बजट की सबसे चर्चित योजनाओं में से एक आयुष्मान भारत योजनाओं का प्रधानमंत्री ने सुभारम्भ किया। इस योजना के तहत गरीब परिवारों को हर साल 5 लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा दिया जायेगा।
यह योजना द्वितीय व तृतीय स्तर की बीमारियों अस्पताल में भर्ती होने का खर्च उठाएगी।
क्या है योजना?
इस योजना के तहत गरीबी रेखा के नीचें रहने वाले परिवारों का बीमा कराया जायेगा व उनका मुफ़्त इलाज कराया जायेगा।
बीमा का कवर 5 लाख रुपये तक होगा, जिसमे दूसरे व तीसरे स्तर की बिमारीयों का इलाज होगा ।
गरीबी रेखा के नीचे वाले लोगों के लिए चलाई जा रही राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना की जगह आयुष्मान भारत योजना को चलाया जा रहा है।पहले सिर्फ तीस हजार रुपये तक का बीमा होता था।
इस योजना के अंतर्गत 5 लाख तक का बीमा कराया जायेगा।
इस योजना के दो भाग है।
पहला गरीब परिवारों का बीमा व दूसरा है देश के विभिन्न क्षेत्रों में हेल्थ वेलनेस केंद्र खोलना व मौजूदा स्वास्थ्य केंद्रों का सुधार व नवीनीकरण करना है।
देश में अनेकों मौजूदा स्वास्थ्य केंद्रों को सुधारा जायेगा।
इन केंद्रों पर कई बीमारियों का इलाज होगा व मुफ़्त दवाइयां दी जाएंगी।
असर
यह योजना जारी कर सरकार ने दलितों के हितैषी होनेे का दावा किया था। योजना है भी सराहनीय, ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी लोग इलाज के पैसे ना होने की वजह से मरते हैं। ऐसे में इस बीमा से बहुत सारे जरूरतमन्दों को फायदा मिलेगा।
हालांकि सवाल यह है कि पहले भी गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों के लिये बीमा योजना थी। उसका फायदा कितने गरीबों को मिलता था? क्या एक व्यक्ति जो गरीबी की चरमसीमा में जीवन यापन करता है, ऐसे लोगों की भारत में कमी नहीं। ऐसे व्यक्ति को इतनी जानकारी है कि बीमा क्या होता है?
हमारे देश में जिन लोगों को सही में इस बीमा की आवश्यकता है वो यह भी नहीं जानते कि भारत का प्रधानमन्त्री कौन है। वो ये कहां से जानेंगे कि प्रधानमंत्री न उनके लिए कौन सी योजना का शुभारम्भ किया है।
स्टेज पर आदिवासी महिला को चप्पल पहनाने या दलित के घर जाके खाने से दलितों को रत्ती भर फायदा नहीं होता। उल्टा उनका मनोरंजक व राजनैतिक शोषण होता है।
विरोधाभास
चिकित्सा के नाम पर देश में कई प्रतिष्ठित संस्थान हैं। आये दिन कहीं ना कहीं एक नए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसन्धान संस्थान की नींव रखी जाती है। सरकारी सदर अस्पतालों की भी किसी जिले में कमी नहीं है।
व सब जानते हैं कि इन सरकारी अस्पतालों में मुफ़्त चिकित्सा सुविधा दी जाती है। तो अलग से स्वास्थ्य बीमा क्या गरीबों को प्राइवेट हॉस्पिटल भेजने की तैयारी है?
क्या यह चिकित्सा के निजीकरण की तरफ पहला कदम है? क्या हम भी अमेरिका जैसी चिकित्सा व्यवस्था की तरफ बढ़ रहे हैं जहां दवाइयाँ नहीं बीमा लोगों की जान बचाता है।
एक सवाल यह भी है कि क्या बीमा का यह पैसा सदर अस्पतालों के आधुनीकरण में नहीं लगाया जा सकता था? ताकि सिर्फ दलित नहीं बल्कि किसी भी जाति, सम्प्रदाय अथवा आय समूह का व्यक्ति मुफ़्त इलाज करवा सके।
इन सरकारी अस्पतालों में ना सिर्फ स्टाफ की कमी रहती है बल्कि आये दिन लापरवाहियों व गलतियों की खबरें आती रहती हैं।
तो क्या सरकार को खुद भी अपने सरकारी स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था पर भरोसा नहीं है? तभी गरीबों को प्राइवेट अस्पतालों में भेजने की शुरुआत कर रही है?
योजनाएं देश में बहुत हैं। जरूरत है एक ऐसे तन्त्र के निर्माण की जो ऐसी योजनाओं को इनके पूर्ण स्वरूप में समाज के सबसे निचले व्यक्ति तक पहुंचा सके।
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