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    sohrabuddin

    2005 को हुए सोहराबुद्दीन शेख, उसकी पत्नी कौसर बी और दोस्त तुलसीराम प्रजापति के फेक एनकाउंटर केस में मुंबई की विशेष अदालत ने सभी 22 आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया और कहा कि ऐसा कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला है जिससे ये साबित होता हो कि सोहराबुद्दीन की हत्या के लिए साजिश रची गई थी।

    इससे पहले सीबीआई ने कहा था कि  गुजरात पुलिस के अधिकारियों ने राजनितिक और आर्थिक लाभ लेने के उद्धेश्य से सोहराबुद्दीन, कौसर बी और तुलसीराम प्रजापति की हत्या की साजिश रची और इसे एनकाउंटर का नाम दे कर अंजाम दिया। इस हत्य्कांड में सीबीआई ने 38 लोगो को नामित किया था जिसमे भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, पूर्व पुलिस अधिकारी डीजी वंजारा और अन्य पुलिस अधिकारियों के नाम शामिल थे।

    अमित शाह, डीजी वंजारा और कई पुलिस अधिकारी पहले ही इस मामले से बरी हो चुके हैं। सालों चली इस केस की सुनवाई में करीब 92 गवाह अपने बयान से पलट गए जिसके बाद जज ने कहा कि मैं मजबूर हूँ, और सबूतों की कमी के कारण किसी को भी दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

    आइये देखते हैं इस केस में घटी सिलसिलेवार घटनाएं : 

    26 नवम्बर 2005 – गुजरात एटीएस और राजस्थान एसटीएफ ने मिलकर गुजरात के एक राजनेता की हत्या की साजिश रचने के आरोप में सोहराबुद्दीन शेख का एनकाउंटर किया था।

    14 जनवरी 2006 – सोहराबुद्दीन के एनकाउंटर और पत्नी कौसर बी के लापता होने की शिकायत सोहराबुद्दीन के भाई रुबाबुद्दीन ने दर्ज कराई।

    28 दिसंबर 2006 -एक एनकाउंटर में तुलसीराम प्रजापति मारा गया। बताया गया कि वो सोहराबुद्दीन गैंग का सदस्य था।

    11 सितम्बर 2007 – तुलसीराम की माँ ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका डाली और आरोप लगाया कि तुलसीराम का फेक एनकाउंटर किया गया है।

    मार्च 2008 – सोहराबुद्दीन केस की जाँच गुजरात सीआईडी को सौंपी गई।

    24 अप्रैल 2008 – तीन आइपीएस अधिकारियों को गिरफ्तार किया गया। उनके नाम डीसी वंजारा, राज कुमार और दिनेश एनएन थे।

    16 जुलाई 2008 – सीआईडी ने एक चार्जशीट दाखिल की जिसमे एस एनकाउंटर को फेक बताया गया और इसके लिए डीसी वंजारा, राज कुमार और दिनेश एनएन को आरोपी बनाया गया।

    12 जनवरी 2010 – सुप्रीम कोर्ट सीआईडी की चार्जशीट से संतुष्ट नहीं हुआ। केस सीबीआई को ट्रांसफर किया गया।

    23 जुलाई 2010 – सीबीआई आई ने एक नई चार्जशीट दाखिल की जिसमे 38 लोगों को आरोपी बनाया गया। इसमें भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और राजस्थान के पूर्व गृहमंत्री गुलाब चन्द्र कटारिया का नाम भी शामिल था।

    27 सितंबर 2011- सुप्रीम कोर्ट ने केस के ट्रायल को गुजरात से बाहर मुंबई ट्रांसफर कर दिया।

    30 दिसंबर 2014- जज एमबी गोसवी ने अमित शाह को मामले से बरी कर दिया।

    मार्च 2015-  डीजी वंजारा समेत ज्यादातर आरोपियों को रिहा कर दिया गया।

    3 नवंबर 2018- मुख्य गवाह आजम खान ने अपने बयान में आरोप लगाया कि डीजी वंजारा के दवाब पर सोहराबुद्दीन ने गुजरात के पूर्व गृहमंत्री हरेन पांड्या की हत्या की बात स्वीकार की थी।

    By आदर्श कुमार

    आदर्श कुमार ने इंजीनियरिंग की पढाई की है। राजनीति में रूचि होने के कारण उन्होंने इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ कर पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखने का फैसला किया। उन्होंने कई वेबसाइट पर स्वतंत्र लेखक के रूप में काम किया है। द इन्डियन वायर पर वो राजनीति से जुड़े मुद्दों पर लिखते हैं।

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