अब भारतीय फिल्मो को वैश्विक स्तर पर बहुत मान और सम्मान मिल रहा है। भारतीय फिल्में अब अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल का हिस्सा बन रही है और इसलिए मशहूर निर्देशक अश्विनी अय्यर तिवारी का कहना है कि यह हमारी कहानियों के साथ ‘अप्राप्य रूप से भारतीय’ होने का सही समय है।
भारतीय फिल्म ‘पीरियड.एन्ड ऑफ़ सेंटेंस‘ के इस साल ऑस्कर जीतने के बाद, विदेश में भारतीय फिल्मों की स्वीकृति कैसे बढ़ गयी है?
IANS को उन्होंने बताया-“मुझे लगता है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हम ऐसे मुकाम पर पहुँच गए हैं जहाँ लोग हमें देख रहे हैं, हमें वास्तव में जाकर लोगों से हमें देखने के लिए नहीं पूछना पड़ेगा। हम अपनी फिल्मों और विभिन्न सांस्कृतिक उपक्रमों के माध्यम से अपनी दृश्यता बनाने में कामयाब रहे हैं। हमें अपनी कहानियों के साथ सिर्फ अप्राप्य रूप से भारतीय होने की जरुरत है।”
https://www.instagram.com/p/Bu7qzP9nnja/?utm_source=ig_web_copy_link
हालांकि, वह ऐसा मानती हैं कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हर कहानी दो तरह के दर्शक ढूंढती है क्योंकि भारतीय कंटेंट के लिए दो तरह के अंतर्राष्ट्रीय दर्शक हैं- कई पीढ़ियों से विदेश में बसे भारतीय और गैर-भारतीय। उन्होंने अपनी फिल्म ‘नील बट्टे सन्नाटा’ का उदाहरण भी दिया जिसे सिल्क रोड अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में अवार्ड मिला था।
उनके मुताबिक, “सामाजिक पृष्ठभूमि को रखते हुए, ये एक माँ और उसकी बेटी की कहानी थी। सम्बन्ध सार्वभौमिक था। इसी तरह, फिल्म ‘दंगल’ ने अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अच्छा प्रदर्शन किया क्योंकि वह एक बाप-बेटी की कहानी थी और कैसे बेटियां अपने बाप के सपने को जीती हैं।”
वह FICCI फ्रेम्स के 20वे संस्करण के दौरान मीडिया से बातचीत कर रही थी।
क्या अंतर्राष्ट्रीय वितरकों के बीच भारतीय फिल्मो को रिलीज़ करने के लिए रूचि व्यापक रूप से बढ़ी है?
उन्होंने कहा-“मैं कहूँगी कि जब बात फिल्म रिलीज़ करने पर आती है, चाहे वो भारत हो या विदेश, स्क्रीन काउंट इसी पर निर्भर है कि वितरकों को फिल्म पर कितना भरोसा है। जब फिल्म रिलीज़ होती है, वह पैसा लगा रहे होते हैं इसलिए उनका गणनात्मक होना तर्कसंगत है और तभी सिस्टम स्तरित होता है।”
https://www.instagram.com/p/BuYxaAMHRT-/?utm_source=ig_web_copy_link
“जब मैं फिल्म बना रही होती हूँ, मैं एक यकीन के साथ ऐसा कर रही होती हूँ। मगर जितना विश्वास निर्माता और वितरक फाइनल प्रोडक्ट पर दिखाएगा, वो मेरे हाथ में नहीं है।”
क्या आप एक कथावाचक होने के नाते, अपने वर्णन को अंतरराष्ट्रीय दर्शक के हिसाब से ही फ्रेम करती हैं?
इस पर अश्विनी ने कहा-“मुझे लगता है कि हर कहानी का अपना प्रवाह होता है और हम उसे किसी एक प्रकार के दर्शक की उम्मीदों से मिलाने के लिए रोक नहीं सकते। हर कहानी को अलग तरीके से आकार दिया जाता है।”
उन्होंने आगे कहा-“भले ही ‘बरेली की बर्फी’ और ‘नील बट्टे सन्नाटा’ छोटे शहर की कहानियां थी, वो अलग थी। मैं जानती हूँ कि मेरी आगामी फिल्म ‘पंगा‘ में वो सारे तत्व हैं जो व्यापक रूप से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दर्शक से जुड़ पाएँगे।”
“हालांकि, मैं ये किसी उद्देश्य से नहीं कर रही हूँ। मैं हमेशा कहानी के प्रवाह से साथ जाती हूँ। ज़ाहिर है, मैं अपनी ‘बरेली की बर्फी’ के लिए अंतर्राष्ट्रीय दर्शकों से इसी प्रकार की प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं कर सकती। इसलिए हर फिल्म अंतर्राष्ट्रीय दर्शकों की सेवा नहीं कर सकती।”