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    रेल भर्ती 6 महीनें

    भारतीय रेलवे ने 48 मेल और एक्सप्रेस ट्रेनों को अपग्रेड कर सुपरफास्ट बना दिया है। ऐसे में इन ट्रेनों के किराए में बढ़ोतरी कर दी गई है। यानि अब यात्रियों को सुपरफास्ट के नाम पर किराए में अतिरिक्त चार्ज देना होगा।

    इतने देने होंगे अ​तिरिक्त चार्ज—
    स्लीपर—30 रुपए
    सेकेंड और थर्ड—45 रुपए
    फर्स्ट एसी—75 रुपए

    आप को जानकारी के लिए बता दें कि इन 48 ट्रेनों के किराए में वृद्धि से रेलवे विभाग को कुल 70 करोड़ रुपए की अतिरिक्त आमदनी होगी। इन 48 ट्रेनों की अपग्रेडिंग के बाद से सुपरफास्ट ट्रेनों की संख्या 1072 हो गई है।

    प्रमुख सुपरफास्ट ट्रेनों के नाम—

    बेंगलुरु-शिवमोगा एक्सप्रेस, मुंबई-मथुरा एक्सप्रेस, दरभंगा-जालंधर एक्सप्रेस, पाटलीपुत्र-चंडीगढ़ एक्सप्रेस, टाटा-विशाखापत्तनम एक्सप्रेस, रॉक फोर्ट चेन्नै-तिरुचिलापल्ली एक्सप्रेस, कानपुर-उधमपुर एक्सप्रेस, दिल्ली-पठानकोट एक्सप्रेस, पुणे-अमरावती एसी एक्सप्रेस, विशाखापत्तनम-नांदेड़ एक्सप्रेस, मुंबई-पटना एक्सप्रेस और छपरा-मथुरा एक्सप्रेस आदि।

    गौरतलब है कि सुपरफास्ट के नाम पर रेलवे यात्रियों से अ​तिरिक्त चार्ज तो अवश्य वसूला जाता है लेकिन स्पीड के नाम पर प्रति घंटे में मात्र 5 किमी. की ही बढ़ोतरी की गई है। और ये सभी सुपरफास्ट ट्रेनें सही समय पर ही चलेंगी ये कोई जरूरी नहीं भी है। वैसे भी अब थोड़े ही दिनों कोहरे के कारण इन ट्रेनों का लेट होना आमबात होगी। जब दुरंतो, राजधानी और शताब्दी जैसी ट्रेनें लेट हो रही हैं तो इन सुपरफास्ट ट्रेनों के सही समय पर गतव्य स्थल पर पहुंचने का तो कोई औचित्य ही नहीं बनता है।

    अभी कैग ने अपनी पिछली ही रिपोर्ट में सुपरफास्ट ट्रेनों को लेकर रेलवे विभाग को लताड़ लगाई थी। कैग ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख किया था कि सुपरफास्ट के नाम पर यात्रियों से किराया तो जरूर वसूल लिया जाता है लेकिन ना ही ये ट्रेनें अपनी निर्धारित स्पीड से चलती हैं और ना ही समय से गंतव्य स्थल पर पहुंचती हैं।

    इस बारे में रेलवे का कहना है कि अगर कोई ट्रेन 15 मिनट की लेट से भी पहुंचती है तो इन्हें आॅन टाइम ही माना जाता है। वैसे भी रेलवे ने देरी से आने वाली ट्रेनों को पंक्चुअल पैरामीटर 16, 30, 45, 60 मिनट के रूप में चार भांगों में बांट रखा है। लेकिन अमूमनतौर पर अधिकांश ट्रेनें एक घंटे लेट ही रहती हैं।

    रेलवे चेन पुलिंग, खराब मौसम, हादसे और ट्रैक पर धरना-प्रदर्शन का बहाना बनाकर ट्रेनों की लेट लतीफी का आसान सा बहाना ढूंढ़ ही लेता है।