1990s में बॉलीवुड फ़िल्म “फूल और काँटे” का एक गाना खूब चला था – “धीरे धीरे प्यार को बढ़ाना है, हद्द से गुजर जाना है…” पिछले दिनों 5 में से 4 राज्यों के विधानसभा चुनावों में जीत के बाद केंद्र सरकार शायद इसी गाने के तर्ज पर पेट्रोल (Petrol) और डीजल (Diesel) की कीमतों में बढ़ोतरी कर रही है।
आपको बता दें जब तक चुनावों का दौर रहा, इन ईंधनों (Petrol, Diesel & LPG) की कीमतें 137 दिनों तक स्थिर रही। लेकिन 10 मार्च को इन राज्यों में चुनाव परिणाम आने के बाद 22 मार्च को 137 दिनों के अंतराल के बाद पहली बार पैट्रोल-डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी की गई।
फिर इन ईंधनों के दामों में बढ़ोतरी का जो खेल शुरू हुआ, थमने का नाम नही ले रहा। पिछले 7 दिनों में इनकी कीमतों में 6 बार बढ़ोतरी की गई है और इस तरह पिछले 1 सप्ताह में कुल 4-4.5₹/- प्रति लीटर की बढ़ोतरी हो चुकी है।
प्रमुख शहरों में सोमवार को पेट्रोल और डीज़ल की कीमतें
शहर पेट्रोल (₹/ली.) डीजल (₹/ली.)
नई दिल्ली 99.41 90.77
मुंबई 114.19 98.50
कोलकाता 108.85 93.92
चेन्नई 105.18 95.33
137 दिन तक स्थिर रहे पेट्रोल (Petrol) और डीजल (Diesel) की कीमतें
यूँ तो कहने को सरकार यह कहकर पल्ला झाड़ लेती है कि इन ईंधनों (Petrol & Diesel) की कीमत बाज़ार के हवाले है। लेकिन इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि जब तक पंजाब, उत्तरप्रदेश सहित 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों का दौर चला, लगभग 4 महीने तक इनकी कीमतें स्थिर रही।
इसके पहले भी पेट्रोल और डीजल की कीमतें आसमान छू रही थीं और अब इन चुनावों के परिणाम आने के बाद तेल का खेल फिर शुरू हो गया है।
10 मार्च को इन चुनावों के परिणाम घोषित होते हैं। केंद्र में सत्तासीन बीजेपी ने 5 में से 4 राज्यों में सरकार बनाई। उसके बाद 137 दिन के लंबे ब्रेक के बाद पहली बार 22 मार्च को कीमतें बढ़ाई गई और उसके बाद ये सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा।
लोकसभा में विपक्ष ने इस मुद्दे पर किया सवाल
लोकसभा में चल रहे बजट सत्र के दौरान सोमवार को विपक्ष ने सरकार से पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस की बढ़ी हुई कीमतों को वापस लेने की मांग की साथ ही प्रधानमंत्री द्वारा इस मुद्दे पर सदन के पटल पर स्टेटमेंट की मांग भी की।
जब सरकार के पक्ष वालों ने इन बढ़ोतरी के पीछे रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग का हवाला दिया तो विपक्ष इस तर्क ख़ारिज करते हुए अपनी मांग पर अडिग रहा।
विपक्ष द्वारा सड़को पर किया था प्रदर्शन
पिछले दिनों दिल्ली की सड़कों पर यूथ कांग्रेस के सदस्यों ने इस मुद्दे पर सड़कों पर जमकर प्रदर्शन किया। यह रोचक बात है कि देश की मेनस्ट्रीम मीडिया ने इसे उतनी तवज्जो नहीं दी जो कवरेज ऐसे ही प्रदर्शन को 2013-14 में दी गयी थी जब भाजपा के सदस्य तत्कालीन मनमोहन सरकार को घेरती थीं।
कोरोनाकाल में यूथ कांग्रेस के नेता श्रीनिवास बी.वी. लोगों को घर घर ऑक्सीजन सिलिंडर पहुंचाने के लिये प्रसिद्ध हुए थे। वहीं श्रीनिवास आजकल यूथ कांग्रेस का नेतृत्व करते हुए गैस सिलेंडर लेकर सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं।
मीडिया में भले ही ये ‘इंकलाब’ नजर न आये,
लेकिन हम सड़कों पर इंकलाब लिखते रहेंगे.. pic.twitter.com/HdScqBYdVE— Youth Congress (@IYC) March 26, 2022
अभी और बढ़ेंगी कीमतें
बाजार के विशेषज्ञों की मानें तो अभी इन ईंधनों की कीमतों में और इज़ाफ़ा होने वाला है। इसकी कई वजहें हो सकती है।
एक तरफ़ जहाँ बदलते वैश्विक हालात के कारण अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ रहीं थीं वहीं राजनीतिक दवाब कब चलते भारत के पेट्रोल कंपनियाँ कीमतों को स्थिर रखे जा रहे थे। इस से उनके मुनाफे में कमी आयी है।
अब जब चुनाव परिणाम आ चुके हैं और अभी हाल में कोई ऐसा बड़ा चुनाव सामने नहीं है। इसलिए ये ईंधन कम्पनियां अब अपने मुनाफे की भरपाई करेंगे। नतीजतन पेट्रोल-डीजल की कीमतें अभी और बढ़ने के आसार हैं।
दूसरा, भारत की अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी के दंश से धीरे धीरे उबर रही है।ऐसे में सरकार का इन्फ्रास्ट्रक्चर और विकास से जुड़े कई पप्रोजेक्ट जमीन पर हैं जिस से रोजगार सृजन हों। लेकिन इन सब के लिए सरकार को भी पैसा चाहिए।
परिणामस्वरूप सरकार अभी इन ईंधनों के कीमतों पर से एक्साइज या अन्य तरह के टैक्स में कोई रियायत देती हुई नहीं मालूम पड़ रही है।
आम आदमी की जेब पर पड़ने वाला है असर
पेट्रोल-डीज़ल या रसोई गैस (LPG) की कीमतों में बढ़ोतरी बड़ी-बड़ी कारों में घूमने वाले से लेकर 1 शाम की रोटी कमाने वाले गरीब मजदूर सबके जेब को प्रभावित करती है। यह अलग बात है इसका सबसे ज्यादा असर मिडल क्लास और लोअर मिडिल क्लास को झेलना पड़ता है पर प्रभाव जनसंख्या के हर वर्ग को पड़ता ही है।
इन ईंधनों (Petrol & Diesel) की क़ीमतों में बढ़ोतरी होने से कंपनियों में समान के प्रोडक्शन से लेकर बाजार में माल-ढुलाई तक बढ़ जाता है। इस से वस्तुओं की कीमतें थोक और खुदरा दोनों तरह के बाजारों में बढ़ जाती हैं जिसका परिणाम अंतिम उपभोक्ता पर पड़ता है।
साथ ही खेती और अन्य कृषि कार्य जिसमें ट्रैक्टर का जमकर इस्तेमाल होता है। इसलिए ईंधनों की कीमत बढ़ जाने से खाद्यान्नों के कीमतों में भी असर पड़ना लाजिमी है।
कुल मिलाकर एक आम आदमी को अपने जेब से हर चीज के लिए ज्यादा क़ीमतों का भुगतान करना पड़ेगा जबकि उनकी आय फिक्स है। कुल मिलाकर आज के मशीन आधारित अर्थव्यवस्था में ईंधन की क़ीमतों में बढ़ोतरी का एक सघन चक्रीय प्रभाव है जिसे एक निश्चित स्तर पर रोकना जरूरी है।