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    शेम रिव्यु ,स्वरा भास्कर, रणवीर शोरी
    स्वरा भाष्कर और रणवीर शोरे की शॉर्ट फ़िल्म ‘शेम’ यूट्यूब के लार्ज शॉर्ट फ़िल्म चैनल पर रिलीज़ की गई है। फ़िल्म में सयानी गुप्ता, सायरस साहूकार, तारा शर्मा, सलूजा और सीमा पहलवा भी मुख्य भूमिका में हैं। यह फ़िल्म अनुषा बोस द्वारा निर्देशित और शरत कटारिया द्वारा प्रोड्यूस की गई है।
    यह फ़िल्म एक बड़े व्यवसाई की कहानी है जो अपनी आराम की ज़िन्दगी और अय्याशी में इतना मशगुल रहता है कि वह न छोटी बातों को महत्त्व देता है और नाही छोटे लोगों को।
    फ़िल्म शुरू होती है होटल के एक कमरे से जिसमें हाउसकीपर सफाई कर रही होती है। वह गरीब है और अपने आप को खुबसूरत भी नहीं मानती है। हाउसकीपर ( स्वरा भाष्कर ) अमीरों के रहन-सहन और पहनावे से मंत्रमुग्ध रहती है।
    एक बार वह व्ययासाई के इस कमरे की सफाई करते-करते एक छोटी सी गलती कर देती है जिससे उसको अपनी नौकरी से हांथ धोना पड़ता है। अन्य शॉर्ट फ़िल्मों की तरह यह फ़िल्म यहीं पर बस एक ट्विस्ट के साथ ख़त्म नहीं होती है।
    एक हाउसकीपर को छोटा मनुष्य समझना और उसे नौकरी से निकाले जाने से फर्क न पड़ना उस व्यवसाई पर कुछ ऐसे उल्टा पड़ जाता है कि वह दिन उसकी ज़िन्दगी का सबसे खराब दिन बन जाता है।

    फ़िल्म यहाँ देखें:

    अभिनय की बात करें तो स्वरा भास्कर ने हाउसकीपर का यह किरदार बड़े ही सलीके से किया है। ज्यादा डायलॉग नहीं होने के बावजूद भी स्वरा जब तक स्क्रीन पर रहती हैं उन्हें देखने का मन करता है। इसके साथ ही स्वरा के किरदार की कई परते भी हैं।
    घमंडी व्यवसाई के रूप में रणवीर शोरे अपने किरदार के साथ न्याय करते नज़र आते हैं। सभी भावनाओं और अनुवादों को रणवीर ने बखूबी निभाया है।
    सयानी गुप्ता जिन्होंने व्यवसाई की प्रेमिका का किरदार निभाया है, काफी प्रतिभावान अभिनेत्री हैं और उनसे और भी अच्छा काम लिया जा सकता था पर जितना भी उन्हें करने के लिए दिया गया है सयानी ने सलीके से किया है।
    तारा शर्मा कहीं गायब सी हो गईं थीं और उनकी इस वापसी पर हम यह उम्मीद कर रहे थे कि वह पर्दे पर इस बार कुछ दिलचस्प और देखने लायक लेकर आएंगी पर उन्होंने हमें निराश किया है। इस फ़िल्म में भी तारा कुछ वैसा ही अभिनय कर रही थीं जैसा उन्होंने 2003 में आई फ़िल्म ‘साया’ में किया था।
    फ़िल्म की कहानी साधारण है पर इसमें ज़िन्दगी से जुड़ी बड़ी बात छिपी हुई है। यह फ़िल्म हमें एहसास दिलाती है कि किस तरह से हर छोटी-छोटी बातें हमारी ज़िन्दगी में मायने रखती हैं और किस तरह से कोई बात हमारे लिए हो सकता है कि बहुत छोटी हो पर वह किसी और की ज़िदगी के सबसे बड़ी बात हो सकती है।
    इसके साथ ही फ़िल्म मनुष्य में छिपी हुई असुरक्षा की भावना और आत्मविश्वास की कमी को लेकर भी एक बड़ा सन्देश देती है। ‘शेम’ कहने के लिए एक शॉर्ट फ़िल्म है पर इसको देखने का आपका अनुभव बिल्कुल एक फुल हिंदी फ़िल्म की तरह ही होगा। फ़िल्म अंत में आपको दुविधा या रहस्य में नहीं छोड़ती है।
    टिपण्णी – हम यह अब तक समझ नहीं पाए हैं कि फ़िल्म का नाम शेम क्यों रखा? फ़िल्म में यह एंगल तो है कि किस तरह से हाउसकीपर अपने आप को लेकर असुरक्षा की भावना में रहती है और बाद में वह असुरक्षा ख़त्म हो जाती है।
    और फ़िल्म में दूसरा एंगल यह है कि किस प्रकार बड़े लोग गरीब लोगों को अपनी चीजों के आस- पास भी फटकने नहीं देते क्योंकि उनको शर्म आती है।
    पर इन एंगल को लेकर यदि फ़िल्म का नाम ‘शेम’ रखा गया है तो फ़िल्म के क्लाइमेक्स  में तीसरा बड़ा एंगल क्यों रखा गया है जो फ़िल्म के नाम से बिल्कुल मेल नहीं खाता।
    यदि आपको समझ में आया हो तो कमेंट करें और हमें बताएं।

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    By साक्षी सिंह

    Writer, Theatre Artist and Bellydancer

    4 thoughts on “शेम रिव्यु: फुल हिंदी फ़िल्म का अनुभव कराती है भावनाओं को कुरेदती यह शॉर्ट फ़िल्म”

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