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    रोहिंग्या

    मानव अधिकार समूहों ने बुधवार को दक्षिणीपूर्वी एशियाई नेताओं से रोहिंग्या शरणार्थी संकट के प्रति अपने दृष्टिकोण पर दोबारा विचार करने का आग्रह किया था। बैंकॉक में इस हफ्ते क्षेत्रीय सम्मेलन का आयोजन होना है। म्यांमार के मुताबिक रोहिंग्या मुस्लिम अवैध घुसपैठियें हैं जो भारतीय उपमहाद्वीप से आये हैं।

    रोहिंग्या की दुर्दशा

    साल 2012 में इस क्षेत्र में हिंसा की शुरुआत होने के बाद म्यांमार की सरकार ने पश्चिमी रखाइन राज्य में हज़ारो अल्पसंख्यों को शिविरों तक ही सीमित कर दिया है। साल 2017 में 700000 से अधिक रोहिंग्या शरणार्थियों ने बांग्लादेश की सरहद पार की थी।

    यूएन की एजेंसी के मुताबिक, म्यांमार की सेना ने रोहिंग्या चरमपंथियों के हमले के बाद जवाबी कार्रवाई की थी। चार दिनों की इस महत्वपूर्ण बैठक के दौरान रोहिंग्या मामला प्रमुख होगा। एसोसिएशन ऑफ़ साउथ ईस्ट आसिआन नेशंस गुरूवार से चार दिनों की मुलाकात के लाइट थाईलैंड में मुलाकात करेंगे।

    मानव अधिकार कार्यकर्ताओं ने कहा कि इस समूह को प्रत्यर्पण मामले को हवा नहीं देनी चाहिए बल्कि उनके विस्थापन की मूल वजह पर बातचीत करनी चाहिए। इंडोनेशिया के सांसद एंड आसियान में मानवधिकार बोर्ड की सदस्य ईवा सुंदरी ने कहा कि “म्यांमार के अत्याचार पर आँख मूँद लेना तोहिंग्या के खिलाफ है और प्रत्यर्पण प्रक्रिया की वैधता को समाप्त करे।”

    यूएन केंजांचकर्ताओं ने कहा था कि म्यांमार की सेना ने एक सैन्य अभियान की शुरुआत की थी जिसके कारण लाखों की संख्या में रोहिंग्या मुस्लिम बांग्लादेश की तरफ भागे थे और यह एक नरसंहार था और इस दौरान हत्याएं, सामूहिक बलात्कार और व्यापक स्तर पर आगजनी हुई थी।

    मानवधिकार समूहों के मुताबिक, रखाइन राज्य के हालात शरणार्थियों के मुल्क वापस लौटने के नहीं हैं। मानवधिकार में एशिया के डायरेक्टर ब्रैड एडम्स ने कहा कि “आसियान म्यांमार की सेना के बर्बर अभियान के खिलाफ बगैर एक शब्द बोले और बगैर जाने सिर्फ रोहिंग्या के भविष्य के बाबत चर्चा करने के लिए आतुर दिख रहा है।”

    उन्होंने कहा कि “आसियान के नेताओं के लिए शरणार्थी जनता के प्रत्यर्पण के बाबत चर्चा करना निरर्थक है, उनके सुपुर्द करना जिन्होंने हत्याएं, बलात्कार और उन्हें लूटा।” बौद्ध बहुसंख्यक  देश म्यांमार भी आसियान का सदस्य है। इस समूह में मुस्लिम बहुसंख्यक देश मलेशिया और इंडोनेशिया भी शामिल है जिसमे रोहिंग्या की दुर्दशा के की नजरअंदाज़ी चिंतित विषय है।

    विदेश मंत्री डॉन प्रामुद्विनाई ने समूह को कोई सुझाव देने से इंकार कर दिया था। इस वर्ष थाईलैंड के समक्ष अध्यक्षता है। उन्होंने कहा कि इसके लिए आसियान को दोष नहीं दिया जायेगा। यह किसी की लीपापोती के बारे में नहीं है। आसियान यहां कौन गलत है या कौन सही ये बताने के लिए नहीं है। हमारी चिंता शरणार्थी शिविरों में पनाहगार हज़ारो रोहिंग्या है जिन्हे वापसी के लिए पहले कदम से शुरुआत करनी चाहिए।”

    उन्होंने कहा कि “स्वेच्छा के मुताबिक ही प्रत्यर्पण किया जायेगा और इसमें म्यांमार व बांग्लादेश दोनों की सहमति होगी।” बीते हफ्ते एक नाव में 65 रोहिंग्या सवार होकर दक्षिणी थाई द्वीप पर पंहुचे थे और इससे मानव तस्करी की चिंताएं बढ़ गयी थी। साल 2015 में तस्करी पर क्षेत्रीय कार्रवाई की गयी थी।

    By कविता

    कविता ने राजनीति विज्ञान में स्नातक और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है। वर्तमान में कविता द इंडियन वायर के लिए विदेशी मुद्दों से सम्बंधित लेख लिखती हैं।

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