2014 के लोकसभा चुनावों को भाजपा ने दूसरी आजादी आंदोलन की तरह प्रचारित किया था। अपने दूसरे कार्यकाल में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार “घोटालों की सरकार” रही थी और पूरे देश में असंतोष की लहर व्याप्त थी। जब किसी नेतृत्व या सरकार विशेष से जनता आजिज आ चुकी हो तो उसे राह दिखाने के लिए एक प्रतिनिधि की जरुरत होती है। नरेंद्र मोदी ऐसे ही करिश्माई व्यक्तित्व के व्यक्ति थे और उन्होंने देश की जनता को “भ्रष्टाचार मुक्त भारत” का सपना दिखाया। देश की जनता ने भी उनपर भरोसा जताया और चुनावों के वक़्त पूरा देश एक सुर में बोल उठा “अबकी बार, मोदी सरकार”। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में कांग्रेसी भ्रष्टाचार के दलदल में कश्मीर से कन्याकुमारी तक कमल खिला और भाजपा बहुमत से सत्ता में आई।
देश के लोगों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बहुत उम्मीदें थी और उन्हें यकीन था कि वह देश का मौजूदा हालातों में अभूतपूर्व बदलाव लायेंगे। बदलाव वक्त की मांग होती है और हर बदलाव में निश्चित वक्त लगता है। मोदी सरकार अपने चुनावी वादों को पूरा करने और मौजूदा हालातों को सुधारने के लिए पूर्णतया प्रयासरत नजर आ रही है। इसके बावजूद कुछ अहम मुद्दे ऐसे हैं जहाँ सरकार जनता का विश्वास जीतने में असफल रही है। सत्ताधारी मोदी सरकार के कार्यकाल के 3 वर्ष पूरे होने के बाद उसकी प्रमुख विफलताओं को उल्लेखित करने वाले अहम बिंदु क्रमवार नीचे वर्णित हैं।
नोटबंदी
जिस वजह से मोदी सरकार की हर जगह खासी आलोचना हुई वह थी नोटबंदी। काले धन को बाहर निकालने और नोटों की जमाखोरी को रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दीवाली पर “मन की बात” कार्यक्रम में देश में सर्वाधिक प्रचलित 500 और 1000 रूपये के नोटों के प्रचलन को प्रतिबंधित करने की घोषणा की थी। उनकी जगह 500 के नए नोट और 2000 रूपये के नोट चलन में लाए गए। नोटबंदी के समय देश में शादियों और त्योहारों का मौसम था और ऐसे में कैश की कमी से आम जनता को बड़ी दिक्कतें पेश आई। भारत को एक कैशलेस अर्थव्यवस्था बनाने के मकसद से उठाया गया यह कदम कैश पर आधारित भारतीय बाजारों के लिए घाटे का सौदा साबित हुआ और जनता में नोटबंदी की वजह से रोष बढ़ गया।
![नोटबंदी](https://hindi.theindianwire.com/wp-content/uploads/2017/08/नोटबंदी-से-प्रभावित-हुई-थी-अर्थव्यवस्था.jpg)
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प्रधानमंत्री द्वारा उठाया गया नोटबंदी का कदम तो सराहनीय था पर आपसी तालमेल की कमी की वजह से यह सुचारु रूप से लागू नहीं हो पाया था। कैश की कमी की वजह से बैंकों के बाहर लम्बी कतारें देखी गईं। अव्यवस्था की वजह से कई लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी थी। सबसे ज्यादा दिक्कत ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को हुई जिन्हें नोट बदलने और धन निकासी के लिए आस-पास के क्षेत्रों के बैंकों के चक्कर काटने पड़े। मोदी सरकार पर पेटीएम को बढ़ावा देने का भी आरोप लगा जिसमें चीनी कंपनी अलीबाबा की सहभागिता है। नोटबंदी के बाद अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लौटने में 6 महीने का वक्त लग गया और कई जगहों पर अभी भी नोटबंदी के असर देखे जा सकते हैं।
सीमा सुरक्षा
मोदी सरकार की बड़ी विफलताओं में से एक मुद्दा है सीमा सुरक्षा का मुद्दा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव पूर्व अपने भाषणों में कहा था कि पाकिस्तानी अगर हमारे 1 जवान का सर काटते हैं तो हम बदले में उनके 10 जवानों का सर काटेंगे। लेकिन सत्ता में आने के बाद उनके ये सभी दावे खोखले साबित हुए हैं। सीमापार से घुसपैठ लगातार बढ़ती जा रही है और जम्मू-कश्मीर में सैन्य शिविरों पर लगातार आतंकी हमले हो रहे हैं। सरकार ने सेना को खुली छूट नहीं दे रखी है और यही वजह है कि पाकिस्तान का दुस्साहस दिन प्रति दिन बढ़ता जा रहा है। सीमा सुरक्षा पर मोदी सरकार का रक्षात्मक रवैया उसका कमजोर पहलू साबित हो रहा है और कश्मीर में जवानों की शहादत बढ़ती जा रही है।
![सीमा सुरक्षा](https://hindi.theindianwire.com/wp-content/uploads/2017/08/सीमा-सुरक्षा-है-अहम-मुद्दा.jpg)
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नक्सलवाद
आजादी के 70 सालों बाद भी देश में व्याप्त आतंरिक नक्सलवाद चिंता का विषय बना हुआ है। पूर्वोत्तर भारत से लगभग इसका खात्मा हो चुका है पर मध्य और उत्तर मध्य भारत में यह अपनी पैठ बना चुका है। सरकार से असंतुष्ट आदिवासी वर्ग के ये लोग सरकार और उसकी नीतियों के खिलाफ हथियार उठा चुके हैं और इन्हे मुख्यधारा में वापस लौटाने में मोदी सरकार विफल रही है। नक्सलवाद का सबसे ज्यादा असर छत्तीसगढ़ में देखा जा सकता है और वहाँ आये दिन सीआरपीएफ जवानों पर नक्सली हमले होते रहे हैं। नक्सल उन्मूलन के तमाम कार्यक्रम और सैन्य ऑपरेशन चलाकर भी मोदी सरकार उन्हें मुख्यधारा से नहीं जोड़ पाई है। किसी भी राष्ट्र की मजबूती की नींव उसकी आन्तरिक मजबूती होती है और नक्सलवाद के रहते राष्ट्र का आन्तरिक रूप से मजबूत हो पाना असंभव है।
![नक्सलवाद](https://hindi.theindianwire.com/wp-content/uploads/2017/08/बड़ी-चुनौती-है-नक्सलियों-को-मुख्यधारा-में-लाना.jpg)
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बेरोजगारी
युवाओं की बेरोजगारी मोदी सरकार के चुनावी एजेंडे में शामिल मुख्य मुद्दा था। अपने चुनावी वादों में भाजपा ने कहा था कि वह युवाओं को रोजगार के बेहतर अवसर उपलब्ध कराएगी। अगर कागजी आंकड़ों को छोड़ दें तो मोदी सरकार के तीन वर्षों के कार्यकाल में देश में बेरोजगारों की संख्या बढ़ी है। भारतीय अर्थव्यवस्था के 8 प्रमुख गैर-कृषि क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों में कमी आई है। इन 8 क्षेत्रों में निर्माण, विनिर्माण, परिवहन, व्यापार, स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास और रेस्त्रां तथा आईटी और बीपीओ शामिल हैं। पिछले वर्ष के दौरान इन 8 क्षेत्रों में सिर्फ 2.3 लाख नौकरियाँ जुड़ी जो प्रतिवर्ष शिक्षित हो रहे नौजवानों के संख्या की तुलना में काफी कम है। सरकार के निर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने की बात करने के बावजूद लगातार इस क्षेत्र में विकास घटा है।
![बेरोजगारी](https://hindi.theindianwire.com/wp-content/uploads/2017/08/बढ़ती-जा-रही-है-बेरोजगारी.jpg)
![बेरोजगारी](https://hindi.theindianwire.com/wp-content/uploads/2017/08/बढ़ती-जा-रही-है-बेरोजगारी.jpg)
एक आंकड़ें के मुताबिक नोटबंदी की वजह से देश में 15 लाख लोग बेरोजगार हो गए हैं। अगर संयुक्त राष्ट्र संघ के इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन की रिपोर्ट पर गौर करें तो भारत में अगले साल बेरोजगारों की संख्या बढ़कर 1.78 करोड़ पहुँच जाएगी जो पिछले वर्ष की तुलना में 10 लाख ज्यादा होगी। अगर केवल इंजीनियरिंग क्षेत्र की बात करें तो देश में सालाना तकरीबन 10 लाख अपनी छात्र स्नातक शिक्षा पूरी कर रहे हैं और इनमें से तकरीबन 71 फ़ीसदी बेरोजगार रह जाते हैं। कोई भी देश युवाओं की वजह से सशक्त बनता है और युवा तब सशक्त होता है जब उसके सपने हकीकत की उड़ान भरते हैं। तमाम कोशिशों के बावजूद मोदी सरकार बेरोजगारी पर लगाम लगाने में नाकाम रही है और यह सरकार की सबसे बड़ी नाकामियों में से एक है।
महँगाई
मोदी सरकार की प्रमुख नाकामियों में से एक है इसका महँगाई पर लगाम ना लगा पाना। अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में लगातार घटती कच्चे तेल की कीमतों के बावजूद सरकार पेट्रोल और डीजल की कीमत पर नियंत्रण नहीं कर पाई है। हर महीने हो रही कुछ पैसों की कमी और फिर वृद्धि से पेट्रोल और डीजल की कीमतें पुराने स्तर पर जा पहुँची है। इसके अतिरिक्त खाद्य पदार्थों की कीमतें आसमान छू रही हैं। एक वक्त में दाल आम आदमी की पहुँच से बाहर हो गई थी और आज टमाटर की कीमतें रुला रही है। सरकार को ये नहीं भूलना चाहिए कि इसी महंगाई की वजह से अटल बिहारी वाजपेयी के सुशासन काल का अंत हुआ था और अब मोदी सरकार भी उसी राह पर अग्रसर है।
![महँगाई](https://hindi.theindianwire.com/wp-content/uploads/2017/08/बढ़ती-जा-रही-है-महँगाई.jpg)
![महँगाई](https://hindi.theindianwire.com/wp-content/uploads/2017/08/बढ़ती-जा-रही-है-महँगाई.jpg)
सूट-बूट की सरकार
सत्ताधारी मोदी सरकार के 3 वर्षों के कार्यकाल पर अगर गौर करें तो पाएंगे कि उसकी सभी योजनाओं का आम जनता से ज्यादा लाभ व्यापारी वर्ग को हुआ है। यही वजह है कि विपक्षी दलों द्वारा मोदी सरकार को सूट-बूट की सरकार भी कहा जाता है। प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी को देशभर के उद्योगपतियों का समर्थन हासिल था। मुकेश अम्बानी और गौतम अडानी को तो मोदी का बेहद करीबी माना जाता है और चुनाव रैलियों के दौरान नरेंद्र मोदी अडानी का हेलीकॉप्टर इस्तेमाल करते थे। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के 6 महीनों के भीतर रिलायंस और अडानी ग्रुप के शेयर के भाव 500 फ़ीसदी तक बढ़ गए थे और इसे उनकी नरेंद्र मोदी से नजदीकियों से जोड़ा गया था। भूमि अधिग्रहण कानून में सरकार द्वारा प्रस्तावित सुधार भी पूर्णतया किसानों के हित में नहीं थे और इसका अप्रत्यक्ष लाभ उद्योगपतियों को मिल रहा था।
![सूट-बूट की सरकार](https://hindi.theindianwire.com/wp-content/uploads/2017/08/पुराना-है-याराना.jpg)
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किसानों की आत्महत्या
पिछले कुछ वर्षों से देश में किसानों की आत्महत्या के मामलों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। सरकार की मौजूदा कृषि नीतियों की वजह से किसानों के लिए फसल का लागत मूल्य निकालना भी मुश्किल हो रहा है। सरकार द्वारा फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य इतना कम निर्धारित किया गया है कि उससे लागत निकलना भी बड़ी बात है। सरकार द्वारा बनाए गए खरीद केंद्रों पर भी अव्यवस्था व्याप्त है और वहाँ मनमौजी दामों पर खरीददारी की जाती है। पूरे देश का पेट भरने वाले अन्नदाता आज खुद अन्न के दाने के मोहताज है। छोटे किसान खुद को सुविधा संपन्न बनाने के लिए कर्ज के बोझ तले दबे जा रहे हैं और सरकार की सिंचाई व्यवस्था अभी कागजों में ही दुरुस्त हो रही है।
![किसानों की आत्महत्या](https://hindi.theindianwire.com/wp-content/uploads/2017/08/सियासी-मुद्दा-बन-कर-रह-गई-है-किसानों-की-आत्महत्या.jpg)
![किसानों की आत्महत्या](https://hindi.theindianwire.com/wp-content/uploads/2017/08/सियासी-मुद्दा-बन-कर-रह-गई-है-किसानों-की-आत्महत्या.jpg)
भारत एक कृषि प्रधान देश है और इसकी आत्मा गाँवों में बसती है। देश की सिंचाई व्यवस्था मानसून पर निर्भर है और इसी वजह से अक्सर देश में सूखे की स्थिति पैदा होती है। सरकार की “नदी जोड़ो परियोजना” अभी तक जमीनी हकीकत का असली जामा नहीं पहन सकी है। अन्य सिंचाई परियोजनाओं के लिए आवंटित राशि को क्षेत्रीय सांसद, विधायक और अधिकारी मिलकर डकार जाते हैं। सूखे की मार और कर्ज के बोझ से दबे छोटे किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं और सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी हुई है। आज भी देश की 70 फीसदी जनसंख्या कृषि पर आश्रित है और भारत जैसे कृषि प्रधान देश में किसानों की आत्महत्या बेहद सोचनीय स्थिति है।
काला धन
लोकसभा चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि सरकार में आने के 100 दिनों के भीतर स्विस बैंकों में जमा काला धन वापस देश में आएगा और हर देशवासी के खाते में 15 लाख रूपये जमा कराए जायेंगे। आज भी कई देशवासी उस दिन का इंतजातर कर रहे हैं जब उनके बैंक खातों में 15 लाख रूपये आएंगे। काले धन का मुद्दा सिर्फ भाजपा का चुनावी स्टंट बन कर रह गया है। हालाँकि मोदी सरकार ने स्विस सरकार से इस मसले पर बातचीत की थी पर इसका कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकल सका है। अभी तक कांग्रेस सरकार को कालेधन का खुलासा ना करने का जिम्मेदार बताने वाली मोदी सरकार अब खुद इसकी लपेट में आकर बैकफुट पर आ गई है।
![काला धन](https://hindi.theindianwire.com/wp-content/uploads/2017/08/स्विस-बैंकों-में-जमा-है-काला-धन.jpg)
![काला धन](https://hindi.theindianwire.com/wp-content/uploads/2017/08/स्विस-बैंकों-में-जमा-है-काला-धन.jpg)
मोदी सरकार ने अपने 3 वर्षों के कार्यकाल में कुछ दूरगामी परिणाम वाले कदम जरूर उठाए हैं पर इन जमीनी मुद्दों पर वह पूरी तरह विफल रही है। विभिन्न क्षेत्रों में मोदी सरकार ने सराहनीय कदम उठाए हैं और उम्मीद है कि इन जमीनी मुद्दों को लेकर शीघ्र ही वह कोई प्रभावी कदम उठाएगी जिससे देश उन्नति की राह पर आगे बढ़ सके।