई।

    अन्य राज्यों में भी लू और गर्मी ने अपना प्रकोप ऐसा दिखाया है कि पिछले कुछ दिनों में, गर्मी ने दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा और गुजरात सहित कई राज्यों में लोगों की जान ले ली है।

    आखिर इतनी भीषण गर्मी की वजह क्या है?

    कुलमिलाकर प्रकृति ने एक बार फिर यह आगाह किया है कि मानव द्वारा जनित प्राकृतिक असंतुलन का परिणाम क्या हो सकता है। अध्ययनों से पता चला है कि शहरीकरण और घटते हरित आवरण के कारण शहर, विशेष रूप से गर्म और अधिक आर्द्र हो रहे हैं। यह, रात के उच्च तापमान के अलावा, लू को अधिक तीव्र और घातक बनाता है, खासकर गरीबों के लिए, जिन्हें गर्मी की थकान से बहुत कम राहत मिलती है।

    ताप-द्वीप प्रभाव (Heat-Island Effects)

    इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) वर्किंग ग्रुप- II, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और कमजोरियों का आकलन करता है, के अनुसार शहरी ताप-द्वीप प्रभाव के कारण शहरों में हवा का तापमान आसपास के क्षेत्रों की तुलना में कई डिग्री अधिक गर्म होता है, खासकर गर्मियों की रात के दौरान।

    कंक्रीट से बनी संरचनाएं – इमारतें, फुटपाथ, सड़कें और अन्य बुनियादी ढांचे – पेड़ों और जल निकायों जैसी प्राकृतिक सुविधाओं की तुलना में सूर्य की गर्मी को अधिक अवशोषित और पुन: उत्सर्जित करती हैं। शहर, जहां ये संरचनाएं केंद्रित हैं, और हरियाली सीमित है, इस प्रकार आसपास के, हरे-भरे क्षेत्रों की तुलना में उच्च तापमान वाले “द्वीप” बन जाते हैं।

    इसे शहरी ताप द्वीप प्रभाव कहा जाता है। और चूंकि गर्मी निर्मित संरचनाओं में फंसी रहती है, इसलिए अधिक शहरीकरण का रात के तापमान में वृद्धि के साथ सीधा संबंध है।

    ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन

    तापमान में वृद्धि का प्राथमिक कारण दुनिया भर में ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन में वृद्धि है। औद्योगिक क्रांति के बाद से, जीवाश्म ईंधन जलाने जैसी मानवीय गतिविधियाँ अभूतपूर्व स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसे गर्मी-फँसाने वाले जीएचजी जारी कर रही हैं, जिससे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है।

    संपूर्ण ग्रह 1850-1900 की अवधि के औसत से कम से कम 1.1 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म हो गया है। भारतीय उपमहाद्वीप में 1900 के बाद से वार्षिक औसत तापमान में 0.7 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी देखी गई है।

    अल-नीनो प्रभाव (El Nino Effects)

    अलनीनो प्रभाव के कारण भी तप रहा भारत

    असम के कॉटन यूनिवर्सिटी में इंटरडिसिप्लिनरी क्लाइमेट रिसर्च सेंटर के निदेशक डॉ. राहुला महंत के अनुसार, अल नीनो – भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में सतह के पानी का असामान्य रूप से गर्म होना – ने भी पिछले सप्ताह देखे गए रिकॉर्ड-तोड़ तापमान में योगदान दिया। मौसम का मिजाज दुनिया के कई हिस्सों और समुद्र में अत्यधिक गर्मी पैदा करने के लिए जाना जाता है।

    भीषण गर्मी से हालात और भी खराब होने की आशंका

    हालात और भी खराब होने की आशंका है. शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि यदि जीएचजी उत्सर्जन पर मौलिक और शीघ्र अंकुश नहीं लगाया गया, तो तापमान जल्द ही 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर जाएगा, जो 2015 पेरिस समझौते में स्थापित किया गया था।

    तापमान में वृद्धि से वर्षा में वृद्धि होगी। उच्च तापमान न केवल भूमि से बल्कि महासागरों और अन्य जल निकायों से भी पानी के वाष्पीकरण का कारण बनता है, जिसका अर्थ है कि गर्म वातावरण में अधिक नमी होती है

    विशेषज्ञों का सुझाव है कि औसत तापमान में प्रत्येक 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के लिए, वातावरण में लगभग 7% अधिक नमी हो सकती है। यह तूफानों को और अधिक खतरनाक बना देता है क्योंकि इससे वर्षा की तीव्रता, अवधि और/या आवृत्ति में वृद्धि होती है, जो अंततः गंभीर बाढ़ का कारण बन सकती है।

    आज की गर्मी इस बात की एक और याद दिलाती है कि जलवायु परिवर्तन से भारत के सबसे कमजोर लोगों पर कितना बुरा प्रभाव पड़ेगा। इसे प्रकृति की चेतावनी समझकर दीर्घकालीन नीतियां बनाने की आवश्यकता है। शहरी ताप-द्वीप प्रभाव से निपटने के लिए अधिक पेड़ लगाना और निर्मित क्षेत्रों का घनत्व कम करना जैसे दीर्घकालिक समाधान महत्वपूर्ण हैं। ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन को नियंत्रित कर के नवीकरणीय ऊर्जा स्त्रोतों को और बढ़ाने के तरह ध्यान देने की जरुरत है।

    By Saurav Sangam

    | For me, Writing is a Passion more than the Profession! | | Crazy Traveler; It Gives me a chance to interact New People, New Ideas, New Culture, New Experience and New Memories! ||सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ; | ||ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ !||

    3 thoughts on “गर्मी का प्रकोप: सूखता कंठ, छांव की तलाश, मजदूरों की मजबूरी…. भविष्य में इस संकट के और गहराने के आसार”

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