आज़ाद बलूचिस्तान आंदोलन के कार्यकर्ताओं ने कई देशों में पाकिस्तान के अवैध कब्जे के खिलाफ प्रदर्शन और जागरूकता अभियान का आयोजन किया था। इसमें जर्मनी, ऑस्ट्रिया, अमेरिका और ब्रिटेन शामिल है। कार्यकर्ताओं ने बैनर, पोस्टर और पर्चे बांटे थे।
बिजनेस स्टैण्डर्ड के मुताबिक बलोच प्रदर्शनकारियों ने बलूचिस्तान में अवैध कब्जे के और बलूच नागरिकों पर पाकिस्तानी सेना के अत्याचार के खिलाफ नारे लगाए।
पाकिस्तान के अपराधों में चीन में चीन भी भागीदार
प्रदर्शनकारियों ने बलूचिस्तान में पाकिस्तान के अपराध में चीन की सहभागिता की भी निंदा की और कहा कि ग्वादर और पाकिस्तान के अन्य क्षेत्रों में विकास के नाम पर पाकिस्तान के अपराधों को चीन समर्थन करता है।
प्रदर्शन के दौरान पाकिस्तानी समुदाय के सदस्यों ने तोड़-फोड़ कर शांतिपूर्ण प्रदर्शन में बाधा पंहुचाने की कोशिश की लेकिन बलूच कार्यकर्ताओं और स्थानीय विभाग ने उनके प्रयासों को विफल करने के लिए समय पर कार्रवाई की थी।
बलूच स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास
बालक प्रदर्शन के दौरान बांटे गए पर्चों में लिखा था कि “सम्राट अपने उपनिवेशवाद को बचाने के लिए एक ही नीति को अपनाता है ‘डिवाइड एंड रूल’ यानी फूट डालो, राज करो। ब्रितानी हुकूमत ने भारत और इसके परे इस नीति का सबसे प्रभावी तौर पर इस्तेमाल किया था। बाहरी आक्रमण से बचने के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने साल 1839 में बलूचिस्तान को ढाल बनाया था। बलूचिस्तान पर कब्ज़े के बाद, आज़ादी के लिए बलूच के संघर्ष को कमजोर करने के लिए इसे तीन भागो में बाँट दिया गया था। मौजूदा समय ने बलूचिस्तान ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच बंटा हुआ है।”
इसमें कहा है कि “ब्रिटेन से बलूच की आज़ादी का संघर्ष 11 अगस्त 1947 तक जारी रहा, जब तक बलूचिस्तान ने वापस आज़ादी हासिल नहीं कर ली। धर्म के आधार पर नया राष्ट्र बने पाकिस्तान ने इस्लाम के आधार पर पाकिस्तान के साथ मिलने का प्रस्ताव दिया लेकिन हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स और हाउस ऑफ़ कॉमन के बलूच प्रतिनिधियों ने इससे इंकार कर दिया। फूट डालो और राज करो की नीति को अपनाकर कट्टर मुल्क पाकिस्तान ने बलूचिस्तान को कमजोर करने के लिए अपनी साजिश को अंजाम दिया और 27 मार्च 1948 को बलूचिस्तान के पूर्वी भाग पर कब्ज़ा कर लिया था।”
बलूचिस्तान पर पाकिस्तान के अवैध कब्जे और जबरन आधिपत्य के बाद से ही बलूच राष्ट्र अणि आज़ादी को वापस हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहा है। पाकिस्तान की पंजाब हुकूमत ने बलूच आज़ादी के प्रदर्शन को कुचलने के लिए पांच बार क्रूर सैन्य कार्रवाई की है। बलूच जनता के खिलाफ इनमे से प्रमुख सैन्य आक्रमण साल 1973-77 के बीच हुआ था। इस दौरान करीब 90000 पंजाब इस्लामिक कट्टरपंथियों को भेजा गया था जिनका संघर्ष 60000 बलूच समर्थकों से हुआ था। आंकड़ों के मुताबिक पाकिस्तानी सेना ने 15000-25000 बलूच नागरिकों का क़त्ल किया था और हज़ारों सैनिकों को गंवाया था।
इस वक्त पर कुछ समय के लिए बलूच स्वतंत्रता सेनानियों ने बलूचिस्तान की आज़ादी का मोर्चा संभाला, तब पाकिस्तान ने बलूच स्वतंत्रता संघर्ष को कुचलने के लिए ईरान के शाह से मदद मांगी। पाकिस्तान और ईरान के बंधन से बलूच लिब्रेशन फाॅर्स कमजोर और गायब होने लगी। आज़ादी के लिए बलूच की महत्वकांक्षाये न कभी धुंधली हुई और आज़ादी की आग में इजाफा हो रहा है।
साल 2000 की शुरुआत में बलूच नागरिकों ने आज़ाद बलूचिस्तान की मशाल एक बार फिर जलाई। इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने हज़ारों बलोच नागरिकों का क़त्ल कर दिया, इसमें बच्चे,औरते और बूढ़े भी शामिल थे। हज़ारों बलूच राजनीतिक और मानवधिकार कार्यकर्ताओं का अपहरण और गायब किया गया है।
27 मार्च को बलूचिस्तान में काला दिन के रूप में मनाया गया है। अन्य आज़ाद मुल्कों की तरह बलूच भी किसी उपनिवेशवाद और दमन से आज़ाद होना चाहता हैं। बलूच नागरिकों ने अपने इतिहास में साबित किया है कि वे सहिष्णु लोग है जो मानवता, न्याय और लोकतंत्र के मूल्यों का सम्मान करते हैं। उन्होंने साबित किया है कि वे कभी आज़ादी और समानता के संघर्ष को नहीं रोकेंगे और विजय होने तक संघर्ष जारी रखेंगे।