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    पूर्ति (Supply) एवं माँग (Demand) अर्थशास्त्र में दो महत्वपूर्ण घटक होते हैं। हमारी अर्थव्यवस्था में कुछ वस्तुएं महँगी होती हैं एवं कुछ सस्ती होती हैं। कुछ बहुत कम मात्र में होती हैं एवं कुछ बहुत बड़ी मात्र में उपलब्ध होती हैं। हम जब खरीदते हैं तो कुछ चीज़ें सस्ती होती हैं तो कुछ महँगी। इनके भाव बदलते रहते हैं। ये मुख्यतः इनकी मांग एवं आपूर्ति के कारण होता है।

    पूर्ति क्या होती है ? (what is supply)

    जब किसी वस्तु की बाज़ार में मांग की जाती है तो जिस व्यक्ति के पास यह वस्तु होती है वह निश्चित लाभ कमाने के लिए उस वस्तु को बाज़ार में बेचता है। ऐसा करने पर उसे उसके बदले लागत एवं लाभ मिलता है। अतः इसी तरह खरीददारों को निश्चित मूल्य पर सामान बेचकर उनकी ज़रूरतों को पूरा करना ही पूर्ति कहलाती है।

    परिभाषा :

    प्रो. बेन्हम के अनुसार ”पूर्ति का आशय वस्तु की उस निश्चित मात्रा से है जिसे प्रति इकाई के मूल्य पर किसी निश्चित समय में बेचने के लिए विक्रेता द्वारा प्रस्ततु किया जाता है। “

    पूर्ति तालिका :

    जब कोई विक्रेता बाज़ार में विभिन्न चीज़ें बेचने के लिए उपलब्ध कराता है तो वह विभिन्न विभिन्न दामों पर उस वस्तु की विभिन्न मात्र बेचने के लिए तैयार होता है। अतः पूर्ति तालिका उन सभी वस्तु की मात्र की सूचि होती है जिन्हें विक्रेता विभिन्न मूल्यों पर बेचने के लिए तैयार होता है।

    पूर्ती तालिका दो तरह की होती है :

    1. व्यक्तिगत पूर्ति तालिका :

    ऐसी तालिका जिसमे केवल एक विक्रेता द्वारा विभिन्न मूल्यों पर बेचे जाने के लिए वस्तुओं की सूचि हो उस तालिका को व्यक्तिगत पूर्ति तालिका कहते हैं। इसमें केवल एक विक्रेता की अनुमानित कीमतों के बारे में जानकारी होती है।

    ऊपर दी गयी तालिका में जैसा की आप देख सकते हैं की इसके दो खंड हैं। एक तरफ जहां संतरे के विभिन्न अनुमानित मूल्य दे रखे हैं वहीँ दूसरी तरफ उन मूल्य पर एक व्यक्ति जितने संतरे बेचने के लिए तैयार है उनकी संख्या दे रखी है। जैसा की हमने देखा की जैसे जैसे संतरे का मूल्य बढ़ता है वैसे ही विक्रेता इकाइयों की मात्र बढा देता है।

    2. बाज़ार पूर्ति तालिका :

    ऊपर हमने देखा की व्यक्तिगत तालिका में केवल एक व्यक्ति द्वारा बेचीं जाने वाली वस्तुओं की सूचि थी लेकिन बाज़ार पूर्ति तालिका में बाज़ार के सभी विक्रेता विभिन्न मूल्यों पर जो यह वस्तु बेच रहे हैं उनकी मात्राओं का योग होगा एवं उसके बाद जो संख्या आएगी वह बाज़ार पूर्ति होगी एवं विभिन्न संख्याओं की सूचि से ही बाज़ार पूर्ति तालिका बनती है।

    ऊपर दी गयी तालिका में जैसा की आप देख सकते हैं यहाँ हमने माना है की बाज़ार में केवल 3 ही विक्रेता हैं। विभिन्न मूल्यों पर ये जो वस्तुओं की मात्र बेचने को तैयार हैं हमने उनका योग किया है जिससे की हमारे पास बाज़ार में वस्तु की बिक्री के लिए कुल उपलब्धता आ गयी। इस तरह यह तालिका बाज़ार पूर्ति को दर्शाती है।

    पूर्ति वक्र (Supply Curve in hindi)

    जब पूर्ति की तालिकाओं को चित्रित किया जाता है या विभिन्न मूल्यों पर बेचने के लिए उपलब्ध वस्तु की विभिन्न मात्रा को रेखा चित्र के रूप में दर्शाया जाता है तो इससे हमें एक वक्र मिलता है। इसे पूर्ति वक्र कहा जाता है।

    ऊपर जैसा की आप देख सकते हैं तालिका में दी गयी जानकारी को चित्रित करने पर हमें पांच बिंदु मिलते हैं एवं जब इन्हें मिलाया जाता है तो हमारे पास पूर्ति वक्र आता है। इस वक्र को चित्र में S लिखा जाता है।

    पूर्ति वक्र ऊपर की तरफ क्यों उठता है ?

    हमने ऊपर चित्र में देखा की कीमत बढ़ने के साथ साथ मात्रा भी बढ़ रही है। इसका निम्न कारण है :

    पूर्ति का नियम :

    पूर्ति के नियम में पूर्ति एवं कीमत का धनात्मक सम्बन्ध होता है। इसका इसका मतलब यदि वस्तु का मूल्य बढ़ता हिया तो उसके साथ उस वस्तु की बेचने के लिए उपलब्ध मात्रा भी बढती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंक हर विक्रेता कम चीज़ें बेचकर ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाने का लक्ष्य रखता है एवं मूल्य बढ़ने पर उसे ज्यादा लाभ मिलता है। अतः बढ़ते मूल्य के साथ मात्रा भी बढती है।

    लेकिन यदि वस्तु की कीमतों में कमी आ जाए तो विक्रेता कम वस्तु की मात्रा बेचना चाहेगा क्योंकि उस समय इसे कम लाभ हो रहा है।

    ऊपर दिए गए चित्रों से आप पूर्ति का नियम अच्छी तरह समझ सकते हैं।

    पूर्ति वक्र में परिवर्तन (Change in Supply Curve)

    मुख्यतः पूर्ति वक्र में 4 तरह के परिवर्तन होते हैं :

    1. पूर्ति का संकुचन
    2. पूर्ति का विस्तार
    3. पूर्ति में वृद्धि
    4. पूर्ति में कमी

    इन चार परिवर्तनों में से पहले दो परिवर्तन वस्तु के स्वयं के मूल्य में परिवर्तन की वजह से आते हैं। बाकी दो परिवर्तन अन्य घटकों की वजह से होते हैं। अन्य सभी घटकों के बारे में जानकारी नीचे दी गयी है।

    1. पूर्ति का संकुचन :

    यह उस स्थिति में होता है जब अन्य सभी घटक अपरिवर्तित हों लेकिन मुख्य वस्तु की कीमत कम हो जाए एवं इससे उस कीमत पर बेचने के लिए उपलब्ध मात्र में कमी आ जाती है। इसे संकुचन कहते हैं। इसमें वक्र अपनी जगह पर ही रहता है लेकिन वर्तमान पूर्ति उसी वक्र पर एक बिंदु से दूसरे बिंदु पर चली जाती है।

    ऊपर चित्र में आप देख सकते हैं पूर्ति का संकुचन हुआ एवं अब वर्तमान में पूर्ती A बिंदु से हटकर B बिंदु पर आ गयी है।

    2. पूर्ति का विस्तार :

    उस स्थिति को विस्तार कहते हैं जब वस्तु की पूर्ति के अन्य घटकों में कोई बदलाव ना आये लेकिन उस वस्तु के स्वयं के मूल्य में बढ़ोतरी होने से उसकी बिक्री की मात्र की उपलब्धता भी बढ़ जाती है। इसमें वक्र अपनी जगह नहीं बदलता लेकिन पूर्ति के वर्तमान जगह बदल जाती है एवं वह दायीं ओर दूसरे बिंदु पर चली जाती है।

    ऊपर चित्र में जैसा आप देख सकते हिं मूल्य में बढ़ोतरी हुई जिससे पूर्ति में बढ़ोतरी हुई एवं पूर्ति दायीं और चली गयी है।

    3. पूर्ति में वृद्धि :

    जब वस्तु का स्वयं का मूल्य अपरिवर्तित रहे लेकिन किन्हीं अन्य घटकों में परिवर्तन आने की वजह से पूर्ति की मात्र बदल जाए उसे पूर्ति में वृद्धि कहते हैं। इसमें पूर्ति वक्र की जगह बदल जाती है एवं वह दायीं और खिसक जाता है।

    ऊपर चित्र में जैसा आप देख सकते हैं यहाँ वस्तु के मूल्य में कोई बदलाव नहीं हुआ है लेकिन अन्य घटकों में हुए कुछ बदलावों की वजह से पूर्ति में बढ़ोतरी हुई है। इससे वक्र दायीं और चला गया है।

    4. पूर्ति में कमी:

    जब वस्तु का स्वयं का मूल्य अपरिवर्तित रहे लेकिन उसके कुछ अन्य घटकों में बदलाव आने की वजह से इसकी पूर्ति के लिए उपलब्ध मात्र में कमी आ जाए ऐसी स्थिति को पूर्ति में कमी आना कहते हैं। इसकी वजह से पूर्ति वक्र बायीं और खिसक जाता है।

     चित्र में जैसा की आप देख सकते हैं यहाँ वस्तु के मूल्य में कोई परिवर्तन नहीं आया है लेकिन इस वस्तु के किन्हीं अन्यः घटकों में परिवर्तन आने की वजह से इसकी पूर्ति में कमी आगयी है जिससे वक्र बायीं और खिसक गया है।

    पूर्ति को प्रभावित करने वाले घटक (Factors affecting supply)

    1. वस्तु का मूल्य :  यह घटक सबसे महत्वपूर्ण होता है। वस्तु को मूल्य बढ़ने पर इसकी बेचने की मात्रा भी बढती है एवं कीमत कम होने के साथ इसकी मात्रा में भी गिरावट आती है। इसमें परिवर्तन आने से पूर्ति का संकुचन या विस्तार होता है।

    अन्य घटक :

    ये ऐसे घटक हैं जो अप्रत्यक्ष रूप से पूर्ति को प्रभावित करते हैं एवं इनकी वजह से पूर्ति में वृद्धि या कमी आ जाती है।

    2. सम्बंधित वस्तुओं की कीमत :  एक निश्चित वस्तु की दो तरह की सम्बंधित वस्तुएं होती है। वैकल्पिक वस्तु एवं पूरक वस्तु। वैकल्पिक वस्तु वह होती है जो एक मुख्य वस्तु के स्थान पर प्रयोग की जा सकती है। जैसे कोका कोला एवं पेप्सी एक दुसरे के स्थान पर प्रयोग किये जा सकते हैं। यदि वैकल्पिक वस्तुओं के दाम बढ़ते हैं तो विक्रेता वैकल्पिक  वस्तुओं वस्तु का उत्पादन बढ़ा देता है ताकि वह ज्यादा धन कम सके। अतः सम्बंधित वस्तु की कीमत से मुख्या वस्तु  प्रकार प्रभावित होती है।

    3. आधुनिक तकनीक : यदि एक उत्पादक के पास उत्पादन की आधुनिक तकनीक है तो वह कम समय में एवं कम लागत से ज्यादा उत्पादन कर सकता है। अतः ज्यादा लाभ कम सकता है। यह भी वस्तु के उत्पादन एवं बाज़ार में उपलब्धता को प्रभावित करता है।

    4. कच्चे माल की कीमत : जिस  वस्तु का उत्पादन होना है यदि उसमें प्रयोग किये जाने वाले कच्चे माल की कीमत बढती है तो इससे विक्रेता को कम लाभ मिलेगा। इससे विक्रेता इसका उत्पादन कम कर देगा एवं ज्यादा लाभ देने वाली वस्तुओं के उत्पादन में यह लागत लगाएगा।

    पूर्ति के नियम के अपवाद :

    कुछ ऐसी स्थिति होती हैं जब वस्तुओं पर यह नियम लागू नहीं होता है या कुछ वस्तु पूर्ति के नियम का पालन नहीं करती हैं आइये जानते हैं वे कौनसी वस्तुएं हैं :

    1. कृषि की वस्तुएं :  कृषि की वस्तुओं की उपलब्धता में पूर्ति के नियम का पालन नहीं होता है। इनका मूल्य यदि बढ़ भी जाए एवं यदि मौसम की वजह से फसल खराब हो जाए तो विक्रेता चाहकर भी इनकी मात्र नहीं बढ़ा सकता है।

    2. भविष्य की संभावना : यदि विक्रेता को लग रहा है की भविष्य में इस वस्तु का मूल्य कम हो जाएगा तो वह अभी इसकी मात्र को बढ़ा देगा लेकिन यदि इस वस्तु का मूल्य का बढना संभावित है तो वह अभी कम मात्र बेचेगा।

    3. दुर्लभ वस्तुएं : कुछ ऐसी वस्तुएं होती हैं जो प्रकृति में बहुत मुश्किल से पायी जाती हैं एवं बहुत कम मात्र में होती है इसलिए विक्रेता चाहकर भी इनकी मात्र को बढ़ा नहीं सकता है।

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    By विकास सिंह

    विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

    One thought on “पूर्ति : परिभाषा, नियम, विशेषता, वक्र, अपवाद एवं उदाहरण”
    1. Sir aap kurti ke bare me bahut mahavpurn jankari diye hai jis ko padh kar ham logo ko suit aur kurti ka chunav krna aasan ho gya hai mai abhi apne pasand ke salwar aur suit ke bare me artical likhi hu jis ka title suit kitne prakar ke hote hain aap check kar ke batayiye ki mai sahi likhi hu ki nahi

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