राजस्थान में मुख्यमंत्री चुनने के बाद कांग्रेस को लगा था कि अब सब कुछ शांत हो गया है तो ऐसा नहीं है। अभी मंत्रिमंडल का बंटवारा नहीं हुआ है और गहलोत और पायलट खेमे में मंत्रिमंडल में हिस्सेदारी को लेकर अंदरूनी खींचतान की खबरें आ रही है।
इकोनोमिक्स टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक़ मुख्यमंत्री गहलोत और उपमुख्यमंत्री पायलट के पास करीब 3 दर्जन विधायक मंत्री पद पाने के लिए अपनी पैरवी कर रहे हैं।
जहाँ गहलोत उन मंत्रियों को प्राथमिकता देने के पक्ष में है जो उनके साथ पिछली सरकार में भी थे वहीँ पायलट मंत्रिमंडल में युवा प्रतिनिधित्व चाहते हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक़ यह विवाद का मुद्दा बन सकता है और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को हस्तक्षेप करना पड़ सकता है।
मुख्यमंत्री गहलोत जिन मंत्रियों को दोहराना चाहते हैं उनमे शांति धारवाल, आर पारीक, पीजे भाया और एमएस मालवीय प्रमुख हैं जबकि पायलट अपने खेमे के लिए गृह, वित् और पीडब्लूडी विभाग चाहते हैं।
पहले चरण में 16 मंत्रियों को मंत्रिमंडल में शामिल करने की संभावना है। इनमें से 10 को गहलोत खेमे से और पायलट के खेमे से 6 को मंत्री बनाने की संभावना है। एक विधायक ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताया कि मंत्री पद के बंटवारे में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी को दखल देना पड़ सकता है क्योंकि गहलोत और पायलट के बीच भरी मतभेद है।
राजनितिक विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस में हर फैसले से पहले हाईकमान से आज्ञा लेने की संस्कृति वापस आ रही है। 80 के दशक में कांग्रेस प्रशासित राज्यों के मुख्यमंत्री दिल्ली की फ्लाइट पकड़ते थे और किसी भी महत्वपूर्ण निर्णय के लिए पहले इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी से पूछते थे। अब कांग्रेस में फिर वैसा ही होने जा रहा है।
जिस तरह से मुख्यमंत्री के चुनाव में हाईकमान को काफी माथापच्ची करनी पड़ी थी उससे बड़ी मुश्किल मंत्री पद के बंवारे में दोनों खेमों को साधने में आने वाली है।