Supreme Court Verdict on Electoral Bonds : राजनीतिक दलों द्वारा चुनावी बांड (Electoral Bonds) के रूप में अलग-अलग स्रोतों से धन लेने के मसले पर पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए “चुनावी बांड (Electoral Bonds) की व्यवस्था” को असंवैधानिक बताकर रद्द कर दिया।
BREAKING: SUPREME COURT STRIKES DOWN ELECTORAL BONDS SCHEME, says:
– Scheme violates right to information, can lead to quid pro quo
– Curbing black money and ensuring anonymity of donors can’t be grounds to defend electoral bonds or need for transparency in political finding… pic.twitter.com/yA3te890US
— Bar & Bench (@barandbench) February 15, 2024
दरअसल, 2017 में इस योजना के घोषणा के तुरंत बाद ही दो गैर सरकारी संगठनों (NGOs) कॉमन कॉज (Common Cause) और एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) के याचियाएँ दायर की थीं जिसमें यह आशंका जताई गई कि इस से बड़े पैमाने पर चुनावी भ्रष्टाचार और अवैध चंदे को वैध बनाया जा रहा है। अब सुप्रीम कोर्ट नव इन्ही याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अपना फैसला दिया है।
सूचना के अधिकार (RTI) का उल्लंघन: सुप्रीम कोर्ट
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने चुनावी बांड (Electoral Bonds) के तहत तमाम सूचनाओं को गुप्त रखने को “सूचना के अधिकार (RTI)”और अनुच्छेद 19 (1) (अ) का उल्लंघन माना है और इसे संविधान के अनुरूप नहीं बताया। साथ ही, यह भी कहा कि इस व्यवस्था की आड़ में राजनीतिक पार्टियों को आर्थिक मदद के बदले चंदा देने वाले व्यक्ति या संस्था को कुछ और फायदा पहुंचाया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के 05 जजों की पीठ ने सर्वसम्मति से अपने फैसले में एक और महत्वपूर्ण बात कही कि भारतीय स्टेट बैंक (SBI) चुनाव आयोग को इलेक्टोरल बांड्स (Electoral Bonds) से जुड़ी जानकारी चुनाव आयोग को मुहैया कराएगा और आयोग इस जानकारी को 31 मार्च तक बेबसाइट पर प्रकाशित करेगा।
BREAKING: ELECTORAL BONDS Judgment
– POLITICAL PARTIES DIRECTED TO REFUND ALL AMOUNTS RECEIVED
– Finance act 2015 amendments enabling scheme unconditional, Apex court says
– State Bank of India to HEREWITH IMMEDIATELY STOP issuing electoral bonds, And issue details of the… pic.twitter.com/BChwoZ2gh7
— Bar & Bench (@barandbench) February 15, 2024
Electoral Bonds: एक अपारदर्शी व्यवस्था
चुनावी बांड (Electoral Bonds) एक तरह का Money Instrument है जिसका इस्तेमाल भारत मे राजनीतिक दलों को चंदा देने में किया जाता है। इसके तहत भारतीय नागरिकों या भारत मे निगमित निकायों , दोनों को बॉन्ड खरीदने की अनुमति दिया गया था।
इसके तहत कोई भी व्यक्ति SBI से 1000₹, 10,000₹, 1 लाख रुपये, दस लाख रुपये, और एक करोड़ रुपये में से किसी भी मूल्य के बांड खरीद सकता था। इस बॉन्ड को केवल जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के महीनों में पड़ने वाली 10-दिवसीय अवधि (Window) के बीच ही खरीद सकते हैं। बांड प्राप्त करने के 15 दिनों के भीतर राजनीतिक दल उसे अपनी पार्टी के अधिकृत बैंक खाते में भी ट्रांसफर कर सकते थे।
इसकी शुरुआत साल 2017 में की गई थी जिसे जनवरी 2018 में कानूनी रूप से लागू किया गया था। इसके तहत भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को राजनीतिक दलों को फन्ड इकट्ठा करने हेतु चुनावी बांड (Electoral Bonds) जारी करने का अधिकार मिला था। इस बांड को बैंक से खरीदने वाले का नाम बांड पर नहीं होता; अर्थात कोई भी व्यक्ति गुमनाम तरीके से अपनी पंसद की पार्टी को पैसा दे सकता है।
इस वजह से आम लोगों को यह पता नहीं होता कि किसने कितने रुपये के बांड खरीदे और किस पार्टी को चंदा दिया है। हालांकि सम्बंधित बैंक के पास इसका पूरा ब्यौरा उपलब्ध होता है। जाहिर है, इस बांड को कानूनी जामा पहनाने के क्रम में आम व्यक्ति को पहले से प्रदत “सूचना के अधिकार” को दरकिनार किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने हालिया फैसले में इसी पर सवाल उठाते हुए इसे असंवैधानिक करार दिया है।
Electoral Bond से किस पार्टी को कितना चंदा?
चुनावी बांड का उपयोग केवल जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951 की धारा 29A के तहत पंजीकृत राजनीतिक दलों को दान देने के लिए किया जा सकता है। इसके तहत भारतीय स्टेट बैंक से उन्हीं पार्टियों को चंदा मिल सकता था जिन्हें पिछले लोकसभा या विधानसभा में कम से कम 1% वोट मिला होता था।
चुनावी बॉन्ड (Electoral Bonds) के जरिये भारत के जिन प्रमुख पार्टियों को धन प्राप्त हुए हैं, उनमें सबसे अव्वल सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) है जिसे कुल 6566.12 करोड़ रुपये (54.7%) मिले हैं। इसके बाद प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस (INC) को 1123.31 करोड़ (9.37%) मिले हैं। तीसरे नम्बर पर बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (AITC) को 1092.98 करोड़ (9.118%) का चंदा मिला है।
चुनावी बॉन्ड (Electoral Bonds) के तहत किस पार्टी को कितना चंदा मिला, वह निम्नवत हैं-
विडंबना यह है कि चुनावी पारदर्शिता की मांग तो अक्सर ही की जाती है, मगर इसके लिए जरूरी कारकों को सुनिश्चित करने को लेकर गंभीरता नहीं दिखती है। इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bonds) के तहत गुपचुप तरीके से चंदा लेने की व्यवस्था लागू करते वक़्त इस बात के दावे भी खूब किये गए कि इस व्यवस्था से पारदर्शिता आएगी लेकिन बड़े ही चालाकी से आम जन के सूचना के अधिकार को ही दरकिनार कर दिया गया था।
इसी से जुड़ा एक पहलू यह भी कि चूंकि चुनावी बॉन्ड खरीदने वाले कि पहचान गुप्त रखी गई है, इस वजह से यह व्यवस्था भ्रष्ट तरीके से कमाए गए काले धन को सफेद करने का एक विकल्प बन सकता था और इस प्रकार काले धन को बढ़ावा मिल सकता था।
इस व्यवस्था की आलोचना में यह भी कहा जाता रहा है कि इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये बड़े कॉरपोरेट घरानों को उनकी पहचान उजागर कये बिना पैसे लेकर उसके बदले बड़े प्रोजेक्ट्स को उन उद्योगपतियों के हाँथ में सौंप देने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
कुलमिलाकर, इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bonds) की व्यवस्था में ऐसी संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता था जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया प्रभावित हो सकती थी। अब जबकि आगामी लोकसभा चुनावों की घोषणा में महज़ कुछ हफ़्ते ही रह गए हैं, सुप्रीम कोर्ट का इलेक्टोरल बॉन्ड की सम्पूर्ण व्यवस्था को असंवैधानिक करार दिया जाना एक बड़ा झटका माना जा रहा है। राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे पर पारदर्शिता सुनिश्चित करने और इसमें भ्रष्टाचार की संभावनाएं मौजूद होने के लिहाज से भी सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण कहा जा सकता है।