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    चीन पाकिस्तान सीपीईसी

    पाकिस्तान चीन की महत्वकांक्षी परियोजना चीन-पाक आर्थिक गलियारे पर फ़िलहाल मंथन कर रहा है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनने के बाद इमरान खान ने सऊदी अरब को न्योता दिया कि वह बेल्ट एंड रोड परियोजना में निवेश करे।

    पाकिस्तान ने साफ़ किया कि सऊदी अरब सीपीईसी का निवेशक नहीं होगा। पीटीआई सरकार करने लिए ने पीएम के सऊदी अरब के दौरे के बाद दावा किया था कि रियाद सीपीईसी में निवेश करने वाला तीसरा साझेदार देश होगा।

    पाकिस्तान की सरकार इससे पूर्व सीपीईसी का विरोधी करती रही है हालाँकि द्विपक्षीय समझौते के कारण उन्होंने चीन की परियोजना के लिए हामी भर रही है। चीन की मत्वकांक्षी परियोजना के बावजूद पाकिस्तान ने इस प्रोजेक्ट में दो बिलियन डॉलर की कटौती की है और भविष्य में भी कटौती करेगी।

    पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ की आलोचना करते हुए इमरान खान ने कहा कि इस परियोजना में पारदर्शिता की कमी थी। बलूचिस्तान के दौरे पर उन्होंने सीपीईसी पर नागरिकों की परेशानियों को समझा जिसे पिछले सरकार दबाने का काम करती थी।

    इमरान खान के सलाहकार ने कहा था कि पिछली सरकार ने सीपीईसी पर जल्दबाज़ी में फैसला लिया यह प्रोजेक्ट कतई पाकिस्तान के हित में नहीं है। इस विवादित बयान के बाद पाकिस्तान की सरकार इस रायते को समेटने के लिए एक बायान जारी कर कहा कि हम इस मसले को मलेशिया की तरह हल नहीं करना चाहते हैं। पाकिस्तान ने इस परियोजना में निवेश के लिए आईएमएफ की दरवाजे पर भी दस्तक दी लेकिन अमेरिका ने आईएमएफ को चेतावनी दी कि अगर पाकिस्तान को एक पाई भी दी तो उनसे बुरा कोई नहीं होगा।

    पीटीआई सरकार ने इसके पश्चात् आर्थिक मदद के लिए सऊदी अरब का रुख किया। रियाद के दौरे से पाकिस्तान की आर्थिक सेहत का अंदाजा लगाया जा सकता है। सऊदी अरब ने भी गर्मजोशी से इमरान खान का स्वागत किया और रिश्तों का एक नया अध्याय प्रारम्भ करने की कोशिश की जो पिछले सरकार में बिगड़ गए थे।

    सऊदी अरब भी पाकिस्तान में किसी विशाल प्रोजेक्ट पर निवेश करने के इच्छुक था क्योंकि वह अपनी विकास परियोजना विज़न 2030 को अमलीजामा पहनना चाहता था। सऊदी अरब के के इस परियोजना में भागीदार बनने से अमेरिका अप्रत्यक्ष तरीके से अपने हितों को साधता। साथ ही ईरान के पश्चिम एशियाई क्षेत्र में बढ़ रहे प्रभाव की गाडी को थामता।

    सऊदी अरब चीन का पश्चिमी एशिया में सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है। सऊदी अरब की इस परियोजना में हिस्सेदारी चीन के लिए क्षेत्रीय राजनीति के लिए कई सवालों का अम्बार खड़ा कर सकती थी। नतीजतन दबाव में पाकिस्तान को अपने फैसले से यू टर्न लेना पड़ा।

    हाल ही पाकिस्तानी मंत्री ने कहा कि सीपीईसी चीन और पाक के मध्य द्विपक्षीय समझौता है और सऊदी अरब इसमें तीसरा निवेशक नहीं बन सकता। हालांकि सऊदी अरब पाकिस्तान में बुनियादी ढांचों के विस्तार के लिए निवेश करेगा।

    भारत हमेशा ही चीन की परियोजना का विरोध करता रहा है। भारत के मुताबिक यह चीन का विकास कार्य नहीं बल्कि अन्य देशों को कर्ज के जाल में फांसने की रणनीति है।

    By कविता

    कविता ने राजनीति विज्ञान में स्नातक और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है। वर्तमान में कविता द इंडियन वायर के लिए विदेशी मुद्दों से सम्बंधित लेख लिखती हैं।

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