आधुनिक भारत और अमेरिका के बीच अंतरराष्ट्रीय संबंधों की शुरूआत अमेरिकी राष्ट्रपति हेनरी ट्रूमैन के समय 1949 में ही हो गई थी। लेकिन उस समय नेहरू की विचारधारा समाजवादी थी और अमेरिका पूंजीवादी विचारधारा को लेकर चल रहा था। परिणाम स्वरुप भारत अमेरिका सम्बन्ध मात्र एक औपचारिकता ही थे।
1954 में अमेरिका नें पाकिस्तान के साथ मिलकर एक ‘सेंटो’ नामक संस्था की स्थापना की, जो भारत को अच्छा नहीं लगा। इसी के चलते भारत नें सोवियत रूस के साथ रिश्ते मजबूत कर लिए।
1961 में भारत एक संस्था का सदस्य का बना जिसने शीत युद्ध से अपने आप को अलग रखने की बात कही। इसके बाद 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में अमेरिका नें प्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान का साथ देने की कोशिश की।
जब उस युद्ध में भारत की जीत हुई, तब अमेरिका नें दक्षिणी एशिया में भारत को एक बड़ी शक्ति माना और भारत के साथ सम्बन्ध मजबूत करने की कोशिश की।
इसके बाद 1991 में सोवियत रूस अलग हुआ जिसके बाद भारत और अमेरिका के संबंध मजबूत होते गए।
इसके बाद से आज तक भारत और अमेरिका की रिश्तों में कई उतार-चढ़ाव आये हैं। 90 के दशक में जब भारत एक उभरती अर्थव्यवस्था के रूप में विकसित हो रहा था, तब अमेरिका को यह अच्छा नहीं लगा था। इसी के चलते भारत ने जब 1998 में परमाणु परिक्षण किया था, तब अमेरिका ने इसका खुले में विरोध किया था। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने भारत से सभी रिश्तों को ख़त्म करने की धमकी दी थी।
लेकिन फ़िलहाल के सालों में दोनों देश काफी क़रीब आये हैं। अमेरिका को एशिया में अपना दबदबा बनाये रखने के लिए भारत की सख्त जरूरत है। उसी प्रकार भारत को व्यापार और रक्षा कारणों से अमेरिका की जरूरत है।
शीतयुद्ध के दौरान भारत और अमेरिका संबंध:
शीत युद्ध के कारण 1946 से लेकर 1989 के तक पूरी दुनिया दो गुटों में बटी रही। शीत युद्ध में एक गुट अमेरिका का था और दूसरा सोवियत संघ का। विश्व की प्रत्येक समस्या को गुटीय स्वार्थ पर देखा जाने लगा। शीत युद्ध के परिणाम स्वरुप नाटो, सीटो, सेंटो, वारसा पैक्ट जैसे कई सैन्य गुट बनकर तैयार हुए। दोनों गुट अधिक से अधिक देशों को अपने ग्रुप में शामिल करने की होड़ में जुट गए ताकि विश्व के अधिकांश क्षेत्रों पर अपना प्रभुत्व बढ़ाया जा सके।
भारत समाजवादी विचारधारा का समर्थक था इसलिए उसका झुकाव कहीं ना कहीं अप्रत्यक्ष रुप से सोवियत संघ की तरफ था। अमेरिका को यह बात रास नहीं आ रही थी क्योंकि भारत एशिया का एक महत्वपूर्ण और बड़ा देश था। हालांकि भारत ने किसी भी गुट में शामिल ना होते हुए अलग गुट का निर्माण किया जिसे गुटनिरपेक्ष कहा गया। दुनिया के कई देशों ने मिलकर गुटनिरपेक्ष रहने का निर्णय लिया।
1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध के दौरान अमेरिका ने चीन के साथ मिलकर पाकिस्तान का पूरा सहयोग किया, जो कि भारत के लिए बेहद चिन्ता का विषय था। भारत ने भी 20 साल के लिए रूस से दोस्ती की और सहयोग संधि पर हस्ताक्षर किया, जो कि अमेरिका और चीन दोनों को नवारा लगा। अमेरिका पाकिस्तान का लगातार सहयोग कर रहा था। परिणाम स्वरुप भारत की मजबूरी बन गई थी कि भारत को गुटनिरपेक्ष रहते हुए भी रूस के साथ समझौता करना पड़ा।
1974 पोखरण परमाणु परीक्षण :
1974 में भारत ने परमाणु परीक्षण कर पूरी दुनिया को चौंका दिया, क्योंकि भारत से पहले इस तरह का न्युक्लियर परमाणु परीक्षण संयुक्त राष्ट्र संघ के स्थाई सदस्यों को छोडकर किसी ने नहीं किया था। भारत परमाणु परीक्षण के बाद दुनिया के उन ताकतवर देशों की सूची में शामिल हो गया जिसके पास परमाणु हथियार थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस परमाणु परीक्षण को शांतिपूर्ण परीक्षण का नाम दिया।
भारत के परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका ने भारत को परमाणु सामग्री और ईंधन आपूर्ति पर रोक लगा दी, साथ ही भारत पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिये। इससे भारत और अमेरिका के संबंध में काफी कड़वाहट ला दी। लेकिन इस विषम परिस्थिति में रूस ने भारत का साथ देकर भारत और रूस के साथ संबंधों को और मजबूत किया।
पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद भारत के पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान दोनों में खलबली मच गई। भारत पर कई तरह के प्रतिबंध लगाने की दबाव भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बनाया जाने लगा। भारत और अमेरिका के बीच अंतरराष्ट्रीय संबंध सामान्य तरीके से ही चलते रहे लेकिन इसमें कोई सुधार नहीं आया।
1998 पोखरण-2 परमाणु परीक्षण:
1998 तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पोखरण में परमाणु परीक्षण करके पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया। इस परीक्षण के बाद इजरायल को छोड़कर पूरी दुनिया भारत के खिलाफ उठ खड़ी हुई और अमेरिका सहित कई देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध भी लगा दिया। अमेरिका ने भारत से अपने राजदूत को भी वापस बुला लिया था। इसके बाद कुछ समय तक दोनों देशों के बीच काफी तनातनी रही।
वर्ष 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी ने अमेरिका ने संयुक्त सत्र को संबोधित कर भारत और अमेरिका के बीच नए संबंधो की नींव रखी। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में काफी सुधार आया। 2008 में भारत और अमेरिका के बीच सिविल न्यूक्लियर डील ने भारत और अमेरिका के बीच संबंधों को और भी मजबूत किया।
वर्तमान स्थिति
बराक ओबामा कार्यकाल
भारत और अमेरिका दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश हैं, जिसमें काफी समानता भी है। बराक ओबामा के साथ भारत और अमेरिका के रिश्ते में काफी मजबूती आई और दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग सुधार और व्यापार में वृद्धि हुई। वर्ष 2010 में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भारत यात्रा की। ओबामा ने भारतीय कारोबारियों को संबोधित किया, साथ ही भारत में निवेश करने और तकनीकी हस्तांतरण जैसे तमाम मुद्दों पर समझौता भी किया।
वर्ष 2015 में बराक ओबामा की दूसरी भारत यात्रा ने भारत और अमेरिका के रिश्ते को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया क्योंकि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका के साथ मिलकर दुनिया से आतंकवाद को खत्म करने और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के निर्माण के लिए कई समझौते किये। साथ ही जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, गरीबी, कुपोषण, मानवाधिकार जैसे अंतरराष्ट्रीय मुद्दो पर साथ रहकर काम करने की इच्छा जतायी। इससे दोनों देश कई मुद्दों पर पास आये।
डोनाल्ड ट्रम्प
2017 में डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका के नए राष्ट्रपति बने। इस दौरान भारत और अमेरिका के बीच रिश्तों को और मजबूती मिली। डोनाल्ड ट्रम्प का भारत के खिलाफ शुरू से रवैया काफी ख़ास रहा है। ट्रम्प ने अपने चुनाव प्रचार के समय कहा था कि यदि वे राष्ट्रपति बनते हैं, तो अमेरिका में रह रहे हिन्दू समुदाय के लोगों के लिए वाइट हाउस में एक सच्चा दोस्त होगा।
डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद प्रधानमंत्री मोदी पहले ऐसे विदेशी मंत्री थे, जिन्होंने वाइट हाउस का दौरा किया था। नरेंद्र मोदी ने अपने अमेरिकी दौरे के दौरान दोनों देशों के बीच अनेक समझौते किये।
हाल ही में डोनाल्ड ट्रम्प ने मुस्लिम आतंकवाद को खत्म करने के लिए भारत से ख़ास मदद मांगी है। ट्रम्प ने अफगानिस्तान में भारत को सहयोग देने को कहा था। इसके अलावा अमेरिका पाकिस्तान पर नजर रखने के लिए भारत का साथ चाहता है।
चीन
चीन के प्रभाव को कम करने के लिए भारत और अमेरिका की नेवी ने एशिया और प्रशांत महासागर में एक साथ युद्धाभ्यास किया। स्पष्ट है कि आज अमेरिका को अगर चीन को तगड़ा जवाब देने और उसके प्रभाव को कम करने के लिए भारत की शख्त जरूरत है। शायद इसी वजह से भारत और अमेरिका की सेनायें कई बार संयुक्त युद्धाभ्यास कर चुकी है और आने वाले समय में भी ऐसे कई समझौते हो चुके हैं जिसमें भारत और अमेरिका के बीच समझौते और युद्धाभ्यास शामिल है।
2017 में आज भारत और अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय संबंधों के चार दशक बीत चुके हैं। अमेरिका और भारत के बीच एक अलग ही केमिस्ट्री दुनिया को देखने को मिल रही है। जो अमेरिका कभी चीन की सेना की मदद से भारत को हराने की कोशिश करता था, आज वही अमेरिका चीन को पीछे छोड़ने के लिए भारतीय सेना की मदद चाहता है। एशिया में दो महाशक्तियों का उदय हो रहा है, एक चीन और दूसरा भारत। चीन की शक्ति को संतुलन करने के लिए अमेरिका को भारत के साथ रहना ही पड़ेगा। अमेरिका को इस चिंता है कि ड्रैगन कही दुनिया भर से आगे न निकल जाए। एशिया में शक्ति संतुलन को बनाए रखने के लिए भारत का शक्तिशाली होना बेहद जरूरी है।
चीन को नियंत्रित करने के लिए अमेरिका नें भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर एक रक्षा समझौता किया था। इसके तहत चारों देशों की सेनाओं नें मिलकर युद्धाभ्यास किया था।
हालाँकि अमेरिका नें कहा था कि यह सिर्फ एक युद्ध का अभ्यास था, लेकिन यह साफ़ है कि अमेरिका यह चीन को नियंत्रित करनें के लिए करना चाहता था।
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