लोकसभा चुनाव (LS Election) 2024 के परिणाम कुछ ऐसे आये हैं कि देश के लोकतंत्र में भाग लेने वाला हर धड़ा एक ‘राहत’ महसूस कर रहा है। मानो, देश को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली शक्तिशाली बहुमत की सरकार को नियंत्रित करने के लिए ऐसे जनादेश की सख्त आवश्यकता थी।
पिछले 10 साल से प्रचंड बहुमत से सत्ता में काबिज़ बीजेपी इस बार बहुमत के आँकड़ें से दूर जरूर रह गयी लेकिन फिर भी बीजेपी नेतृत्व वाली NDA गठबंधन की सरकार बनाने में कामयाब रही।
प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू और इंदिरा गांधी के बाद नरेंद्र मोदी तीसरे ऐसे प्रधानमंत्री बने हैं जो लगातार तीसरी बार शपथ लेंगे। लेकिन इन सब के बावजूद यह कहना अनुचित नहीं होगा कि इन चुनाव परिणामों (LS Election 2024 Results) के बाद बीजेपी के जीत से ज्यादा उनकी हार की चर्चा है।
दरअसल, लोकसभा चुनाव (LS Election) 2024 के खंडित जनादेश ने इस चुनाव में भाग ले रहे हर किसी के लिए कुछ ना कुछ दिया है। विपक्ष पहले की तुलना में काफ़ी मज़बूत हुआ है जो देश के लोकतंत्र के लिए बेहद जरूरी है।
जनता ने बीजेपी को उसके 400 पार वाले नारे को सिरे से ख़ारिज करते हुए अकेले दम पर सरकार बनाने के बहुमत से दूर रखा जो पिछले 2 चुनाव से प्रचंड बहुमत से जीतती हुई आ रही थी।
सबसे अहम, चुनाव आयोग तथा EVM पर लगातार उठने वाले सवालों को भी कुछ देर के लिए ठंडे बस्ते में दफ़न कर दिया।
दरअसल इस चुनाव (LS Election 2024) में कौन जीता और कौन हारा…. यह इन नतीजों को पढ़ने के नजरिये पर निर्भर करता है। बीजेपी ने जिस तरीके से चुनाव के घोषित होने के पहले ही “अबकी बार, 400 पार” का नारा दिया और उसके पक्ष में राष्ट्रीय मीडिया द्वारा हवा बनाई गई थी, उस परिप्रेक्ष्य में मात्र 240 सीट मिलना, एक बड़ा झटका ही माना जायेगा। हालांकि इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि बीजेपी के वोट प्रतिशत में कोई बहुत गिरावट नहीं दिखा है।
वहीं विपक्ष को भी जनता ने इस बार वह शक्ति दी है जिससे वह सरकार के काम-काज पर नकेल कस सकती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का तीसरा कार्यालय पहले दोनों परियों से इस मामले में जुदा होने वाला है।
पिछली दो सरकार में विपक्ष के पास संख्या इतनी कम थी कि प्रधानमंत्री मोदी को किसी भी फैसले को लेने या अमल करने में कोई हिचकिचाहट नहीं होती थी फिर चाहे कोई कितना भी उसे अलोकतांत्रिक या राजनीतिक मर्यादाओं का उलंघन बताते रहे। लेकिन अबकी विपक्ष भी मजबूत होकर उभर कर सामने आया है। विपक्षी गठबंधन को भी जनता ने लगभग उतने ही सीट दिए हैं जितना अकेले बीजेपी को मिला।
कुलमिलाकर देखा जाए तो देश की जनता ने इस बार लोकतंत्र को बहाल करने की जिम्मेदारी खुद के कंधों पर उठायी है। जब लोकतंत्र में किसी राज्य की छवि को एक चमत्कारी व्यक्तिगत नेतृत्व के छवि के इर्दगिर्द बुना जाने लगे तो जाहिर है कि इसका असर बेरोकटोक वाली सत्ता के केंद्रीकरण के रूप में सामने आता है।
प्रधानमंत्री का पिछला 2 कार्यकाल कुछ इसी प्रकार का रहा था लेकिन जनता ने इस बार उनके 400 पार वाले मंसूबे के पर को कुतर दिया। यही लोकतंत्र की खूबसूरती है और शायद यही वजह थी संविधान निर्माताओं ने संसदीय प्रणाली के लोकतंत्र को चुना होगा।
इस बार के परिणामों (LS Election 2024 results) ने राजनीति शास्त्र के तमाम पंडितों को यह एहसास दिलाया है कि हमें करिश्माई नेतृत्व, वोटिंग पैटर्न और एग्जिट पोल जैसे सर्वे से इतर राजनीति के सबसे मौलिक सिद्धांत ‘राज्य’ की गहराइयों को टोटलना ज्यादा जरूरी है, उसकी व्यवस्था को लेकर आम जनता की समझ को पहचानना जरूरी है।
पिछले कुछ सालों में समाज और राजनीति के बीच का फर्क कम हो गया था। इसके लिए जिम्मेवार कोई एक व्यक्ति या पार्टी नहीं बल्कि समूची व्यवस्था थी। राष्ट्रीय मीडिया जिसे लोकतंत्र का चौथा खंभा कहा जाता है, वह आम जनमानस की समस्या को उठाने के बजाए जनता और विपक्ष को ही कटघरे में खड़ा करती रही। नतीजा, सांसदों का घमंड इस क़दर बढ़ गया था कि उन्हें देश का संविधान बदलने की जरूरत महसूस होने लगी।
यह जरूर है कि सरकार बनाने में बीजेपी एक बार फिर क़ामयाब हो गयी है लेकिन इस बार सत्ता का बागडोर अकेले उनके हाँथ में नहीं बल्कि नीतीश कुमार और चन्द्र बाबू नायडू जैसे सहयोगियों के हाँथ में है।
ऐसा पहली बार नहीं है कि जनता ने अपनी शक्तियों का एहसास किसी ताक़तवर नेता को कराया हो। 1977 के चुनाव में कुछ इसी तरह के पाठ भारत की जनता ने इन्दिरा गांधी को पढ़ाया था। एक बार फिर जनता ने प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में चुनावी समर में उतरी बीजेपी को यह एहसास कराया है कि कोई भी एक व्यक्ति इस देश के वृहत और समृद्ध लोकतंत्र का अकेला चेहरा नहीं बन सकता।
लोकसभा चुनाव2024 (LS Elections 2024) के परिणाम ने यह साबित कर दिया है कि- “जनता ही जनार्दन है।”