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    2021 की पहली लोक अदालत का आयोजन 10 अप्रैल को होना था। लेकिन कोरोना के बढ़ते मामलों को दस्खते हुए अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग कदम उठाये जा रहे हैं। जहाँ की झारखंड में होने वाली लोक अदालत को ऑनलाइन कर दिया गया है, वहीं लखनऊ, जहांनाबाद और पूर्णिया में आयोजित होने वाली लोक अदालतों को अगले माह मई तक स्थगित कर दिया गया है।

    क्या हैं लोक अदालत

    राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा आयोजित लोक अदालत, विवादों का निपटान करने का एक वैकल्पिक माध्यम है।लोक अदालत एक ऐसी अदालत या मंच है जहाँ पर न्यायालयों में विवादों और लंबित मामलों या मुकदमेबाजी से पहले की स्थिति से जुड़े मामलों का समाधान समझौते से और सौहार्दपूर्ण तरीके से किया जाता है। इसमें विवादों के दोनों पक्ष के मध्य उत्त्पन हुए विवाद को बातचीत या मध्यस्ता के माध्यम से उनके आपसी समझौते के आधार पर निपटाया जाता है।

    लोक अदालत का अर्थ है लोगों का न्यायालय। यह एक ऐसा मंच है जहां विवादों को आपसी सहमति से निपटाया जाता है। यह गांधी जी के सिद्धांतों पर आधारित है।

    कब हुई शुरुआत

    लोक अदालत की स्थापना का विचार सर्वप्रथम भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी.एन.भगवती द्वारा दिया गया था। सबसे पहली लोक अदालत का आयोजन 1982 में गुजरात में किया गया था। 2002 से लोक अदालतों को स्थायी बना दिया गया।

    लोक अदालत को विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 के तहत लोक अदालत को वैधानिक दर्जा दिया गया है। जिसके तहत लोक अदालत के अवार्ड (निर्णय) को सिविल न्यायालय का निर्णय माना जाता है, जो कि दोनों पक्षकारों पर बाध्यकारी होता है। लोक अदालत के अवार्ड (निर्णय) के विरुद्ध किसी भी न्यायलय में अपील नहीं की जा सकती है।

    किन मामलों की होती है सुनवाई

    न्यायालय में लंबित मुकदमां का समझौता-केवल ऐसे आपराधिक मुकदमों को छोड़कर जिनमें समझौता कानूनन संभव नही है, सभी प्रकार के सिविल एवं आपराधिक मुकदमें भी इन लोक अदालतों में आपसी समझौते के द्वारा निपटाये जातें हैं।न्यायालय में मुकदमा जाने से पहले समझौता ख ऐसे विवाद जिन्हें न्यायालय के समक्ष दायर नही किया गया है उनका भी प्री लिटिगेशन स्तर पर यानि मुकदमा दायर किये बिना ही दोनो पक्षों की सहमति से लोक अदालतों में निस्तारण किया जा सकता है।

    लोक अदालतों में सभी दीवानी मामले, वैवाहिक विवाद, नागरिक मामले, भूमि विवाद, मज़दूर विवाद, संपत्ति बँटवारे संबंधी विवाद, बीमा और बिजली संबंधी आदि विवादों का निपटारा किया जाता है। विधि के तहत ऐसे अपराध जिनमें राजीनामा नहीं हो सकता तथा ऐसे मामले जहाँ संपत्ति का मूल्य एक करोड़ रुपए से अधिक है, का निपटारा लोक अदालतों में नहीं हो सकता।

    क्या हैं विशेषताएं

    लोक अदालतों में किसी भी प्रकार की कोर्ट फीस नहीं लगती। यदि न्यायालय में लंबित मुकदमे में कोर्ट फीस जमा करा दी गई हो तो लोक अदालत में विवाद का निपटारा हो जाने पर वह फीस वापस कर दी जाती है। इसमें दोनों पक्षकार जज के साथ स्वयं अथवा अधिवक्ता के माध्यम से बात कर सकते हैं, जो कि नियमित अदालत में संभव नहीं होता है। लोक अदालतों द्वारा ज़ारी किया गया अवार्ड (निर्णय) दोनों पक्षों के लिये बाध्यकारी होता है।
    इसके विरुद्ध अपील नहीं की जा सकती।

    स्थायी लोक अदालतों के गठन के पश्चात कोई भी पक्ष जिसका संबंध जनहित सेवाओं जैसे- बिजली, पानी व अस्पताल आदि से है, संबंधित विवादों को निपटाने के लिये स्थायी लोक अदालत में आवेदन कर सकता है। स्थायी लोक अदालत अपने किये गए निर्णय के निष्पादन के लिये उसे क्षेत्रीय आधिकारिता रखने वाले न्यायालय के पास भेज सकती है और यह जिस न्यायालय के पास भेजा जाएगा, वह उस निर्णय का पालन उसी प्रकार करवाएगा, जैसे स्वयं द्वारा पारित निर्णय अथवा डिक्री की करवाता है।

    क्या है ई-लोक अदालत

    ऑनलाइन लोक अदालत या ई-लोक अदालत न्‍यायिक सेवा संस्‍थानों का एक नवाचार है, जिसमें अधिकतम लाभ के लिए टैक्‍नोलॉजी का उपयोग किया गया है। यह लोक अदालत का ही एक वर्चुअल प्रारूप है जो लोगों को घर बैठे ही न्‍याय प्राप्त करने के लिए एक मंच प्रदान करता है। ई-लोक अदालतों के संचालन में खर्च कम होते है, क्‍योंकि इसमें परम्परागत रूप से केस से संबंधी खर्चों की जरूरत समाप्‍त हो जाती है।

    राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के तत्वावधान में वर्ष 2020 की अंतिम राष्ट्रीय लोक अदालत का 12 दिसम्‍बर, 2020 को वर्चुअल और प्रत्यक्ष रूप में आयोजन किया गया था। कोविड-19 महामारी को देखते हुए दिनभर चलने वाली इस लोक अदालत के आयोजन के दौरान सभी राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण और जिला विधिक सेवा प्राधिकरण ने आवश्‍यक सुरक्षा प्रोटोकॉल का कड़ाई से अनुपालन किया गया था।

    By आदित्य सिंह

    दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास का छात्र। खासतौर पर इतिहास, साहित्य और राजनीति में रुचि।

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