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    इराक में इस महीने(मई) में संसदीय चुनाव हुए हैं, उनके नतीजों के अनुसार अमेरिका विरोधी पार्टी जिसका नेतृत्व कट्टरपंथी धर्मगुरु मोक्तदा अल-सदर कर रहे हैं, ने चुनाव में सरकार बनाने योग्य सीटें हासिल कर ली हैं। मोक्तदा अल सदर देश में अमेरिकी सेना के मौजूदगी का काफी पहले से विरोध कर रहे हैं, उनके विरोध के चलते 2011 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को इराक से अमेरिकी सेना को वापिस बुलाना पड़ा था।

    इस्लामिक स्टेट के इराक में बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए अमेरिका, इराक को सैन्य मदत मुहैय्या करा रहा हैं। परस्पर विरोधी अमेरिका और ईरान दोनों के साथ अपने संबंधों को मजबूत करते हुए, देश से इस्लामिक स्टेट को निकलने का काम प्रधानमंत्री हैदर अल-अबादी कर रहे थे। प्रधानमंत्री अल-अबादी, इराक में शिया मुस्लिमों का नेतृत्व करते थें, इसके कारन उनके ईरान के साथ जोकि शिया बहुल देश हैं अच्छे संबंध प्रस्थापित हो चुके थे।

    आपको बतादे, ईरान और अमेरिका के साथ काम करते हुए प्रधानमंत्री अबादी ने देश में सेना को एकत्रित कर उसे संगठित किया और देश में सुचारू व्यवस्था लागु की।

    वर्तमान स्थिति में इराक में 4,500 अमेरिकी सैनिक इस्लामिक स्टेट के बचे हुए ठिकानों को फिरसे सरकार के नियंत्रण में लाने के लिए इराकी सेना को मदत कर रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अपनी मध्य-पूर्व नीति का ऐलान कर चुके हैं, अब राष्ट्रपति ट्रम्प और पेंटागन (अमेरिकी रक्षा मंत्रालय) को चुनावी नतीजो के बाद अपने इराक नीति पर पुनर्विचार करना पड़ सकता हैं।

    इस्लामिक स्टेट और अमेरिका

    अपने अंतर्गत गृह युद्ध से जूझ रहे मध्य पूर्व एशिया के देशों में स्थिरता की कमी थी और प्रदेश के कई देशों में तख्तापलट की कोशिशे की गयी, जिसे अरब स्प्रिंग का नाम दिया गया था। अस्थिरता का फायदा उठाकर अबू बकर अल-बगदादी ने आतंकवादी संगठन दायेश(इस्लामिक स्टेट) की नीव रखी।

    इस संगठन इराक और सीरिया की सेनाओं को हराते हुए प्रदेश के बड़े हिस्से पर अपना नियंत्रण कर लिया और इससे निपटने के लिए अमेरिका के नेतृत्व वाली नाटो देशों की सेनाओं ने में इस युध्द में हिस्सा लिया। मित्र देशों की मदत से अमेरिका ने इस्लामिक स्टेट की कब्जे वाले हिस्से को फिरसे इराकी सरकार के नियंत्रण में लाया।

    आपको बतादे, जब 2011 में अमेरीकी सेना को इराक से वापिस बुलाया गया था, तब सुन्नी कट्टरपंथी संगठन इस्लामिक स्टेट को देश के कमल अल-मलिकी के नेतृत्ववाली सरकार विरोधी अल्पसंख्यक सुन्नी समाज के तरफ से बढ़ावा मिला था।

    2014 तक देश के उत्तरी और पश्चिमी हिस्से पर इस्लामिक स्टेट का कब्ज़ा हो चूका था, इसलिए प्रधानमंत्री हैदर अल-अबादी ने अमेरिका से मदत मांगी थी। अब अमेरिका विरोधी पक्ष के सरकार बनाने का इराक अमेरिका संबंधों पर क्या परिणाम होता है, यह तो आने वाला समय बताएगा।

    इराकी चुनावी नतीजे और अमेरिका

    अमेरिका के स्टेट डिपार्टमेंट के प्रवक्ता हेदर नौएर्ट के अनुसार, “अमेरिका, इराक में नयी सरकार के साथ मिलकर काम करना चाहता हैं। कुछ साल पहले इराक के बड़े हिस्से पर इस्लामिक स्टेट का नियंत्रण था, मगर अब परिस्थियाँ अलग हैं। इस्लामिक स्टेट के कब्जे वाले शहरों को आजाद कराया जा चूका हैं। और यह संसदीय चुनाव भी भयमुक्त और सुरक्षित रूप से करवाने में अमेरिका का सहयोग था।”

    अमेरिकी डिफेन्स सेक्रेटरी जिम मैटीस ने कहा अमेरिका इराकी जनता के फैसले का सन्मान करती हैं।

    अमेरिका-इराक संबंध अब किस दिशा में जाते हैं, यह तो आनेवला समय ही बताएगा। मगर अमेरिका विरोधी तबके का सरकार संभालना अमेरिका के लिए अच्छी बात नहीं हैं, इसमें कोई शंका नहीं हैं।

    By प्रशांत पंद्री

    प्रशांत, पुणे विश्वविद्यालय में बीबीए(कंप्यूटर एप्लीकेशन्स) के तृतीय वर्ष के छात्र हैं। वे अन्तर्राष्ट्रीय राजनीती, रक्षा और प्रोग्रामिंग लैंग्वेजेज में रूचि रखते हैं।

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