Sat. Dec 14th, 2024
    नोटबंदी

    8 नवंबर की रात को मैं और मेरे पति कहीं जाने के लिए सामान बाँध रहे थे। हमें अगली सुबह चार बजे निकलना था और मैंने सफर के लिए पैसों का इंतजाम करना शुरू कर दिया था। तभी मेरे पति के भाई ने फोन करके टीवी चालू करने को कहा और टीवी में खबर देखने के बाद मेरे मुँह से निकला, “क्या हमारे पास 100 रूपए के पर्याप्त नोट हैं?”

    हम चुपचाप टीवी के सामने बैठे रहे और माननीय प्रधानमंत्री जी द्वारा बोले गए शब्दों का मतलब समझने के कोशिश करते रहे।

    उस भाषण से मैंने यह समझा कि यह कालेधन के खिलाफ एक लड़ाई है और हमें इसमें साहस के साथ वीर सैनिकों की भूमिका निभानी है। लेकिन हम तैयार थे, क्योंकि इस लड़ाई में सरकार हमारे साथ थी, और ये लड़ाई एक साफ़ भारत के लिए थी।

    रातभर में ही आम नागरिकों ने इस चुनौती का सामना करने की तैयारी कर ली थी क्योंकि यह लड़ाई हमारी थी और हमारे प्रधानमन्त्री इसमें हमारे साथ थे।

    हमें लगा कि इस लड़ाई के बाद कम से कम करीबन 5 लाख करोड़ रुपयों का कालाधन देश से निकल जाएगा और सरकार को इस रूपए का फायदा होगा। इसका इस्तेमाल सरकार देश के विकास के लिए करेगी।

    कोई बात नहीं। आम आदमी ने कहा। यदि मेरे लाइन में खड़े रहने से किसी भ्रष्ट व्यक्ति का कालाधन देश के काम आता है, तो हम लम्बी लाइन में खड़े रहने के लिए तैयार हैं।

    लेकिन आज, कई आम लोगों की तरह मुझे लगता है कि मेरे साथ धोका हुआ है, क्योंकि नया गुलाबी नोट अब अगला काला बनने जा रहा है।

    • मुझे लगता है कि देश में मौजूद कई भ्रष्ट तत्वों की वजह से सारा काला धन वापस आ चुका है।
    • यह लगता है कि सरकार के पास विकास के लिए बिलकुल भी धन नहीं बचा है और इससे आम जनता को कोई फायदा नहीं हुआ है।
    • या तो सरकार द्वारा कालेधन का आंकलन करने में गलती हुई है या फिर सब कुछ बड़ी चालाकी से साफ़ कर दिया गया है।
    • मेरे हिसाब से यदि यही होना था, तो नोटबंदी के लिए कोई आसान तरीका क्यों नहीं निकला गया, जिससे आम जनता को इतनी तकलीफों का सामना नहीं करना पड़ता।
    • कई लोगों ने अपनी नौकरियां गँवा दी और लाखों लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ा। क्यों?
    • इसमें सबसे बड़ी जिम्मेदार राजनैतिक पार्टियां ही थी जिन्होंने दान आदि देकर अपने कालेधन को साफ़ कर लिया। प्रधानमंत्री को यकीनन इन तरीकों का पता था तो फिर उन्होंने नोटबंदी से पहले इसपर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की?
    • यह प्रतीत होता है कि बैंकों के पीछे भी दरवाजे हैं, जिनसे बड़े लोग अपने काले पैसों को आसानी से सफ़ेद कर लेते हैं।

     

    इस लेख में लिखे गए विचार भुवी जैन के हैं, जो क्वोरा वेबसाइट से लिए गए हैं।

    By पंकज सिंह चौहान

    पंकज दा इंडियन वायर के मुख्य संपादक हैं। वे राजनीति, व्यापार समेत कई क्षेत्रों के बारे में लिखते हैं।