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    हिटलर और नाजीवाद का उदय

    अडोल्फ़ हिटलर को कौन नही जानता होगा। हिटलर को भले ही न जानें लेकिन उसकी क्रूरता को लोग अच्छे से जानते हैं। जानेंगे भी क्यों नही, आखिर वो दुनिया को द्वितीय विश्व युद्ध के गर्त में धकेलने वाला मुख्य कारण जो था।

    इस लेख में हमनें बात की है कि नाजीवाद क्या है? इसके अलावा नाजीवाद और हिटलर के उदय के कारण और प्रष्ठभूमि के बारे में भी जानकारी दी है।

    जर्मन आर्मी के एक सिपाही का यूँ उसी देश का तानाशाह बन जाना वाकई काफी अचरज भरा लगता है। यहाँ एक बात पर जरूर ध्यान देना चाहिए कि तानाशाही का इतना बड़ा साम्राज्य खड़ा करना कोई एक दो सालों का नही बल्कि कई सालों में संभव हो पाया था। अपने 56 साल की जिन्दगी में उसकी आधी उम्र तक तो शायद उसे कोई जानता भी नही होगा।

    1989 में पैदा हुए हिटलर ने जब 1914 में प्रथम विश्व युद्ध में बतौर जर्मन सैनिक शामिल हुआ था तो तब शायद उसे भी नही मालूम होगा कि वो इस तरह से जर्मनी के पटल पर एक तानाशाह के रूप में काम करेगा। और द्वितीय विश्वयुद्ध का मुख्य कारण बनते हुए 5 करोड़ लोगों के मारे जाने का प्रमुख कारण बनेगा।

    जब कभी भी हिटलर का नाम आता है तो नाज़ी पार्टी का नाम भी जरूर आता है। ऐसा इसलिए क्योंकि, हिटलर की पार्टी का नाम नाज़ी पार्टी था। दरअसल 1918 में प्रथम विश्व युद्व खत्म होने के बाद सितंबर 1919 में हिटलर ने सेना को छोड़ कर राजनीति में आने का फैसला करते हुए जर्मन वर्कर्स पार्टी नाम के एक पार्टी को जॉइन कर लिया था।

    उसने सितंबर 1919 से ही अपनी पॉवर बढ़ाना शुरू कर दी थी। 1920 में उसने जर्मन वर्कर्स पार्टी का नाम नेशनल सोशलिस्ट जर्मन वर्कर्स पार्टी रख दिया। जिसे हम और आप नाज़ी पार्टी भी कह सकते हैं।

    जर्मनी सेना हिटलर

    दरअसल इस पार्टी का गठन प्रथम विश्व युद्ध के तुरंत बाद हुआ था और इस पार्टी का विचार था कि जर्मनों ने वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर करके बहुत बड़ी गलती की है और कहा जाता है कि हिटलर को एक सैनिक के तौर पर जर्मनी के द्वारा संधि हस्ताक्षरित जाने से बहुत बुरा लगा था। और उसकी पूरी भड़ास उसके भाषणों में अक्सर सुनाई देती थी।

    हिटलर को एक सैनिक के तौर पर बुरा लगना लाजमी था क्योंकि जो वर्साय की संधि प्रथम विश्व युद्ध के बाद 1919 में हस्ताक्षरित की गई थी, वह वास्तव में काफी अन्याय पूर्ण और द्वेष के भाव से भरी हुई थी। दरअसल 1919 में पेरिस शांति सम्मेलन हुआ था जिसमें विश्व के तमाम देशों के मध्य संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे। इसी शांति सम्मेलन के अंतर्गत अब तक की सबसे विवादास्पद संधि हुई, और ये संधि थी- वर्साय की संधि।

    वर्साय की संधि

    इस संधि की शर्तें इतनी कठोर थीं कि इतिहासकारों ने इसे आरोपित संधि की संज्ञा दे दी। संधि में जर्मनी पर तमाम कठोर से भी कठोर प्रतिबंध लगाए गए, और इतना ज्यादा जुर्माना लगा दिया गया कि जर्मनी एकदम पंगु बन गया। जर्मनी की यह स्थिति ही नाजीवाद के उदय के कारण में सबसे महत्वपूर्ण थी।

    जर्मनी की सेना को एक लाख पर सीमित करते हुए इसकी नौसेना पर पूर्णता प्रतिबंध लगा दिया गया था। उसका जीता हुआ तमाम क्षेत्र तो वापस लिया ही गया था, साथ ही उसके खुद के देश के कुछ क्षेत्रों को लीग ऑफ नेशंस के हवाले कर दिया गया था। जुर्माने के रूप में 650 करोड़ पॉन्ड की भारी-भरकम राशि का जुर्माना लगाया गया था।

    जर्मनी की हालत एकदम पतली हो रही थी लेकिन चूंकि वो हर तरफ से दबाव में था तो उसे वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर करना पड़ गया था। इस बदले की भावना से भरी हुई संधि ने जर्मनी को आर्थिक, सैनिक और भौगोलिक दृष्टि से बिल्कुल छोटा कर दिया था। इतना छोटा कि उसका चल पाना भी मुश्किल हो गया था। ऐसे में उसे अमेरिका से अपना देश चलाने के लिए ऋण लेना पड़ा था।

    ऐसा बिल्कुल नहीं था कि हिटलर शुरू से ही तानाशाह था। शुरू में तो वो एक मजबूत विपक्ष की तरह खड़ा था। और अगर सही से देखा जाए तो हिटलर के पास अपनी बातें मनवाने के लिए कई सारे तर्क थे। सबसे बड़े तर्कों में से एक तर्क यह था कि वर्साय की संधि पूर्णता अन्याय पूर्ण थी और दूसरा यह कि वर्साय की संधि पर सेना ने नहीं बल्कि सिविलयन गवर्नमेंट ने हस्ताक्षर किया था, जबकि जान तो सेना के सैनिक गँवा रहे थे।

    असल में जब प्रथम विश्व युद्ध खत्म होने वाला था तो उस समय का जर्मनी का राजा कैसर विलियम अपनी पूरी फैमिली के साथ देश छोड़कर भाग गया था। इसके बाद मित्र राष्ट्रों ने जर्मन रिपब्लिक को भंग करके एक वेइमर रिपब्लिक की स्थापना की थी। और इसी वेइमर रिपब्लिक ने वर्साय की संधि पर हस्त्ताक्षर किये थे।

    इसके बाद 1923 में हिटलर, जर्मनी का तख्तापलट करने की कोशिश करता है लेकिन वह असफल हो जाता है। इसके बाद उसे देशद्रोह के आरोप में जेल में डाल दिया जाता है। जेल में वह अपनी आत्मकथा और अपने राजनीतिक लक्ष्य और एजेंडे को प्रदर्शित करती हुई किताब लिखता है, जिसका नाम था मेरा संघर्ष।

    हालांकि वो किताब जर्मन भाषा में थी और उसका नाम अंग्रेजी में माय स्ट्रगल रखा गया था और इस प्रकार हिंदी में यह मेरा संघर्ष बन गया।

    उस किताब ने हिटलर को काफी लोकप्रिय बना दिया जब वह जेल से छूटा तो हजारों लोग उसके समर्थन में उतर आये। उसका कारवां तेजी से बढ़ रहा था कि इसी बीच एक और घटना घटी जिसने हिटलर को बनाने में और नाजीवाद की स्थिति को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

    1929 में अमेरिका शेयर मार्केट अचानक क्रैश हो गया। अपनी स्थिति को किसी तरह से इस स्थिर रखने के लिए अमेरिका, जर्मनी को दिया अपना सारा धन तेजी से मंगाने लगा। इस बात को हिटलर ने जमकर उछाला और मौजूदा सरकार को जनता की नजरों में एकदम नीचे कर दिया। इसी बीच जर्मनी में आम चुनाव हुए जिसमें तीन पार्टियाँ मुख्य रूप से में मैदान में थीं।

    1. वेइमर रिपब्लिक यानी मौजूदा सरकार
    2. अल्ट्रा लेफ्ट यानी कम्युनिस्ट पार्टी
    3. अल्ट्रा राइट यानी नाज़ी नेशनल सोशलिस्ट पार्टी।

    चुनाव परिणाम के हिसाब से तो तीनों पार्टियों में से किसी के पास सरकार बनाने का पूर्ण बहुमत नही था। हिटलर के पास भाषण देने की बेहतरीन कला थी, इस बात से कोई इनकार नही कर सकता। उसे पता थे कि लोगों को अपने पक्ष में करने का तरीका क्या है। और उसी के चलते आखिर में जर्मनी के तत्कालीन राष्ट्रपति पॉल वॉन हिन्डेनबर्ग को जनवरी 1933 में हिटलर को जर्मनी का चांसलर बनाना ही पड़ गया था। क्योंकि हिटलर जर्मनों को ये बात समझने में कामयाब हो गया था कि जर्मनी का खोया हुआ सम्मान वही वापस दिला सकता हैं।

    हिटलर भाषण

    सत्ता हाथ में आते ही मार्च 1933 में उसने एक एक्ट पारित किया जिसका नाम था एनबलिंग एक्ट। इस एक्ट के जरिये उसने सारी शक्तियां अपने अधीन कर ली। यह वह दौर था जब नाजीवाद को रोक पाना असंभव सा हो चुका था। इसी बीच 1934 में प्रेसिडेंट की मौत हो गई जिसके बाद तो उसने पूरा का पूरा संविधान उलट-पलट कर रख दिया और अब हिटलर जर्मनी का चांसलर से तानाशाह बन गया।

    तानाशाह बनते ही हिटलर नें आस-पास के देशों को धमकियाँ देना शुरू कर दिया। हिटलर की विदेश नीति ऐसी थी कि वह सभी छोटे-छोटे देशों के लिए खतरनाक बनता जा रहा था।

    जब ये सब कुछ चल रहा था तो फ्रांस और ब्रिटेन आराम से चुपचाप बैठे थे। जबकि उन्हें इस मामले में दखल देना चाहिए था क्योंकि हिटलर के सारे निर्णय वर्साय की संधि के सीधे सीधे विरुद्ध भी थे। लेकिन फ्रांस और ब्रिटेन के द्वारा कोई दखल नही होने से धीरे-धीरे हिटलर का मनोबल बढ़ता चला गया। अब हिटलर ने वह सारे काम करना शुरू कर दिया जो वर्साय की संधि में प्रतिबंधित था। वर्साय की संधि में प्रतिबंधित था कि-

    1. जर्मनी की सेना एक लाख से ज्यादा नहीं हो सकती है।
    2. जर्मनी की कोई नेवी नही होगी।
    3. जर्मनी कभी कॉलोनाइजेशन यानी उपनिवेश राज्य नही बना सकता।
    4. जर्मनी कभी किसी देश पर हमला नही कर सकता।

    लेकिन हिटलर ने सब कुछ करना शुरू कर दिया।

    अब जब हिटलर की सेना हमले के लिए तैयार हो चुकी थी तो हिटलर ने एक खेल रचा। और वो खेल था- शुरुआत चेकोस्लाविया से करते हुए, पोलैण्ड, नॉर्वे और डेनमार्क को जीतते हुए, फ्रांस पर अधिकार करते हुए, रूस पर हमला करना। उसका फ्रांस पर अधिकार करने तक तो ठीक था लेकिन रूस पर हमला करने का फैसला बहुत बड़ी गलती थी। क्योंकि इन सारे देशों को तो वो जीत गया था लेकिन रूस से उसके हारने का सिलसिला एक बार जो शुरू हुआ तो नाजीवाद और हिटलर के तानाशाही वाले राज का पतन होने के बाद ही बंद हुआ।

    By मनीष कुमार साहू

    मनीष साहू, केंद्रीय विश्वविद्यालय इलाहाबाद से पत्रकारिता में स्नातक कर रहे हैं और इस समय अंतिम वर्ष में हैं। इस समय हमारे साथ एक ट्रेनी पत्रकार के रूप में इंटर्नशिप कर रहे हैं। इनकी रुचि कंटेंट राइटिंग के साथ-साथ फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी में भी है।

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