श्री गीता उपनिषदों से प्राप्त परम शिक्षाओं का प्रतिनिधित्व करती है। यह महाभारत युद्ध के दौरान युद्ध के मैदान में भगवान श्री कृष्ण से अर्जुन को ज्ञान प्रदान करती है। गीता एक ऐसी पुस्तक है जो मनुष्य को बताती है कि उसे जीवन कैसे और किस तरह जीना चाहिए। यह मनुष्य के अंदर मौजूद सद्गुणों और अवगुणों के बारे में बताती है।
भगवद गीता की कहानी महाभारत के बड़े महाकाव्य में, विशेष रूप से कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में एक महान युद्ध से ठीक पहले सामने आती है। यहाँ कथा का संक्षिप्त विवरण दिया गया है:
पृष्ठभूमि
1. कुरुक्षेत्र युद्ध: महाभारत हस्तिनापुर के सिंहासन पर अधिकार के लिए दो परिवारों, पांडवों और कौरवों के बीच संघर्ष का वर्णन करता है। शांति के कई असफल प्रयासों के बाद, युद्ध अपरिहार्य है।
2. अर्जुन की दुविधा: जैसे ही युद्ध शुरू होने वाला होता है, पाँच पांडव भाइयों में से एक अर्जुन खुद को नैतिक और भावनात्मक संकट में पाता है। वह युद्ध के मैदान के दोनों ओर अपने रिश्तेदारों, शिक्षकों और दोस्तों को देखता है और उन्हें मारने के विचार से अभिभूत हो जाता है।
संवाद
3. मार्गदर्शन की तलाश: अपनी निराशा में, अर्जुन भगवान कृष्ण की ओर मुड़ता है, जो उसके सारथी के रूप में कार्य करते हैं। अर्जुन युद्ध की नैतिकता पर सवाल उठाते हुए, युद्ध के प्रति अपनी उलझन और अनिच्छा व्यक्त करता है।
कृष्ण की शिक्षाएँ:
1) – धर्म: कृष्ण धर्म (धार्मिक कर्तव्य) की अवधारणा की व्याख्या करते हैं और इस बात पर ज़ोर देते हैं कि एक योद्धा के रूप में, अर्जुन का कर्तव्य न्याय के लिए लड़ना है।
धर्म (धार्मिक कर्तव्य): कृष्ण समाज में अपनी भूमिका के अनुसार अपने कर्तव्यों को पूरा करने के महत्व को समझाते हैं।
– अपनी भूमिका के अनुसार कर्तव्य: कृष्ण इस बात पर जोर देते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति की समाज में अपनी स्थिति के आधार पर एक विशिष्ट भूमिका और जिम्मेदारियाँ (स्वधर्म) होती हैं। अर्जुन को एक योद्धा (क्षत्रिय) के रूप में युद्ध में लड़ने के अपने कर्तव्य को पूरा करना चाहिए।
2) मोक्ष की परिभाषा:
मोक्ष को जन्म और मृत्यु (संसार) के चक्र से आत्मा (आत्मा) की मुक्ति के रूप में वर्णित किया गया है। यह शाश्वत आनंद और ईश्वर के साथ मिलन की स्थिति है।
मोक्ष के मार्ग:
कृष्ण मोक्ष प्राप्त करने के लिए कई मार्गों की रूपरेखा प्रस्तुत करते हैं, इस बात पर जोर देते हुए कि विभिन्न दृष्टिकोण मुक्ति की ओर ले जा सकते हैं:
– कर्म योग: परिणामों की आसक्ति के बिना किए गए निस्वार्थ कर्म का मार्ग। वैराग्य बनाए रखते हुए अपने कर्तव्य में संलग्न होना मुक्ति की ओर ले जा सकता है।
– भक्ति योग: ईश्वर के प्रति भक्ति का मार्ग, जहाँ ईश्वर के प्रति सच्चा प्रेम और समर्पण मोक्ष में परिणत हो सकता है।
– ज्ञान योग: ज्ञान और बुद्धि का मार्ग, जहाँ वास्तविकता और स्वयं की प्रकृति को समझना मुक्ति की ओर ले जाता है।
3) स्वयं की प्रकृति:
कृष्ण सिखाते हैं कि सच्चा आत्म (आत्मा) शाश्वत और अपरिवर्तनीय है, जो भौतिक शरीर से अलग है। मोक्ष प्राप्त करने के लिए इस सत्य को समझना आवश्यक है।
4.) समभाव:
मोक्ष प्राप्त करने के लिए, व्यक्ति को समभाव विकसित करना चाहिए – सफलता और असफलता, सुख और दुख में संतुलित रहना। यह मानसिक स्थिरता व्यक्ति को सांसारिक आसक्तियों से ऊपर उठने में सक्षम बनाती है।
5) ईश्वर के प्रति समर्पण:
कृष्ण ईश्वर के प्रति समर्पण और ईश्वरीय इच्छा को पहचानने के महत्व पर जोर देते हैं। अहंकार और इच्छाओं को त्यागकर व्यक्ति मुक्ति प्राप्त कर सकता है।
6) विश्वास और भक्ति:
मोक्ष की यात्रा में विश्वास और सच्ची भक्ति को महत्वपूर्ण तत्वों के रूप में उजागर किया गया है। ईश्वर पर भरोसा करना और भक्ति साधना में संलग्न होना इस प्रक्रिया को सुगम बना सकता है।
7) अज्ञान से मुक्ति:
स्वयं और वास्तविकता की वास्तविक प्रकृति के बारे में अज्ञान (अविद्या) को दूर करने के माध्यम से मोक्ष प्राप्त होता है। स्वयं का ज्ञान पुनर्जन्म के चक्रों से मुक्ति की ओर ले जाता है।
भगवद गीता संतुलित जीवन जीने, नैतिक दुविधाओं को संबोधित करने और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए एक गहन मार्गदर्शिका है। इसकी शिक्षाएँ जीवन के विभिन्न पहलुओं पर लागू होती हैं, जिसमें व्यक्तिगत संघर्ष, नैतिक निर्णय लेना और उच्च उद्देश्य की खोज शामिल है।