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    अनिल अंबानी

    हाल ही में रिलायंस कम्युनिकेशन के ऋणदाताओं को ट्रिब्यूनल द्वारा चेतावनी दी गयी है जिसमे उन्हें कहा गया है की यदि वे रिलायंस के कर्ज को चुकाने के लिए टैक्स रिफंड रिलीज़ नहीं करते हैं तो टेलिकॉम ऑपरेटर को संभवतः फिर से दिवालिया घोषित किया जा सकता है।

    कोर्ट ने रखी थी यह शर्त :

    गत माह सुप्रीम कोर्ट ने रिलायंस कम्युनिकेशन के चेयरमैन अनिल अंबानी को एरिकसन का बकाया कर्ज चुकाने के निर्देशों की अवमानना का दोषी ठहराया। इस पर कोर्ट ने यह शर्त रखी की यदि ये कर्ज अदायगी चार सप्ताह में पूरी नहीं की जाती है तो उन्हें 3 महीने की जेल की सज़ा सुनाई जायेगी। अभी तक यह कर्ज अदायगी नहीं हो पायी है जिसके कारण अनिल अंबानी को जल्द ही जेल हो सकती है।

    रिलायंस कम्युनिकेशन को एरिक्सन के कुल 571 करोड़ के कर्ज में से 19 मार्च तक 453 करोड़ रूपए चुकाने है जिसकी असमर्थता में उन्हें जेल हो सकती है। यदि ऐसा होता है तो एरिक्सन का कर्ज अधूरा ही रह जाएगा।

    दिवालिया होने पर रिलायंस के साथ क्या होगा ?

    पिछले वर्ष एरिक्सन ने रिलायंस को दिवालिया घोषित करने की अर्जी कोर्ट में लगाई थी लेकिन और उसके बाद पिछले माह भी उसने दुबारा ऐसा किया था लेकिन कोर्ट की सुनवाई के दौरान उन्हें कुछ और समय दे दिया गया जिसमे वे एरिक्सन का कर्ज चूका सकते हैं। अब यदि अनिल अंबानी कर्ज नहीं चूका पाते हैं तो कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल के तहत उन्हें दिवालिया घोषित कर दिया जाएगा।

    अब यदि उन्हें दिवालिया घोषित कर दिया जाता है तो रिलायंस की साड़ी परिसंपत्तियों पर खतरा हो जाएगा। यह सब ट्रिब्यूनल के स्वामित्व में आ जायेंगी। इन सभी परिसंपत्तियों की बोली लगाईं जायेगी और उससे प्राप्त हुए वित्त को कर्जदारों की कर्ज अदायगी में प्रयोग किया जाएगा। बतादें की यदि ऐसा होता है तो उनकी फाइबर और टावर आदि परिसंपत्तियां असली मूल्य से कम में बिकेंगी जिससे रिलायंस को घाटे के सिवा कुछ नहीं होगा।

    इसके अतिरिक्त एरिक्सन ने कोर्ट में यह भी गुहार लगाईं थी की अनिल अंबानी की निजी संपत्ति को भी कर्ज अदा करने में प्रयोग कर लिया जाये। हालांकि कोर्ट द्वारा इस निवेदन को नहीं स्वीकार गया था।

    By विकास सिंह

    विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

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