राजस्थान में विधानसभा चुनावों के मद्देनजर प्रधानमंत्री मोदी अलवर से जोधपुर तक का रास्ता नाप रहे हैं इस उम्मीद के साथ की ओपिनियन पोल में असंभव बताये जा रहे भारतीय जनता पार्टी की जीत को अपनी उपस्थिति से संभव बना सकें।
वैसे अगर राजस्थान के ट्रेंड को देखें तो हर 5 साल पर वहां सत्ता बदलने की परंपरा रही है। 1993 से अब तक हर बार सत्ता बारी बारी से भाजपा से कांग्रेस और कांग्रेस से भाजपा को हस्तांतरित होती रही है।
2013 में भाजपा न सिर्फ कांग्रेस से ज्यादा लोकप्रिय थी बल्कि पार्टी अपने वोट शेयर को सीट में बदलने के मामले में भी काफी आगे निकल गई। भाजपा को मिले हर 1 फीसदी वोट ने उसे 1.8 फीसदी सीट दिलाये। भाजपा का औसत विजयी अंतर 14.5 फीसदी थी। लेकिन कुछ क्षेत्रों (अलवर के शहरी क्षेत्र) में ये अंतर 44.3 फीसदी भी था।
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चुनाव पूर्व तमाम सर्वे ये बता रहे हैं कि हर 5 साल पर चलने वाला सत्ता विरोधी लहर इस बार भी पुरे फॉर्म में है। सारे सर्वे ने कांग्रेस की एकतरफा जीत दिखाई है। सी-वोटर ने अपने सर्वे में कांग्रेस के 43 फीसदी वोटों के साथ 124 सीट जीतने ला अनुमान लगाया है।
राजनीति में सत्ता विरोध एक प्राकृतिक बात है। सत्ता में आयी पार्टियों द्वारा वादे पुरे नहीं करने पर सत्ता का समर्थन, सत्ता के विरोध में बदल जाना एक आम बात है। राजस्थान में भी ये बात लागू है लेकिन राजस्थान में ये बात कई स्टारों पर है।
2013 में भाजपा नौकरी और किसान संकट के मुद्दे पर युवाओं और किसानो का जबरदस्त समर्थन ले कर सत्ता में आई थी। किसान बहुल 20 सीटों पर भाजपा का सीट शेयर 80 फीसदी था जबकि वोट शेयर 46 फीसदी था।
आम तौर पर माना जाता है कि भाजपा का आधार शहरी मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग है। उच्च वर्ग में राजपूत समुदाय भाजपा के साथ जनसंघ के दिनों से ही जुड़ा हुआ है। 2013 में चुनाव बाद हुए लोकनीति – सीएसडीएस के सर्वे में ये बात निकल कर आई कि 67 फीसदी राजपूतों ने भाजपा को वोट किया था।
लेकिन इस बार राजपूत भाजपा से नाराज हैं। गैंगस्टर आनंदपाल का एनकाउंटर, पद्मावत विवाद, भाजपा के राज्य अध्यक्ष के तौर पर राजपूत को दरकिनार करना ये कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिसने राजपूतों को भाजपा के खिलाफ खड़ा कर दिया है। रिपोर्ट के अनुसार राजपूतों की इस नारजगी ने कांग्रेस की उम्मीदों को पंख दे दिए हैं। हालाँकि राजस्थान की कुल आबादी में राजपूत वोटर महज 10 से 12 फीसदी ही हैं लेकिन इनकी अन्य समुदायों के वोट प्रभावित करने की क्षमता से इनकार भी नहीं किया जा सकता।
दूसरी तरफ 2013 में भाजपा के करीब आया SC/STs वोटर इस बार उससे दूर जाने लगा है। 2013 में भाजपा ने 45 फीसदी SC/STs वोटों के साथ 58 SC/STs सीट में से 49 पर कब्जा किया था।
सभी जातीय समीकरण को ध्यान में रखकर ही सभी चुनाव पूर्व सर्वे कांग्रेस की वापसी का अनुमान लगा रहे हैं। कांग्रेस ने मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया है लेकिन इसके बावजूद लोकनीति – सीएसडीएस के सर्वे में उसके मुख्यमंत्री के संभावित चेहरे अशोक गहलोत (65 फीसदी) और सचिन पायलट (61 फीसदी) भाजपा की मुख्यमंत्री प्रत्याशी वसुंधरा राजे (53 फीसदी) से ज्यादा लोकप्रिय हैं।
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