अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हाल ही में पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री इमरान खान को पत्र लिखकर अफगान में शांति वार्ता करने के लिए मदद मांगी थी। अमेरिका के कमांडर ने सांसदों से कहा कि पाकिस्तान अपनी नीति में कोई परिवर्तन करने की इच्छा नहीं रखता और वह तालिबान को भारत के खिलाफ इस्तेमाल करने की मंसूबे बनाये रखता है।
मंगलवार को लेफ्टिनेंट जनरल केनेथ म्क्केंजि ने सीनेट के सदस्यों से कहा कि अफगानिस्तान की शांति प्रक्रिया के लिए पाकिस्तान एक महत्वपूर्ण भाग है। उन्होंने कहा कि तालिबान और अफगानिस्तान सरकार के मध्य बातचीत करने में पाकिस्तान एक महत्वपूर्ण किरदार निभा सकता है। उन्होंने कहा कि तालिबान को बातचीत के लिए मनाने में पाकिस्तान अपने पूरे सामर्थ्य का इस्तेमाल करते हुए नहीं दिख रहा है।
उन्होंने कहा कि हम तालिबान को भारत के खिलाफ एक बाड़ा बनते देखना जारी रखेंगे न कि अफगानिस्तान में शांति और सुलह करते देखेंगे। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान की तरफ पाकिस्तान के व्यवहार में कोई खासा परिवर्तन नहीं आया है। अलबत्ता पाकिस्तान ने दक्षिण एशिया रणनीति में सकारात्मक रुख दिखाया है। पाकिस्तान ने साथ ही हिंसक चरमपंथी गुटों के खिलाफ कई अभियान चलाये हैं
डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन ने इमरान खान को चिट्ठी लिखकर मदद मांगी थी। पत्र में तालिबान के साथ शांति बैठक का आयोजन करने का आग्रह किया गया है। अमेरिका अब इस जंग की समाप्ति चाहता है। अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक 17 सालों की इस जंग में तीनों देशों का आर्थिक संतुलन गड़बड़ाया हैं और हज़ारों सैनिक इस जंग में कुर्बान हुए हैं।
लेफ्टिनेंट कमांडर ने कहा कि राज्य विभाग का अफगानिस्तान के विवाद को सुलझाने के लिए कूटनीतिक सहायता लेने में अमेरिका को उनकी मदद करी चाहिए। उन्होंने कहा कि दक्षिण एशिया में स्थिरता पाकिस्तान और अमेरिकी हित में हैं, इसलिए हमें पाकिस्तानी सरकार के साथ बातचीत जारी रखनी चाहिए कि कैसे हम अपने साझा हितों को हासिल कर सकते हैं।
हाल ही में डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा था कि पाकिस्तान ने अमेरिका के लिए कुछ भी नहीं किया है, सिर्फ आतंकियों से जंग के नाम पर अमेरिका का खजाना लूटा है, लेकिन अब बस। हालांकि पाकिस्तान ने अमेरिका के इस कदम का स्वागत किया है और जंग के अंत के लिए संभव कार्य करने पर रजामंदी जताई थी।
अफगानिस्तान में अमेरिका ने लगभग 14 हज़ार सैनिक तैनात किये हुए हैं। यह सैनिक अफगानिस्तान के सैनिकों को प्रशिक्षण में सहायता करते हैं साथ ही इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी समूहों के खिलाफ अभियान के बारे में निर्देश भी देते हैं। तालिबान के लगातार हमलों के बाद अमेरिका के सैनिक साल 2001 में इस अभियान का हिस्सा बने थे। तालिबान का सितम्बर 2011 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले में भी हाथ था।