Sat. Oct 12th, 2024
    Marital Rape: The SC Hearing

    Marital Rape Case: “महिला शादीशुदा हो या नहीं, उसकी सहमति एक समान रहती है”- यह केंद्र ने मैरिटल रेप एक्सेप्शन/वैवाहिक बलात्कार अपवाद (Marital Rape Exception) के समर्थन में कहा जिसे लेकर उनके द्वारा 49 पन्नों का हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में पेश किया गया है।

    भारत में वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) को अपराध घोषित करने की मांग वाली याचिकाओं में, भारत सरकार ने एक प्रारंभिक हलफनामा दायर किया है, जिसमें कहा गया है कि

    ” एक पति के पास निश्चित रूप से पत्नी की सहमति का उल्लंघन करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है; हालांकि, विवाहित महिलाओं को यौन हिंसा से बचाने के लिए कानून में वैकल्पिक उपाय पहले से मौजूद हैं और बलात्कार के अपराध को विवाह संस्था में जोड़ना अत्यधिक कठोर और पक्षपातपूर्ण (Disproportionate) माना जा सकता है।”

    हलफनामे में यह भी कहा गया है कि इस माननीय न्यायालय ने मौलिक अधिकारों के बीच बोधगम्य जुड़ाव में सामंजस्य स्थापित करने के लिए एक संतुलन दृष्टिकोण अपनाया है। यह पहली बार है कि सरकार ने वैवाहिक बलात्कार अपवाद (Marital Rape Exception) को ख़त्म करने का रिकॉर्ड पर विरोध किया है।

    वैवाहिक बलात्कार: क्या है पूरा मामला ?

    Marital Rape
    If any Rape is a ‘Rape’, then why not Marital Rape is ‘Rape’? Image Source: Social Media.

    केंद्र की प्रतिक्रिया दंड संहिता – अब भारतीय न्याय संहिता – में वैवाहिक बलात्कार के अपवाद (Marital Rape Exception) को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक समूह में आई है। कानून जो बलात्कार को परिभाषित करता है – BNS (Bhartiya Nyaya Sanhita) की धारा 63(2) और भारतीय दंड संहिता की धारा 375 बलात्कार को परिभाषित करती है और सहमति की सात धारणाओं को सूचीबद्ध करती है, जो अगर ख़राब होती हैं, तो एक पुरुष द्वारा बलात्कार का अपराध माना जाएगा।

    हालाँकि, प्रावधान में एक महत्वपूर्ण छूट (Marital Rape Exception) शामिल है: “किसी व्यक्ति द्वारा अपनी ही पत्नी, जिसकी पत्नी अठारह वर्ष से कम उम्र की न हो, के साथ यौन संबंध या यौन कृत्य बलात्कार नहीं है।” यह छूट अनिवार्य रूप से एक ‘पति’ को वैवाहिक अधिकार की अनुमति देती है, जो कानूनी मंजूरी के साथ अपनी “पत्नी” के साथ सहमति या गैर-सहमति वाले यौन संबंध के अपने अधिकार का प्रयोग कर सकता है।

    यह मुद्दा 2017 में उठा जब Hrishikesh Sahoo v the State of Karnataka Case में हृषिकेश साहू, जिनकी पत्नी ने बलात्कार और क्रूरता सहित कई अपराधों का आरोप लगाया था, ने वैवाहिक बलात्कार अपवाद (Marital Rape Exception) का इस्तेमाल किया, जिसे कर्नाटक उच्च न्यायालय (एचसी) ने खारिज कर दिया, और इस अपवाद को जस्टिस जे एस वर्मा समिति की रिपोर्ट को आधार मानते हुए “प्रतिगामी” और “भेदभावपूर्ण” माना।

    2022 में, कर्नाटक HC ने पति के खिलाफ बलात्कार के मामले में मुकदमे की अनुमति दी, यह मानते हुए कि वैवाहिक बलात्कार अपवाद “सदियों पुरानी…प्रतिगामी” अवधारणा थी। उच्च न्यायालय ने कहा :

    “एक आदमी एक आदमी है; एक कार्य एक कार्य है; बलात्कार एक बलात्कार है, चाहे वह किसी पुरुष, ‘पति’ द्वारा महिला ‘पत्नी’ पर किया गया हो….”

    बाद में इस मुकदमे पर SC ने रोक लगा दी थी। 2022 में दिल्ली HC के खंडित फैसले और कई नई याचिकाओं के बाद SC में अपील की गई। अदालत ने वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) अपवाद के खिलाफ एक बड़ी चुनौती पर सुनवाई करना स्वीकार किया था।

    Marital Rape पर केंद्र का तर्क: कितना सही या गलत?

    Marriage and rape
    Marriage is not a license to Rape. It is time to recognize Marital Rape. (image Source: Google/ Democratic Nari)

    केंद्र का यह तर्क बेहद संकीर्ण और सीमित नज़र आता है क्योंकि सहमति मांगना, इसकी समझ, इसका अधिकार खासतौर से यौन संबंध के मामले में परिवेश,स्थान, लिंग,वर्ग,जाति, पहचान इत्यादि भूमिकाओं से गुज़रता है जिसे समाज ने गढ़ रखा है। जहां समाज का वैवाहिक संस्थान शादी के बाद किसी को यौन सुख/यौन संबंध बनाने के लिए सहमति पत्र देता है।

    यहां सहमति समाज की तरफ से होती है, किसी महिला या पुरुष की तरफ से नहीं जिन्हें शादी में साथ आने के लिए इज़ाज़त दी गई है यह बताते हुए कि इससे उन्हें समाज में स्वीकारा जाएगा और उनके द्वारा अब यौन क्रिया करना स्वीकार्य है।

    इसे लेकर केंद्र सरकार का यह तर्क है कि, “यौन संबंध का पहलु पति और पत्नी के बीच संबंधों के कई पहलुओं में से एक है, जिस पर उनके विवाह की आधारशिला टिकी हुई है।”…..  यह आधारशिला शादी के पहले दिन से रखने की कोशिश की जाती है जहां जिस सहमति के एक जैसे होने की बात केंद्र करती है।

    जब केंद्र की सरकार कहती है कि महिला की सहमति शादी से पहले और बाद में भी एक जैसी रहती है तो यह गलत है। शादी से पहले एक हद तक उसके पास मना करने का अधिकार रहता है लेकिन शादी के बाद बहुत से कारणों जैसे पारिवारिक दवाब, सामाजिक मानदंड आदि के वजह से नहीं रह जाता।

    पितृसत्तात्मक समाज में महिला को शुरू से यही सिखाया गया है कि उसे अपने पति को शादी की रात खुश करना है और वहीं से यह तय होगा कि उसका आगे का जीवन, तथाकथित शादीशुदा जीवन कैसा रहने वाला है। यहां सहमति के लिए कोई जगह नहीं होती; बस एक रीति होती है समाज के वैवाहिक संस्थान द्वारा बनाई गई जहां शादी की रात यौन संबंध बनाने के लिए मना करना, शादी को मान्यता न देना समझा जाता है।

    क्यों…क्योंकि यह शादी को बनाये रखने वाले कई पहलुओं में से एक है। जहां सामाजिक रिश्तों और वैवाहिक बंधन को निभाने का भार महिला पर डाल दिया जाता है और यह भार उनकी जान ले लेता है, उनकी हत्या कर दी जाती है, सब शादी के पहलुओं को पूरा करने के नाम पर।

    बेशक, इसमें पत्नी की हत्या कर दी जाए लेकिन इसके बाद भी इसे मैरिटल रेप (Marital Rape) नहीं कहा जाएगा क्योंकि वैवाहिक संस्थान शादी के ज़रिए यौन संबंध बनाने और इसके लिए लगातार अपेक्षाएं रखने का अधिकार देती है। वह अधिकार जिसे समाज का एक व्यापक तबका मानता है।

    ऑनलाइन समाचार पत्रिका खबर लहरिया के एक ख़बर के मुताबिक,  10 फरवरी 2024 यूपी के हमीरपुर जिले में हुए मामले से हम इसे समझ सकते हैं। शादी की पहली रात पर कथित पति वैवाहिक संस्थान के पहलुओं और उससे जुड़ी आकांक्षाओं का लाभ लेते हुए अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध बनाता है, मर्दानगी बढ़ाने वाली गोली को खाकर।

    वह उसके साथ अमानवीयता के साथ, हिंसक होकर यौन संबंध बनाता है। पत्नी मना करती है, यहां उसकी सहमति नहीं है लेकिन वह उसकी मर्ज़ी के बिना उसके साथ यौन क्रिया ज़ारी रखता है। अंततः, यौनिक, शारीरिक व मानसिक हिंसा से उसके शरीर को पहुंची गहरी चोट के बाद उसकी मौत हो जाती है। उसकी हत्या कर दी जाती है, जिसे न तो हत्या कहा गया और न ही मैरिटल रेप (Marital Rape)।

    यह हिंसा,यह हिम्मत, पत्नी के मना करने के बाद भी उसके साथ ज़बरदस्ती यौन हिंसा करते हुए संबंध बनाना, यह सब उसे वैवाहिक संस्थान द्वारा गठित धारणा से मिलती है। वह संस्थान जो पति को खुश रखने और सबसे आगे रखने की बात करता है क्योंकि इसे ही एक अच्छे वैवाहिक रिश्ते के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।

    शायद संस्थान के इस ‘अच्छेपन’ को बरकरार रखने के लिए ही मैरिटल रेप (Marital Rape) को रेप नहीं कहा जा रहा बल्कि उसके खिलाफ लड़ा जा रहा है यह कहते हुए कि महिलाओं के पास अन्य बहुत से अधिकार है हिंसाओं से बचने के लिए। जैसे – रेप या घरेलू हिंसा को लेकर।

    Marital Rape पर उपलब्ध आंकड़े परेशान करने वाले

    Marital Rape : Should be penalized as Crime!
    Marital Rape: Crime or Not? (Image Source: DNA India)

    वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) पर उपलब्ध आंकड़े कलंक, भय, शर्म, अशिक्षा और कानूनी बाधाओं के कारण परेशान करने वाले हैं।

    राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) की रिपोर्ट है कि भारत में लगभग एक तिहाई विवाहित महिलाओं (18-49 वर्ष) ने अपने पतियों से शारीरिक या यौन हिंसा का अनुभव किया है। भारत में विवाहित महिलाओं में, यौन हिंसा सहने वाली 95 प्रतिशत से अधिक ने अपने पतियों/पूर्व पतियों को अपराधियों के रूप में पहचाना (NFHS 5)।

    इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि यौन हिंसा सहने वाले 90 प्रतिशत से अधिक लोगों ने किसी से मदद नहीं मांगी। ऐसा अक्सर इसलिए होता है क्योंकि वे इसे (Marital Rape) अपराध के रूप में नहीं पहचानते हैं; बल्कि इसे पति के “अधिकार” के रूप में देखा जाता है, जो कि स्थापित लैंगिक भूमिकाओं को दर्शाता है।

    प्रताड़ित महिलाओं को अक्सर सहायता नेटवर्क से अलग कर दिया जाता है और वे आर्थिक रूप से अपने दुर्व्यवहार करने वालों पर निर्भर होती हैं: 92 प्रतिशत विवाहित पुरुषों की तुलना में केवल 27 प्रतिशत विवाहित महिलाएं कार्यरत हैं। इससे तलाक लेना या छोड़ना कठिन हो जाता है।

    By Saurav Sangam

    | For me, Writing is a Passion more than the Profession! | | Crazy Traveler; It Gives me a chance to interact New People, New Ideas, New Culture, New Experience and New Memories! ||सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ; | ||ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ !||

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