अफगानिस्तान में तालिबान चरमपंथी समूह अपने पाँव पसर रहा है और अमेरिका अफगानिस्तान में दशकों से इस जंग को थामने का प्रयास कर रहा है। इस लम्बे अंतराल से चल रहे विवाद के लिए पाकिस्तान, अफगानिस्तान और अमेरिका तालिबान के साथ बातचीत करना चाहते हैं। सरकार पीछले दो दशकों में परिवर्तित हुई है और पश्चिमी एशिया के क्षेत्र में तालिबान की आतंकी गतिविधियों को रोकने की कोशिश कर रही है। हालाँकि अभी तक प्रयास रंग नहीं लाया है।
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश और बराक ओबामा के नेतृत्व में अफगानिस्तान के सैन्य बालों को प्रशिक्षण दिया गया था ताकि वे आतंकी संगठन से लड़ सके। हालांकि डोनाल्ड ट्रम्प उन राष्ट्रपतियों में से नहीं है जो अपने देश का फंड विदेशों और युद्ध लड़ने में खर्च करे, जबकि इससे अमेरिका का कोई हित नहीं जुड़ा है।
हाल ही में अमेरिका में पाकिस्तान की आर्थिक सैन्य सहायता पर रोक लगा दी थी। डोनाल्ड ट्रम्प ने आरोप लगाया था कि पाकिस्तान ने आतंकवादियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं की सिर्फ अमेरिका से पैसे वसूल किये थे।
सोमवार को डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन ने इमरान खान को चिट्ठी लिखकर मदद मांगी थी। पत्र में तालिबान के साथ शांति बैठक का आयोजन करने का आग्रह किया गया है। अमेरिका अब इस जंग की समाप्ति चाहता है। अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक 17 सालों की इस जंग में तीनों देशों का आर्थिक संतुलन गड़बड़ाया हैं और हज़ारों सैनिक इस जंग में कुर्बान हुए हैं।
हाल ही में डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा था कि पाकिस्तान ने अमेरिका के लिए कुछ भी नहीं किया है, सिर्फ आतंकियों से जंग के नाम पर अमेरिका का खाजा लूटा है, लेकिन अब बस। हालांकि पाकिस्तान ने अमेरिका के इस कदम का स्वागत किया है और जंग के अंत के लिए संभव कार्य करने पर रजामंदी जताई थी।
अफगानिस्तान में अमेरिका ने लगभग 14 हज़ार सैनिक तैनात किये हुए हैं। यह सैनिक अफगानिस्तान के सैनिकों को प्रशिक्षण में सहायता करते हैं साथ ही इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी समूहों के खिलाफ अभियान के बारे में निर्देश भी देते हैं। तालिबान के लगातार हमलों के बाद अमेरिका के सैनिक साल 2001 में इस अभियान का हिस्सा बने थे। तालिबान का सितम्बर 2011 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले में भी हाथ था।
हाल ही में रूस ने अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता के लिए चरमपंथी तालिबान समूह के साथ शांति वार्ता का आयोजन किया था।