म्यांमार से सैन्य दमन के कारण रोहिंग्या मुस्लिमों को दूसरे देशों में शरण लेनी पड़ी थी। रायटर्स नें बांग्लादेश के शिविरों में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों से उनकी शिक्षा से सम्बंधित जानकारी हासिल की।
बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों में जीवन व्यतीत कर रहे सोलह साल के कैफयत उल्लाह को बीते जनवरी में स्कूल से निष्कासित कर दिया था। सरकारी पड़ताल में उसके दर्जनों साथियों को रोहिंग्या मुस्लिम कहा गया था।
कैफयत ने कहा कि “प्रमुख अध्यापक ने हमें अपने दफ्तर में बुलाया और कहा कि एक आदेश आया है, रोहिंग्या मुस्लिमों को शिक्षा का अधिकार नहीं है।” सैकड़ों और हज़ारों बच्चे शिक्षा हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। साल 2017 में एक सैन्य अभियान के बाद म्यांमार से 730000 रोहिंग्या मुस्लिम भागकर आये थे।
संयुक्त राष्ट्र ने इसे नरसंहार करार दिया था। किफायत की तरह सैकड़ों बच्चे बांग्लादेशी सरजमीं पर पैदा हुए हैं। म्यांमार रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस लेने को तैयार है। रखाइन प्रान्त में अभी भी हिंसा और संजातीय तनाव बाकी है। यूएन ने कहा कि यह हालात उनके वापस लौटने के लायक नहीं हैं।
शिक्षा की भूख
कुछ देशों में सरकार ने शरणार्थियों के बच्चों को स्थानिय स्कूलों मों शिक्षा प्रप्त करने की अनुमति दे रखी है। साथ ही शिविरों में रहने वालों को मान्यता प्राप्त योग्यता देने की अनुमति दे रखी है। बांग्लादेश ने अधिकतर रोहिंग्या मुस्लिमों को शरणार्थी का दर्जा नहीं दिया है और शिविरों में पैदा हुए और नवजात बच्चों को जन्म प्रमाण पत्र भी मुहैया नहीं किया है। इससे कानूनी स्थित अस्पष्ट है। साथ ही सरकार ने शिविरों में बांग्लादेशी पाठ्यक्रम पढ़ाने से इंकार किया हुआ है।
21 वर्षीय रोहिंग्या छात्र ने कहा कि “अधिकतर छात्र तनावग्रस्त और निराश है। हालाँकि हमने कुछ शिक्षा प्राप्त कर ली यही। लेकिन अब हम कहाँ जाएंगे। विश्व को सोचना चाहिए अगर हम नहीं पढ़ेंगे तो हमारा भविष्य खराब हो जायेगा। हम शिक्षा के लिए भूखे हैं।”
एक स्कूल के प्रिंसिपल ने कहा कि “हमें माफ़ कर दीजिये, हम इस निर्णय से काफी निराश है। सरकार शरणार्थियों को सब कुछ मुहैया कर रही है तो शिक्षा क्यों नहीं।”
एक स्कूल के संस्थापक कमल उद्दीन अहमद बताया कि रोहिंग्या शरणार्थियों के आगमन से स्थानीय इलाक़ों में सब उथल पुथल हो गया। आपको क्या लगता है मुझे कैसा महसूस होना चाहिए। हमें रोहिंग्या शरणार्थियों से कोई लेना-देना नहीं है लेकिन हमें खुद की ज़िन्दगियों की फ़िक्र है।”
बांग्लादेशी रिफ्यूजी रिलीफ एंड रेपर्टरीएशन कमिश्नर अबुल कलाम ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि “रोहिंग्या शरणार्थियों की भागीदारी में बढ़ रही है। कई रोहिंग्या भ्रष्ट जान प्रतिनिधियों से फर्जी बांग्लादेशी दस्तावेज बना रहे हैं। स्थिति को अच्छे से मॉनिटर करने की सलाह दी गयी है ताकि कोई भी रोहिंग्या शरणार्थी शिविरों के बाहर या बांग्लादेश में कही और शिक्षा नहीं ले पाए।”
स्थानीय स्कूल से रोहिंग्या बच्चे के निष्कासन के बाबत उन्होंने कहा कि “वे शिविरों के प्रशिक्षण केंद्रों से शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। उन्हें बांग्लादेशी स्कूल में पढ़ने की इजाजत नहीं है क्योंकि वे बांग्लादेश के नागरिक नहीं है।”
शिविरों में काफी बच्चे खुद से किताबे पढ़ते हैं, बच्चे म्यांमार का पाठ्यक्रम दुकानों से खरीदकर पढ़ते हैं। कैफयत ने बताया कि उनके स्कूल के कुछ छात्र निर्दयी थे। वे बच्चों को चिढ़ाने के लिए बर्मा और रोहिंग्या शब्दों का इस्तेमाल करते थे। लेकिन हम खुश है क्योंकि हमें शिक्षा की जरुरत है।”
15 वर्षीय मोहम्मद यूनुस ने कहा कि “वह ईंटो के भट्टे में काम करता है ताकि अपनी क्लासेज की फीस दे सके, उसके माता-पिता फीस नहीं चुका सकते हैं। बांग्लादेश हमें एक अच्छे समुदाय के तौर पर देखना चाहता है, ऐसे ही यूएन भी चाहता है लेकिन अगर वे हमारे लिए शिक्षा के रास्ते बंद कर देंगे तो हम कैसे बनेगे।”