Mon. Dec 9th, 2024
    राम जन्मभूमि

    अयोध्या के बहुचर्चित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर आज शुक्रवार से सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई शुरू हो गई। उत्त्तर प्रदेश सरकार की तरफ से अपना पक्ष रखते हुए असोसिएट सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को इस मामले की सुनवाई शीघ्रातिशीघ्र पूरी करनी चाहिए। उनकी इस मांग पर ऐतराज जताते हुए सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने कहा कि यह सुनवाई उचित प्रक्रिया के बिना की जा रही है। इस मामले में एक वादी राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि विवादित स्थल पर लोगों को पूजा करने की अनुमति मिलनी चाहिए। इस पर सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने सभी वादियों से यह कहा कि सबसे पहले यह स्पष्ट करें कि कौन किसकी तरफ से पक्षकार है। इसके जवाब में वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और सुन्नी बोर्ड की तरफ से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि इस मामले में कई पक्षकारों का निधन हो चुका है। ऐसे में पक्षकारों को बदलने की जरुरत है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि इस मामले से जुड़े दस्तावेज कई भाषाओं में हैं अतः पहले उनका अनुवाद कराया जाना चाहिए।

    सुनवाई के दौरान सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि यह मौलिक अधिकारों का मामला है कोई दीवानी विवाद नहीं। उन्होंने इसे दीवानी से बदल कर सार्वजनिक हित के मामले की तरह देखे जाने की मांग की। इस पर विरोध जताते हुए सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि इसका निपटारा तो सुप्रीम कोर्ट पहले ही कर चुका है। उन्होंने कहा कि 5 जजों की बेंच ने 1994 में इस जमीन के मालिकाना हक के लिए दीवानी मामले की अलग से सुनवाई के सम्बन्ध में आदेश दिया था। इस बेहद अहम मामले के निपटारे के लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन जजों की बेंच बनाई है जिसमें जस्टिस दीपक मिश्रा, अशोक भूषण और अब्दुल नज़ीर शामिल हैं। यह बेंच इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसलों के खिलाफ दायर याचिकाओं और और विवादित जमीन के मालिकाना हक पर रोज सुनवाई करेगी।

    इस मामले में शिया वक़्फ़ बोर्ड ने कल याचिका दायर कर मांग की थी कि विवादित जमीन पर राम मंदिर का निर्माण हो। पास के मुस्लिम बाहुल्य इलाके में मस्जिद निर्माण के लिए सरकार जमीन उपलब्ध कराए। शिया वक़्फ़ बोर्ड ने यह माना था कि विवादित जगह पर पहले मंदिर था जिसे तोड़कर मीर बक़ी ने मस्जिद बनवाई थी। मीर बक़ी भी शिया ही था और 1946 तक इस जमीन पर शिया वक़्फ़ बोर्ड का मालिकाना हक था। इसलिए शिया वक़्फ़ बोर्ड ने दावा किया था कि इस जमीन पर पहला हक उसका बनता है। ब्रिटिश सरकार ने शिया वक़्फ़ बोर्ड से मालिकाना हक छीनकर 1946 में सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को ट्रांसफर कर दिया था।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।