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    फूलपुर संसदीय क्षेत्र के उम्मीदवार

    फूलपुर को उत्तर प्रदेश की वीआईपी सीट कहा जाता है। इस साल फूलपुर संसदीय क्षेत्र पर उपचुनाव होनें हैं। ऐसे में सभी राजनैतिक पार्टियाँ यहाँ की सीट पर अपना उम्मीदवार चुने जाने की कोशिश कर रही हैं।

    हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य समेत योगी मन्त्रिमण्डल के 4 मंत्रियों को निर्विरोध एमएलसी चुना गया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य 2014 के लोकसभा चुनावों में क्रमशः गोरखपुर और फूलपुर सांसद चुने गए थे। विधानपरिषद का सदस्य बनने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद ने अपनी लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और इसके साथ ही यह स्पष्ट हो गया कि आगामी 6 महीनों के भीतर उत्तर प्रदेश में लोकसभा उपचुनाव होंगे। पूरे देश की नजरें इन उपचुनावों पर टिकी है क्योंकि 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के सिर ऐतिहासिक जीत का सेहरा उत्तर प्रदेश ने ही बाँधा था।

    योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री बनने के बाद उत्तर प्रदेश में कई ऐतिहासिक फैसले लिए हैं। योगी सरकार के फैसलों की देशभर में चर्चा होती रही है पर महज चर्चाएं लोकप्रियता का पैमाना नहीं होती। लोकसभा उपचुनावों में उत्तर प्रदेश की इन दोनों सीटों पर केंद्र की सत्ताधारी मोदी सरकार के साथ-साथ सूबे की योगी सरकार की भी अग्निपरीक्षा होगी। सियासत के मौजूदा हालातों और जातीय वोटों के समीकरणों को देखते भाजपा के लिए गोरखपुर की सीट बचाना आसान दिख रहा है पर फूलपुर संसदीय क्षेत्र की लोकसभा सीट को बचा पाना इतना आसान नहीं लगता। आजादी के बाद भाजपा को पहली बार मोदी लहर के दौर में फूलपुर सांसद की सीट पर जीत हाथ लगी थी।

    कांग्रेस की विरासत थी फूलपुर लोकसभा सीट

    आजादी के बाद इस सीट से देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू चुनाव लड़ा करते थे। उन्होंने 1952, 1957 और 1962 में लोकसभा में फूलपुर सांसद का प्रतिनिधित्व किया था। पंडित नेहरू के निधन के बाद उनकी बहन विजया लक्ष्मी पंडित ने 1964 के उपचुनाव और 1967 के आम चुनावों में फूलपुर का प्रतिनिधित्व किया। आपातकाल के बाद के दौर में इस सीट पर समाजवादी पार्टी का कब्जा हो गया था और यह सीट सूबे में सपा का गढ़ कही जाने लगी। 2009 में हुए लोकसभा चुनावों में बसपा कुर्मी नेता पंडित कपिल मुनि करवरिया ने फूलपुर संसदीय क्षेत्र की सीट जीत ली थी और पिछड़े और दलित वोटों के जनाधार वाली इस सीट पर बसपा का खाता खोल दिया था। कभी कांग्रेस की विरासत मानी जाने वाली फूलपुर लोकसभा सीट पर पिछले कई दशकों से जीत का निर्धारण जातिगत वोटों के समीकरण द्वारा होता आ रहा है।

    3 दशकों तक समाजवादी दलों का का गढ़ रही है फूलपुर

    विजया लक्ष्मी पंडित के बाद फूलपुर सीट से जनेश्वर मिश्र सांसद चुने गए थे। समाजवाद के प्रमुख कुर्मी नेताओं में गिने जाने वाले जनेश्वर मिश्र को “छोटे लोहिया” भी कहा जाता है और उन्होंने यह चुनाव संयुक्त समाजवादी पार्टी के टिकट पर लड़ा था। इसके अलावा समाजवादी पार्टी के जंग बहादुर पटेल (2 बार) और राम पूजन पटेल (3 बार) फूलपुर सांसद चुने जा चुके हैं। सपा के बाहुबली नेता अतीक अहमद ने 2004 के लोकसभा चुनावों में फूलपुर सीट पर जीत दर्ज की थी। बसपा के संस्थापक कांशीराम ने 1996 में फूलपुर से चुनाव लड़ा था पर उन्हें सपा के जंग बहादुर पटेल के हाथों 15,000 से अधिक मतों से शिकस्त खानी पड़ी थी। हालाँकि 2004 के लोकसभा चुनावों में बसपा नेता पंडित कपिल मुनि करवरिया ने यह सीट सपा से छीनकर बसपा का खाता खोला था।

    कुर्मी वोटों की अधिकता

    फूलपुर संसदीय सीट पर कुर्मी वोटों का बड़ा जनाधार है। यहाँ कई सालों से कुर्मी नेताओं का बोलबाला है। फूलपुर संसदीय क्षेत्र में मतदाताओं की कुल संख्या तकरीबन 20 लाख है। इनमें कुर्मी मतदाताओं की संख्या करीब 2.5 लाख है। कुल मतदाताओं की संख्या का 13-14 फीसदी कुर्मी मतदाता है और शायद यही वजह है कि कुर्मी नेताओं ने सर्वाधिक बार इस सीट का प्रतिनिधित्व किया है। भाजपा के लिए फायदे की बात यह है कि उत्तर प्रदेश में कुर्मियों का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टी अपना दल के साथ उसका गठबंधन है। अपना दल की प्रमुख अनुप्रिया पटेल मोदी मन्त्रिमण्डल में शामिल भी है। मुमकिन है भाजपा इस गठबंधन का सहारा लेकर फूलपुर सीट के कुर्मी नेता वोटरों को रिझाने का प्रयास करे।

    यह है फूलपुर के जातीय वोटों का समीकरण

    फूलपुर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत इलाहाबाद के फाफामऊ, सोरांव, फूलपुर, इलाहाबाद पश्चिमी और इलाहाबाद उत्तरी विधानसभा सीटें आती हैं। इन पाँचों विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर मतदाताओं की कुल संख्या तकरीबन 20 लाख है। इनमें कुर्मी वोटों की अधिकता है और कुर्मी मतदाताओं की संख्या 2.5 लाख के करीब है। फूलपुर लोकसभा सीट पर यादव, मुस्लिम और कायस्थ मतदाताओं की संख्या भी 2 लाख के आसपास ही है। फूलपुर सीट पर ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या करीब 1.5 लाख है और अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या भी 1 लाख के करीब है। 2014 के लोकसभा चुनावों में केशव प्रसाद मौर्य को भाजपा के कोर वोटबैंक के साथ-साथ पिछड़ी जाति के वोटरों का साथ भी मिला। अपना दल से गठबंधन का फायदा भी उन्हें हुआ था और सीट के कुर्मी वोटों का ध्रुवीकरण भाजपा के पक्ष में हुआ था।

    अपनी पत्नी के लिए टिकट मांग रहे हैं योगी मन्त्रिमण्डल के 2 मंत्री

    भाजपा के लिए फूलपुर सीट पर उम्मीदवार तय करना इतना आसान नहीं है। योगी मन्त्रिमण्डल के दो मंत्रियों ने अपनी पत्नियों के लिए फूलपुर लोकसभा सीट से टिकट माँगा है। उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने अपनी पत्नी के लिए टिकट माँगते हुए यह कहा है कि वह फूलपुर से सांसद थे। क्षेत्र में उनकी अच्छी पकड़ है इसलिए अब वह अपनी पत्नी को यहाँ चुनावी मैदान में उतारना चाहते हैं। वहीं इलाहाबाद दक्षिणी विधानसभा सीट से विधायक और योगी सरकार में मंत्री नंदगोपाल गुप्ता “नंदी” ने अपनी पत्नी के लिए फूलपुर से टिकट माँगा है। नंदगोपाल गुप्ता “नंदी” की पत्नी अभिलाषा गुप्ता “नंदी” राजनीति में सक्रिय हैं और वर्तमान में इलाहाबाद शहर की मेयर है। भाजपा इस सीट पर ऐसे उम्मीदवार को उतारना चाहती है जो सभी जातीय समीकरणों में फिट बैठता हो और जिसकी जीत सुनिश्चित हो।

    फूलपुर संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवार बन सकती हैं मायावती

    बसपा सुप्रीमो मायावती आजकल सूबे में बसपा का खोया जनाधार तलाशने में जुटी हुई हैं। 18 सितम्बर को बसपा सुप्रीमो मायावती ने बसपा के गढ़ कहे जाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ में शक्ति प्रदर्शन के लिए विशाल रैली का आयोजन किया है। माना जा रहा है कि वह इस रैली में भारी-भरकम भीड़ जुटाकर विरोधियों को यह दिखाना चाहती है कि बसपा का जनाधार अभी खिसका नहीं है। रैली को सफल बनाने में बसपा कार्यकर्ता जुटे हुए हैं और अनुमानतः 5 लाख लोगों के इसमें शामिल होने की बात कही जा रही है। माना जा रही मायावती इस रैली के माध्यम से विपक्षी पार्टियों को भी बसपा की ताकत का सन्देश देंगी और मंच से लोकसभा उपचुनावों में अपनी उम्मीदवारी का ऐलान कर सकती हैं। मायावती के राज्यसभा इस्तीफे को शुरुआत से ही लोकसभा उपचुनावों से जोड़कर देखा जा रहा था।

    फूलपुर संसदीय क्षेत्र के उम्मीदवार
    मायावती और केशव प्रसाद मौर्य

    फूलपुर की लोकसभा सीट पर दलित, अल्पसंख्यक और पिछड़े तबके का बड़ा जनाधार है और वर्तमान हालातों में बसपा सुप्रीमो मायावती एक मजबूत दावेदार बन सकती हैं। यह सीट बसपा के लिए काफी मायने रखती है और यहाँ से बसपा संस्थापक कांशीराम ने 1996 में चुनाव भी लड़ा था। हालाँकि उन्हें सपा के जंग बहादुर पटेल हाथों 16 हजार से अधिक मतों से शिकस्त खानी पड़ी थी। राज्यसभा सदस्यता से इस्तीफा देने के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती सूबे में संगठन मजबूत करने में जुटी हुई थी और ऐसे में फूलपुर के संभावित उपचुनाव बसपा के लिए संजीवनी का काम कर सकते हैं। वर्तमान परिदृश्य और जातीय वोटों के गणित के हिसाब से मायावती फूलपुर लोकसभा सीट से भाजपा के खिलाफ सबसे मजबूत उम्मीदवार हैं और उनकी उम्मीदवारी की दशा में विपक्ष के लिए जीत के हालात बन सकते हैं।

    एकतरफा होंगे गोरखपुर के लोकसभा उपचुनाव

    फूलपुर संसदीय क्षेत्र के साथ-साथ पिछले 2 दशकों से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संसदीय क्षेत्र रहे गोरखपुर में भी लोकसभा उपचुनाव होंगे। इस सीट पर काफी समय से भाजपा का कब्जा है और इसे पूर्वांचल में भाजपा का गढ़ माना जाता है। इस सीट पर सवर्ण मतदाताओं का बड़ा जनाधार है और ऐसे में यहाँ के उपचुनावों के एकतरफा रहने की उम्मीद है। दशकों से भाजपा इस सीट पर बड़ी जीत हासिल करती आई है और विपक्षी दलों के पास इस वक्त ऐसा कोई चेहरा नहीं है जो भाजपा उम्मीदवार को टक्कर दे सके। यह बात तो तय है कि इस सीट पर भाजपा के उम्मीदवार चयन करने में योगी आदित्यनाथ का प्रत्यक्ष हस्तक्षेप होगा और इसका असर चुनाव परिणाम पर भी देखने को मिलेगा।

    सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 1998 में गोरखपुर संसदीय सीट से लोकसभा सांसद बने थे। वह तब से 5 बार गोरखपुर सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके प्रतिद्वंदी कभी उनके आधे मतों तक नहीं पहुँच सके हैं। उन्होंने बतौर सांसद अपने कार्यकाल के दौरान इस क्षेत्र के विकास के लिए बहुत से कार्य किए हैं। वह देश में हिंदुत्व राजनीति के सबसे बड़े चेहरों में से एक हैं। गोरखपुर और पूर्वांचल के कई जिलों में उनकी संस्था सामजिक कल्याण के कई कार्यक्रम चलाती है। ऐसे में दशकों से भगवा रंग में रंगे गोरखपुर लोकसभा सीट पर किसी अन्य रंग के चढ़ने की अपेक्षा करना सरासर बेमानी होगी।

    भाजपा के लिए आसान नहीं होंगे उपचुनाव

    2019 के लोकसभा चुनावों के पहले इन चुनावों को रिहर्सल के तौर पर देखा जा रहा है। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने के बाद हालात बदले हैं और कहा जा रहा है कि भाजपा को लेकर लोगों में अब पहले जैसा उत्साह नहीं रहा। गोरखपुर हादसे के बाद निश्चित तौर योगी सरकार की लोकप्रियता में गिरावट आई है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव कई बार कह चुके हैं कि भाजपा को रोकने के लिए वह बसपा के साथ गठबंधन करने को तैयार हैं। उत्तर प्रदेश में पहले से ही कांग्रेस और सपा का गठबंधन है। ऐसे में अगर सूबे की यह तीनों विपक्षी पार्टियां भाजपा के खिलाफ सम्मिलित उम्मीदवार उतार दें तो भाजपा के लिए उपचुनावों में अपनी दोनों सीटें बचाना आसान नहीं होगा।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।