Thu. Apr 25th, 2024

    चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में कश्मीर मुद्दे को उठाया, मगर उसे मुंह की खानी पड़ी, क्योंकि अन्य स्थायी सदस्यों ने इस मुद्दे पर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।

    राजनयिक सूत्रों ने कहा कि इस दिशा में विशेष रूप से अमेरिका और फ्रांस ने एक मजबूत रुख अपनाया। इसके साथ ही ब्रिटेन, जो अगस्त 2019 में अस्पष्ट था, उसने भी बुधवार को परिषद के हस्तक्षेप के खिलाफ एक मजबूत स्थिति बनाने में उनका साथ दिया।

    इस दौरान रूस भी तीनों पश्चिमी देशों के साथ खड़ा हो गया, जिससे पाकिस्तान व चीन के मंसूबों पर पानी फिर गया।

    चीन के स्थायी प्रतिनिधि झांग जून और पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने भी बाद में इस तथ्य को स्वीकार किया कि परिषद में कश्मीर विवाद एक द्विपक्षीय मुद्दा ही बना रहा।

    वियतनाम के स्थायी प्रतिनिधि डांग दीन क्वी, जो इस महीने के लिए परिषद के अध्यक्ष हैं, ने मीडिया से बात नहीं की और कोई बयान नहीं दिया।

    बंद दरवाजे की यह बैठक काउंसिल चैंबर से दूर एक परामर्श कक्ष में आयोजित की गई थी।

    झांग ने तात्कालिकता दिखाते हुए परिषद के पाकिस्तानी विदेश मंत्री कुरैशी के पत्र का हवाला दिया।

    कुरैशी ने आरोप लगाया कि भारत ने पांच सेक्टरों में नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर बाड़ के कुछ हिस्सों को हटा दिया है और सीमा के साथ ब्रह्मोस व एंटी-टैंक और अन्य मिसाइलों को तैनात किया है।

    परिषद को स्थानांतरित करने के दावे विफल होने के बाद भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने कहा, “हमने एक बार फिर देखा कि एक सदस्य देश की कोशिशों की हार हुई। ये हमारे लिए खुशी की बात है कि पाकिस्तान के प्रतिनिधि द्वारा कश्मीर में खतरे की स्थिति को नकार दिया गया। पाकिस्तान कश्मीर को लेकर लगातार आधारहीन आरोप लगाता रहा है। कई देशों का कहना है कि कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय तरीके से ही हल किया जाना चाहिए।”

    सूत्रों ने कहा कि चीन ने एक प्रस्ताव रखा था कि भारत और पाकिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षकों के समूह (यूएमओजीआईपी) को कार्य सौंपना चाहिए।

    हालांकि इसे अन्य सदस्यों द्वारा खारिज कर दिया गया।

    सूत्रों ने कहा कि परिषद के सभी 15 सदस्यों ने कहा कि इस स्थिति को द्विपक्षीय रूप से हल किया जाना चाहिए।

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