8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 रूपए के नोट पर प्रतिबन्ध लगाकर पुरे देश को झटका दिया था। आज नोटबंदी को पुरे एक साल हो चुके हैं।
जानते हैं, इस एक साल में देश को नोटबंदी से क्या-क्या फायदे और नुकसान हुए?
नोटबंदी के फायदे :
आतंकवाद पर लगाम
दरअसल भारत में आतंकवाद फैलने का एक मुख्य कारण था, जाली नोटों का भण्डार। जाली नोटों की मदद से आतंकवादी देश में घुसकर हथियार आदि खरीदते थे। पिछले काफी समय से जाली नोटों पर काबू पाने के लिए सरकार और पुलिस द्वारा कई प्रयास किये गए, लेकिन इनमे सफलता नहीं पायी जा सकी।
नोटबंदी के बाद आये आंकड़ों के अनुसार पिछले एक साल में पहले के मुकाबले दो से ढाई गुना ज्यादा जाली नोट बरामद किये गए हैं। उदाहरण के तौर पर साल 2015-16 में करीबन 24 लाख 500 रूपए के नोट और 58 लाख 1000 रूपए के नोट बरामद किये गए थे। इसके मुकाबले, साल नोटबंदी के बाद करीबन 55 लाख 500 रूपए के नोट और 1.24 करोड़ 1000 रूपए के जाली नोट बरामद किये गए हैं।
इन आंकड़ों से यह कहना सही होगा, कि नोटबंदी की वजह से जाली नोटों के व्यापार की कमर टूट चुकी है।
कैश पर निर्भरता
भारत कैश पर निर्भर देश माना जाता है। एक शोध के मुताबिक नोटबंदी से पहले ग्राहक सम्बन्धी 98 फीसदी लेन-देन कैश से होता था। नोटबंदी के बाद इसमें कई गुना की कटौती हुई है। मतलब, नोटबंदी की वजह से डिजिटल लेन-देन की संख्या काफी हद तक बढ़ी है।
इकनोमिक टाइम्स द्वारा किये गए एक शोध के मुताबिक 8 नवंबर 2016 से पहले देश में 17.77 लाख करोड़ रूपए के कैश नोट थे। वही 31 सितम्बर 2017 को घटकर 15.89 लाख करोड़ रह गए हैं। इससे यह पता चलता है कि करीबन 10 से 12 फीसदी नोटों की संख्या घटाने के बाद भी लोग इससे सहमत हैं।
डिजिटल पेमेंट में बढ़ौतरी
नोटबंदी के बाद डिजिटल पेमेंट और कार्ड आदि से भुगतान में 50 से 100 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। उदाहरण के तौर पर अक्टूबर 2016 में करीबन 51,883 करोड़ रूपए का देशभर में भुगतान कार्ड से हुआ था। वहीँ यदि इसे अगस्त 2017 से तुलना करें, तो यह बढ़कर 71,712 हो गया है।
वहीं दूसरी ओर, यदि मोबाइल पेमेंट के बारे में बात करें, तो अक्टूबर 2016 में 3385 करोड़ रुपयों का भुगतान मोबाइल के द्वारा हुआ था। वहीँ यदि अगस्त 2017 की बात करें, तो यह बढ़कर 7262 करोड़ रूपए हो गया है। यानी मोबाइल पेमेंट में 200 फीसदी से ज्यादा की वृद्धि हुई है।
नोटबंदी के नुकसान
जहाँ नोटबंदी से देश को अनेक फायदे हुए हैं, वहीँ इस एक साल में इसके काफी बुरे परिणाम भी सामने आये हैं।
गिरती अर्थव्यवस्था
हाल ही में देश की अर्थव्यवस्था को लेकर काफी राजनीति में हलचल मची थी। हाल ही में अर्थव्यवस्था के धीमे होने पर सभी विपक्षी दलों ने मोदी सरकार को इसका जिम्मेदार बता दिया था।
हालाँकि बाद में विश्व बैंक ने इस मुद्दे पर कहा था कि नोटबंदी देश की अर्थव्यवस्था को लम्बे समय में फायदा पहुंचाएगी। इससे सरकार को काफी हुड तक राहत मिली थी।
यदि आंकड़ों की और देखें तो, वित्तय साल 2016-17 के पहले दो तिमाही में देश की अर्थव्यवस्था क्रमश 7.9 और 7.5 की दर से बढ़ी थी। नोटबंदी के तुरतं बाद तीसरी तिमाही में यह गिरकर 7 पर पहुँच गयी थी। इसके बाद साल के अंतिम तिमाही यानी जनवरी-मार्च 2017 में अर्थव्यवस्था गिरकर 6.1 हो गयी थी। इसके बाद भी हालाँकि अर्थव्यवस्था निरंतर धीमी हुई और वित्तीय साल 2017-18 की पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था विकास दर सिर्फ 5.7 ही रह गयी थी।
सरकार और अन्य वित्तीय संस्थानों का दावा है कि अर्थव्यवस्था में गिरावट थोड़े समय के लिए है, और यह आने वाले समय में ठीक हो जाएगा।
बेरोजगारी
एक शोध के मुताबिक 2017 के शुरूआती सिर्फ चार महीनों में करीबन 15 लाख लोगों की नौकरियां चली गयी थी। इनमे छोटी कंपनियों आदि में काम करने वाले कर्मचारी हैं, जहाँ मुख्य साधन कैश से लेन-देन था।
नोटबंदी के बाद किसानों पर भी भारी असर पड़ा था। खबरें आयी थी कि किसानों के पास बीज और खाद खरीदने तक के पैसे नहीं थे। इससे पैदावार में काफी समस्या आयी थी। हालाँकि सरकार का मानना है कि इसकी भरपाई करने के लिए सरकार ने देश में कई राज्यों में किसानों की कर्जमाफी कर दी थी।
आम जान-जीवन
भारत में करोड़ों लोग अनपढ़ हैं और जिनके पास बैंक अकाउंट नहीं हैं। इन लोगों के पास दिनचर्या के अनेक कार्यों जैसे सामन खरीदना, फीस देना, सैलरी आदि के लिए सिर्फ एक ही साधन है, वह है कैश। नोटबंदी के बाद ऐसे करोड़ों लोगों पर विपदा आ पड़ी थी।
लोगों के पास खाना खरीदने के पैसे नहीं थे। हालाँकि सरकार ने इन लोगों के बैंक अकाउंट खोलने की कोशिश की थी, लेकिन निकट समय में इसका फायदा होता नहीं दिख रहा है। जिन लोगों के बैंक अकाउंट खोले गए हैं, उन्हें पासबुक देखना नहीं आता है। ऐसे अनेक समस्याएं हैं, जिनपर सरकार ने पहले ध्यान नहीं दिया था।