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    Rahul Gandhi

    Rahul Gandhi’s Disqualification: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और वायनाड से सांसद रहे (वर्तमान में पूर्व सांसद) श्री राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की लोकसभा की सदस्यता रद्द कर दी गयी है।

    एक तरफ़ कांग्रेस पार्टी (Congress) सरकार पर आरोप लगा रही है कि यह सब अडानी और सरकार के रिश्तों पर संसद में पूछे गए सवालों से ध्यान भटकाने को लेकर किया जा रहा है; वहीं भारतीय जनता पार्टी (BJP) कह रही है कि यह अदालत का निर्णय है और उसमें सरकार का कोई किरदार नहीं है।

    मानहानि का मामले में Rahul Gandhi दोषी करार

    असल मे गुजरात के सूरत की एक निचली अदालत ने राहुल गांधी को 2019 में कर्नाटक के कोलार में उनके द्वारा दिये एक चुनावी रैली में  संबोधन के दौरान एक विशेष वर्ग के मानहानि के आरोप का दोषी पाया है और उन्हें 2 साल की जेल की सजा सुना दी। हालांकि अदालत ने उन्हें 30 दिन का वक़्त दिया था कि वे ऊपरी अदालतों में अपील कर सकते हैं।

    इधर जैसे ही यह फैसला आया लोकसभा सचिवालय ने जन-प्रतिनिधित्व कानून 1950 (RPA 1950) के भाग 8(3) और भारतीय संविधान के अनुछेद 102 का हवाला देते हुए अदालत से फैसला आने के 24 घंटे के भीतर ही आनन फानन में उनकी सदस्यता रद्द करने का नोटिस जारी कर दिया।

    A Notice released by LS Sactt says Rahul Gandhi is Disqualified as an MP.
    Notice Released by LS Secretariat regarding disqualification of Rahul Gandhi as an MP. (image Source: twitter) .

    महज़ सदस्यता रद्द हुई… या फिर “हद्द” हो गई?

    ग़ौरतलब हो कि राहुल (Rahul Gandhi) ने जब से अडानी मामले पर संसद से लेकर सड़क तक केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को घेरने की शुरुआत की है, वे तब से ही बीजेपी के निशाने पर हैं।

    राहुल गाँधी ने लंदन में दिए अपने भाषण में केंद्र सरकार पर भारत मे लोकतांत्रिक मूल्यों के हनन का आरोप लगाया। (इस मुद्दे पर विस्तृत रिपोर्ट द इंडियन वायर हिंदी पर पढ़ सकते हैं). इसके बाद भारतीय जनता पार्टी (BJP) राहुल (Rahul Gandhi) को लगातार इस भाषण के संदर्भ में घेरने की कोशिश कर रही है कि राहुल गांधी ने देश का अपमान किया है और उन्हें देश से माफ़ी मांगनी चाहिए।

    इसके लिए बीजेपी के तरफ से कैबिनेट स्तर के 4 कद्दावर मंत्रियों ने मोर्चा खोला। एक बीजेपी प्रवक्ता ने तो हर सीमा पार करते हुए रा लंदन में दिए गए भाषण को लेकर राहुल को देशद्रोही और “मेरे जाफ़र” की संज्ञा तक दे डाली। संसद के भीतर पहले ही मांग होने लगी कि राहुल की सदस्यता बतौर सांसद रद्द कर देनी चाहिए।

    जवाब में राहुल गांधी ने कहा कि मैं अपनी बात संसद में रखूँगा क्योंकि आरोप भी सदन में लगा है तो, बकौल राहुल, उन्हें बोलने का मौका भी नहीं दिया गया। संसद में घमासान ऐसा कि शायद पहली बार यह देखने को मिला कि सरकार की ही मंशा नहीं थी कि संसद की कार्यवाही चले।

    कुल मिलाकर स्पष्ट था कि बीजेपी जानती थी कि विपक्ष अडानी मामले पर JPC की मांग करेगी ही, और इसलिए सरकार नहीं चाहती थी कि सदन में कोई चर्चा हो। नतीजतन पूरा सत्र हंगामे के भेंट चढ़ गया।

    अब इस पूरे घटनाक्रम को एक साथ रखें तो स्पष्ट है कि जरूर सबकुछ कानून के दायरे में रहकर हुआ है लेकिन शायद राहुल गाँधी उस राजनीति के शिकार हो गए हैं जिसमें न सिर्फ उनकी सदस्यता रद्द हुई है बल्कि बदले की राजनीति की हद्द कर दी गई है।

    बदल सकते हैं भविष्य के राजनीतिक समीकरण

    राहुल की सदस्यता जाने से एक अच्छी बात यह हुई कि सभी विपक्षी दलों को एक साथ लाने का जो काम न ED से हुआ, ना CBI से न ही भारत जोड़ो यात्रा से, वह राहुल (Rahul Gandhi) की सदस्यता जाने से हो गया।

    आम तौर पर कांग्रेस (Congress)  से अभी तक दूरी बना कर चल रहे दल मुख्यतः ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस (TMC), अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी (SP), केसीआर की TRS, अरविंद केजरीवाल की AAP और लेफ्ट पार्टियां भी इस मुद्दे पर कांग्रेस के समर्थन में खड़ी हुई हैं।

    अब इसे 2024 के आम चुनाव के मद्देनजर एक नए समीकरण की झलकी माना जाए तो क्या 2024 का चुनाव “बीजेपी बनाम सम्पूर्ण विपक्ष” होने जा रहा? अगर ऐसा हुआ तो यह कहना गलत नहीं होगा कि राहुल (Rahul Gandhi) की सदस्यता छीने जाने से शायद नुकसान बीजेपी को ही हो जाए।

    फिलहाल राहुल गाँधी को अपने पक्ष की लड़ाई अभी ऊपरी अदालतों में लड़ना बाकी है। अगर राहुल (Rahul Gandhi) की सज़ा या तो कम हो जाती है या फिर फैसला ही बदल दिया जाता है तो उनकी संसद की सदस्यता पुनर्बहाल हो जाएगी।

    फिलहाल एक बात तो तय है कि प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार अडानी मामले पर जबरदस्त रूप से घिरी हुई है। यह बात संसद, मीडिया और सोशल मिडिया पर चर्चा में है, परंतु विपक्षी दलों की सबसे बड़ी चुनौती रही है कि इन मुद्दों को जनता को समझाने में कामयाब नहीं हुए हैं।

    राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और उनकी पार्टी कांग्रेस के लिए यह एक “आपदा में अवसर” है कि अपनी महत्वाकांक्षाओं को थोड़ा दरकिनार करें और क्षेत्रीय दलों की अहमियत को समझते हुए उन्हें साथ लेकर आगे बढ़े।

    यह देखना दिलचस्प है कि राजनीति का ऊँट अब किस करवट बैठेगा लेकिन राजनीति में रुचि रखने वाले हैं जैसे लोगों के लिए वर्तमान राजनीति जो क्रिकेट के एकतरफा मैच के तरह होता जा रहा था, अब थोड़ा सा रोमांचक मुक़ाबला बनता जा रहा है।

    By Saurav Sangam

    | For me, Writing is a Passion more than the Profession! | | Crazy Traveler; It Gives me a chance to interact New People, New Ideas, New Culture, New Experience and New Memories! ||सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ; | ||ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ !||

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