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    नागरिकता कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान दायर की गई याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सी ए ए के खिलाफ शाहीन बाग में धरने में शामिल होने महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट में एक पुनर्विचार याचिका दायर की थी। उसी के साथ एक और याचिका भी थी जिसमें 2020 में सार्वजनिक आंदोलनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है, उस पर दोबारा सुनवाई की जाने की बात थी। अपील थी कि याचिका और किसान आंदोलन के मामले की एक साथ सुनवाई की जाए। हालांकि इस मांग को कोर्ट ने खारिज कर दिया है।

    साथ ही कोर्ट ने अपने पिछले फैसले से पीछे हटने से इनकार कर दिया है। कोर्ट का कहना है कि एक लंबे समय तक विरोध प्रदर्शन के नाम पर दूसरों को प्रभावित नहीं किया जा सकता और सार्वजनिक स्थानों पर लंबे समय तक विरोध प्रदर्शन नहीं किया जा सकता। विरोध करने के अधिकार का अर्थ यह नहीं है कि आप कभी भी और किसी भी जगह पर अपने मन से विरोध प्रदर्शन करें यह दूसरों के अधिकारों को प्रभावित कर सकता है।

    पूरा मामला यह था कि नागरिकता संशोधन एक्ट के विरोध में शाहीन बाग में कुछ महिलाएं प्रदर्शन कर रही थी। उन महिलाओं ने कोर्ट में पुनर्विचार याचिका के साथ एक और याचिका संलग्न की थी। इसमें महिलाओं की मांग थी कि 2020 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आंदोलनों के संबंध में आदेश पर दोबारा सुनवाई की जाए। सुप्रीम कोर्ट ने उस वक्त कहा था कि सार्वजनिक स्थानों पर एक लंबे समय तक कब्जा करना वो भी सिर्फ विरोध प्रदर्शन के नाम पर, लोगों के अधिकारों का हनन है। ऐसा नहीं किया जा सकता।

    इसी पर आज पुनर्विचार याचिका के मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने फिर से अपनी बात दोहराई है और कहा है कि विरोध प्रदर्शन का अधिकार कहीं भी और कभी भी नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट अपने पुराने फैसले पर अडिग है और इस पुनर्विचार याचिका को खारिज किया जा चुका है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि धरना प्रदर्शन लोकतंत्र का एक हिस्सा है लेकिन उसकी भी अपनी एक सीमा है। इसलिए लोग धरना प्रदर्शन को अपनी मर्जी से जहां मन करे वहां नहीं कर सकते।

    सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायाधीशों अनिरुद्ध बोस, कृष्ण मुरारी और एसके कॉल की बेंच ने इस याचिका को खारिज किया है। कोर्ट का कहना है कि धरना प्रदर्शन के लिए कोई एक निश्चित जगह होनी चाहिए। यदि उस स्थान के अलावा कहीं और प्रदर्शन करते हैं तो पुलिस को अधिकार दिया जाएगा कि वह उन्हें वहां से हटा सकें। किसी भी विरोध या धरना प्रदर्शन का नकारात्मक प्रभाव आम लोगों पर नहीं होना चाहिए। धरने के नाम पर सार्वजनिक स्थानों पर कब्जा नहीं किया जा सकता ऐसा सुप्रीम कोर्ट का कहना है।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पुलिस को कार्यवाही का पूरा अधिकार है। प्रदर्शनकारियों को चाहिए कि एक निश्चित सीमा के अंदर ही वे प्रदर्शन करें। पिछले साल नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में भी जगह-जगह प्रदर्शन हुए थे। जिसके कारण आम लोगों को बहुत ही मुसीबतें झेलनी पड़ी थी, साथ ही दिल्ली में दंगे का माहौल भी कुछ दिन के लिए बन गया था।

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